सोनाली मिश्रा। दिल्ली उच्च न्यायालय ने मैरिटल रेप अर्थात वैवाहिक बलात्कार के मामले पर कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को एक चौंकाने वाला वक्तव्य दिया कि “यदि एक सेक्सवर्कर के पास न कहने का अधिकार है, तो पत्नी के पास यह अधिकार क्यों नहीं है?” यह वक्तव्य इसलिए चौकाने वाला है क्योंकि इसमें ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे पत्नी और सेक्सवर्कर एक ही तराजू के दो पलड़े हैं. परन्तु क्या वास्तव में ऐसा है? क्या पति और पत्नी के बीच हुए शारीरिक सम्बन्धों की “न” को वैवाहिक बलात्कार की संज्ञा दी जा सकती है?
क्या है मामला
दिल्ली उच्च न्यायालय में गैर सरकारी संगठनों –आरआईटी फांउडेशन और ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेन्स एसोसिएशन – की ओर से दायर की गयी विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है और इन संगठनों की ओर से वकील करुणा नंदी दलीलें रख रही हैं।
करुणा नंदी की टीम ने धारा 375 में दिए गए एक अपवाद को ही चुनौती दी है। उन्होंने यह नहीं कहा है कि इस सम्बन्ध में कोई भी नया कानून लाया जाए। धारा 375 बलात्कार को परिभाषित करती है
इसमें बलात्कार के दायरे में कई कृत्य हैं. और वह यौन कार्य तब बलात्कार माने जाएंगे जब निम्न परिस्थितियाँ होंगी:
- उस स्त्री की इच्छा के विरुद्ध।
- उस स्त्री की सहमति के बिना।
- उस स्त्री की सहमति से जबकि उसकी सहमति, उसे या ऐसे किसी व्यक्ति, जिससे वह हितबद्ध है, को मॄत्यु या चोट के भय में डालकर प्राप्त की गई है।
- उस स्त्री की सहमति से, जबकि वह पुरुष यह जानता है कि वह उस स्त्री का पति नहीं है और उस स्त्री ने सहमति इसलिए दी है कि वह विश्वास करती है कि वह ऐसा पुरुष है। जिससे वह विधिपूर्वक विवाहित है या विवाहित होने का विश्वास करती है।
- उस स्त्री की सहमति के साथ, जब वह ऐसी सहमति देने के समय, किसी कारणवश मन से अस्वस्थ या नशे में हो या उस व्यक्ति द्वारा व्यक्तिगत रूप से प्रबन्धित या किसी और के माध्यम से या किसी भी बदतर या हानिकारक पदार्थ के माध्यम से, जिसकी प्रकृति और परिणामों को समझने में वह स्त्री असमर्थ है।
- उस स्त्री की सहमति या बिना सहमति के जबकि वह 18 वर्ष से कम आयु की है।
- उस स्त्री की सहमति जब वह सहमति व्यक्त करने में असमर्थ है।
स्पष्टीकरण –
सहमति का मतलब एक स्पष्ट स्वैच्छिक समझौता होता है- जब महिला शब्द, इशारों या किसी भी प्रकार के मौखिक या गैर-मौखिक संवाद से विशिष्ट यौन कृत्य में भाग लेने की इच्छा व्यक्त करती है;
बशर्ते एक महिला जो शारीरिक रूप से प्रवेश के लिए विरोध नहीं करती, केवल इस तथ्य के आधार पर यौन गतिविधि के लिए सहमति नहीं माना जाएगा।
एक चिकित्सा प्रक्रिया या हस्तक्षेप बलात्कार संस्थापित नहीं करेगा।
बलात्संग के अपराध के लिए आवश्यक मैथुन संस्थापित करने के लिए प्रवेशन पर्याप्त है ।
अपवाद–पुरुष का अपनी पत्नी के साथ मैथुन बलात्संग नहीं है जबकि पत्नी पन्द्रह वर्ष से कम आयु की नहीं है।
करुणा नंदी ने इसी अपवाद को चुनौती दी है. इनका कहना है कि बलात्कार, बलात्कार है, उसमें चाहे पति ने ही जबरन क्यों न सम्बन्ध बनाए हों! इस पर न्यायालय ने सुनवाई करते हुए पहले कहा था कि
“विवाहित हो या अविवाहित, हर महिला को सेक्स के लिए न कहने का अधिकार है!”
