सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है वह हमारी धार्मिक आस्था पर गहरी चोट है। आस्था पर चोट करने वाले सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को कुछ लोग अपनी जीत बता रहे हैं लेकिन इन लोगो के इतर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर रिपब्लिक टीवी के एक कार्यक्रम में जर्मन महिला विद्वान मारिया विर्थ ने सवाल खड़े किये हैं। उनके द्वारा उठाए गए सवाल सुप्रीम कोर्ट को भी आईना दिखाता है। उन्होंने पूछा है कि यह कैसी और किसकी जीत है? उन महिलाओं की जो अपनी परंपरा का आदर करते हुए सबरीमाला मंदिर में महिला प्रवेश के निषिद्ध को सही मानती हैं? या फिर उनकी जो अपनी परंपरा का निरादर कर मंदिर में सिर्फ प्रवेश की आजादी चाहती है? जर्मन महिला मारिआ विर्थ ने आगे जो सवाल किया है वह काफी रोचक है। उन्होंने पूछा है क्या उनकी जीत मंदिर में प्रवेश के लिए है या पूजा के लिए? ध्यान रहे कि जो जीत मना रहे हैं वे पूजा में विश्वास तक नहीं करते, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने हराया है वे पूजा करने वाले हैं। अब निर्णय कर लीजिए कि सुप्रीम कोर्ट ने क्या न्याय दिया है और किसको दिया है? इससे किसकी जीत हुई हैं और किसकी हार?
मुख्य बिंदु
* धार्मिक आस्था में विश्वास करने वालों के खिलाफ और पूजा में विश्वास नहीं रखने वालों के पक्ष में हैं सुप्रीम कोर्ट का फैसला
* अदालत को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत मंदिर और भगवान संरक्षित हैं
Republic TV calls #SabrimalaVerdict a victory. How?
Will those women who respect their tradition go to #Sabarimala?
Probably not.
Do those who don't respect their tradition go?
Maybe some – but
for what?
Probably not to pray…
— maria wirth (@mariawirth1) September 28, 2018
सुपीम कोर्ट का यह फैसला निश्चित रूप से मार्या शकील जैसी महिलाओं की जीत हो सकती है, जिसे मंदिर की पवित्रता से नहीं बल्कि उन्मुक्त आजादी से मतलब है तभी तो उसने सबरीमाला में पवेश करने की खुली चुनौती दी है। लेकिन मार्या शकील को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने से पहले हाजी अली मसजिद में प्रवेश करने का साहस दिखाना चाहिए। उनकी इस चुनौती भरे ट्वीट का नुपूर जे शर्मा ने मुंहतोड़ जवाब दिया है। उन्होंने रिट्वीट करते हुए अपने जवाब में लिखा है कि जिन महिलाओं को भगवान अयप्पा पर अटूट विश्वास है या जिनको पता है कि सबरीमाला मंदिर में स्थापित भगवान किसका प्रतिनिधित्व करते हैं वे निश्चित रूप से उसमें प्रवेश नहीं करेंगी। लेकिन जिन्हें इस सबके बारे में कुछ पता ही नहीं, जो कभी किसी मंदिर में गए ही नहीं वही ट्वीटर पर इस जीत पर आनंदित होगे या फिर सबरीमाला मंदिर में प्रवेश को आतुर होगें
Women who believe in Lord Ayyappa, have true faith in what the deity represents won’t enter Sabarimala. The ones who don’t, will celebrate on Twitter and never go to the temple in any case. https://t.co/vz4zfiIcra
— Nupur J Sharma (@UnSubtleDesi) September 28, 2018
हमारी संस्कृति, संस्कार तथा धार्मिक आस्था पर जहां दूसरे देशों का भरोसा बढ़ता जा रहा है वहीं अपने ही देश के कुछ लोग हैं जो इसे खत्म करने पर तुले हैं, जिसमें हमारा अपना सर्वोच्च न्यायालय भी अनायास साझीदार बनने लगा है। यह भी गौर करने वाली बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस सबरीमाला मंदिर में महिला प्रवेश को लेकर 4-1 के बहुमत से फैसला सुनाया है, उसमें अलग मत रखने वाली अर्थात सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को गलत मानने वाली कोई और नहीं बल्कि महिला जज इंदु मल्होत्रा हैं।
यह बंधन पिछले 800 सालों से था, और इतनी पुरानी मान्यता को केवल दूसरे समुदाय की मांग पर ध्वस्त करना सुप्रीम कोर्ट की समझदारी को बयान करने के लिए काफी है। गौरतलब है कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के लिए याचिका डालने वाला कोई हिंदू नहीं, बल्कि मुसलिम नौशाद अहमद खान है
इंदु मल्होत्रा ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मामले पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच के फैसले में अपना अलग मत रखा है। उन्होंने कहा है कि गहरी धार्मिक आस्था के मामले में अदालत को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे संविधान में अनुच्छेद-25 के तहत मंदिर और भगवान संरक्षित किए गए हैं। इसलिए जब तक उस धर्म या संभाग का कोई पीड़ित व्यक्ति हस्तक्षेप करने की याचिका नहीं देता तब तक अदालत को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। न्यायमूर्ति मल्होत्रा ने कहा है कि धार्मिक मान्यताओं पर तार्किकता को तरजीह नहीं दिया जाना चाहिए, वो भी तब जब एक खास वर्ग अनाम धर्म के गठन के प्रति संघर्षरत हो। उन्होंने कहा है कि यह सर्वविदित है कि सबरीमाला में पूजा करने वाले ही उसे दान देते हैं और सबरीमाला मदिर को देवस्वाम बोर्ड से धन मिलता है न कि उसे सीएफआई कोई फंड देता है। ऐसे में उन लोगों का तो कोई संबंध भी नहीं बनता जो सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की लड़ाई लड़ रहे थे।
URL: Shabari Mala case: Germany’s woman showed mirror to Supreme Court
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