जब न्यायालय में यह बात कही जा रही है तो क्या यही अधिकार पुरुषों अर्थात पति को प्राप्त होगा? क्या पति के पास शारीरिक सम्बन्ध के लिए न कहने का अधिकार है? और फिर न कहने का कारण क्या है? क्योंकि न्यायालय ही विवाह में बिना किसी कारण के शारीरिक सम्बन्ध न बनाने को मानसिक क्रूरता घोषित कर चूका है. वर्ष 2016 में एक दंपत्ति की तलाक की याचिका पर निर्णय देते हुए कहा था कि “लंबे समय तक पत्नी द्वारा संबंध बनाने से इन्कार करना तलाक का आधार बन सकता है, यह मेंटल क्रूअल्टी (मानसिक क्रूरता) के अंतर्गत आता है।“
(https://www.jagran.com/delhi/new-delhi-city-14685247.html)
क्या पति के पास भी न कहने का अधिकार होगा? अब लोग यह प्रश्न पूछ रहे हैं. पति और पत्नी के बीच यह कैसे निर्धारित होगा कि पति ने पत्नी के साथ जबरदस्ती की? और जबरदस्ती की परिभाषा क्या है? स्त्री को यौन हिंसा से संरक्षण पहले ही घरेलू हिंसा में संरक्षण मिला हुआ है. घरेलू हिंसा अधिनियम में घरेलू हिंसा की परिभाषा में लिखा है कि
“व्यथित व्यक्ति के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन, अंग की या चाहे उसकी मानसिक या शारीरिक भलाई की अपहानि करता है या फिर उसे क्षति पहुंचाता है, या उसे संकटापन्न करता है या उसकी ऐसा करने की प्रवृत्ति है और जिसके अंतर्गत शारीरिक दुरूपयोग, लैंगिक दुरूपयोग, मौखिक और भावनात्मक दुरूपयोग और आर्थिक दुरूपयोग करना भी सम्मिलित है!”
https://indiankanoon.org/doc/542601/
वर्ष 2018 में भी इसी अपवाद पर सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय में जस्टिस गीता मित्तल ने कहा था “‘अदालत ने कहा कि ताकत का इस्तेमाल बलात्कार की पूर्व शर्त नहीं है. अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को वित्तीय दबाव में रखता है और कहता है कि अगर वह उसके साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाएगी तो वह उसे घर खर्च और बच्चों के खर्च के लिए रुपए नहीं देगा और उसे इस धमकी के कारण ऐसा करना पड़ता है. बाद में वह पति के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज करती है तो क्या होगा?’
इससे पहले वर्ष 2017 में केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में यह कहा था कि यदि मैरिटल रेप को आपराधिक बना दिया जाएगा तो विवाह संस्थान नष्ट हो जाएगा!” केंद्र सरकार ने कहा था कि यदि ऐसा किया गया तो पतियों को परेशान करने का एक नया उपकरण हो जाएगा और केंद्र सरकार ने यह भी कहा था कि पति और उसकी पत्नी के बीच यौन सम्बन्धों का गवाह कौन होगा?
केंद्र सरकार लम्बे समय से इसका इसी आधार पर विरोध करती आई है कि इससे विवाह संस्था नष्ट होगी और पतियों की प्रताड़ना के मामले बढ़ेंगे! हालाँकि अभी हाल वाली सुनवाई में केंद्र सरकार ने कहा है कि वह सभी हितधारकों से बात कर रही है!
इस मामले की सुनवाई जस्टिस राजीव शकधर और सी हरिकुमार कर रहे हैं।. इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय में अमिक्स क्युरी ने एक और चौंकाने वाला वक्तव्य दिया है कि बलात्कार, बलात्कार है, इसमें वैवाहिक स्थिति या कानूनी छूट सच्चाई नहीं बदल सकती है.
अमिकस क्युरी वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव ने कहा कि धारा 375 में अपवाद में जो पति और पत्नी का रिश्ता है, वह शादी की एक पुरानी और आउटडेटेड अवधारणा के आधार पर है.”
राव के अनुसार एक पत्नी को शारीरिक सम्बन्धों में इंकार के मामले में अपने पति से अधिक खतरा है और कम संरक्ष्ण प्राप्त है, और उसे कानून से एक अजनबी द्वारा या लिव इन साथी द्वारा किए गए यौन शोषण से अधिक सुरक्षा प्राप्त है!
एडवोकेट राव ने ही यह कहा कि हमारे न्यायालयों ने एक लोगों का मनोरंजन करने वाली एक सेक्सवर्कर के अधिकार सुनिश्चित किए हैं और यह कहा है कि वह किसी भी समय न कह सकती है, परन्तु क्या एक पत्नी को आप उससे भी निचले पायदान पर रखते हैं!
याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दे रही करुणा नंदी ने इस पर जो कहा है, उस पर ध्यान दिया जाना चाहिए! करुणा नंदी ने कहा कि सेक्स वर्कर के मामलों में यौन संबंधों की अपेक्षा होती है!
इस बात जस्टिस हरी शंकर ने असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि वह इस बात से सहमत नहीं हैं. उन्होंने कहा कि आप केवल स्त्री के नजरिये से ही देख रहे हैं. यदि असहमति को अपराध बना देंगे और बलात्कार बना देंगे तो पुरुष दण्डित होगा और लड़की की पीड़ा से संवेदना है, परन्तु हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि पुरुष को दस साल की जेल होगी.
परन्तु अमिकस क्युरी एड्वोकेट राव का कहना था कि यदि एक अविवाहित महिला धारा 375 के अंतर्गत बलात्कार का मामला दर्ज करा सकती है, और एक विवाहिता किसी और पुरुष के लिए यह मामला दर्ज करा सकती है, तो उसके पति को क्यों छूट मिलनी चाहिए! अभी इस मामले में सुनवाई जारी है और सोमवार को यह जारी रहेगा.
सोशल मीडिया पर हो रहा है मुखर विरोध
इस मामले पर आम जनता खुलकर इसके विरोध में आ गयी है. क्योंकि यह सभी को दिखाई दे रहा है कि यह कानून हिन्दू परिवारों को तोड़ने का सबसे बड़ा हथियार साबित होने जा रहा है. यह भी बहुत अचंभित करने वाली बात है कि परत दर परत कानूनों को हिन्दू परिवारों के विरुद्ध बनाया जा रहा है और पारिवारिक विघटन में यह कानून सबसे बड़े सहायक सिद्ध हो रहे हैं.
498ए अर्थात दहेज़ के मामलों को लेकर जो कानून बने हैं, उसका दुरूपयोग आज तक हो रहा है. इस विषय पर दीपिका नारायण भारद्वाज की ने एक डाक्यूमेंट्री बनाई थी, जिसमें पीड़ित पतियों की कहानियाँ हैं. स्वरुप सरकार नामक व्यक्ति का कहना है कि कानून इस अनुमान पर बने हैं कि जो लड़की ने कहा वही 100% सही है!
हाल ही में सोनीपत में एक युवती ने अपने ससुराल वालों पर दहेज़ का मुकदमा कर दिया था,और प्रताड़ना से तंग आकर पूरे परिवार ने जहर खा लिया था.
हाल ही में न्यायालय ने व्याभिचार को गैर-दंडनीय घोषित कर दिया था. वर्ष 2018 में न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि व्याभिचार तलाक का कारण बन सकता है, परन्तु यह दंडनीय नहीं है. हालांकि केंद्र सरकार ने न्यायालय के इस तर्क का तब भी यह कहते हुए विरोध किया था कि इससे परिवार पर असर पड़ेगा!
इसी विसंगति को दिखाते हुए कई यूजर ने सोशल मीडिया पर मामले लिखे
इस ट्वीट में विकास सारस्वत ने लिखा है कि एक गैर मर्द के साथ पत्नी आपत्तिजनक स्थिति में पाई जाती है, और वह अपने पति को आठ माह तक जेल भिजवाने में सफल रहती है. फिर वह कहते हैं कि मरिटल रेप पर गुस्सा सभी महिलाओं को लेकर नहीं है, परन्तु कुछ कुत्सित इरादों वाली महिलाओं को अनावश्यक हथियार मिल जाएग!
दीपिका नारायण भारद्वाज ने भी ट्वीट किया:
जबकि टाइम्स ऑफ इंडिया में वर्ष 2019 में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी जिसमें यह लिखा था कि नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार इंडियन पेनल कोड की धारा 376 के अंतर्गत दर्ज 74% मामलों में लड़का छूट जाता है.
मैरिटल रेप पर हो रही यह बहस कहीं न कहीं स्वतंत्रता की सीमा को भी परिभाषित करती है कि कितना दखल हो!
Mukhar hokar es vishay par charcha ek maatr vikalp dikhta hai. Judiciary ka is kadar hindu marriage sanskar ko samajh na paana unki badi bhool hai. 498 se koi seekh nahi Lena ye Darshta hai ki ye foreign funded agenda ke saath hai aur hindu culture ki ghor nasamjhi hai inme.