भारत की सांस्कृतिक विविधता को लेकर एक मशहूर कहावत है, ‘ कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वानी’. हर क्षेत्र की इतनी सारी अलहदा सांस्कृतिक विविधतायें हैं कि अगर इनका ब्यौरा लिखने बैठें तो शायद साल भर की अवधि भी कम पड़ेगी. दिल्ली स्थित जाने माने सांस्कृतिक केंद्र इंडिया इंटर्नेशनल सेंटर के संस्कृति महोत्सव में कुछ इसी प्रकार अवध के रंगों की छटायें बिखरीं.
अवध या उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का एक बहुत ही समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास रहा है. संगीत, नृत्यकला ,साहित्य से लेकर हस्तकला और हस्तशिल्प कारीगरी के लिये ये शहर पूरी दुनिया में मशहूर रहा है. आज भी लखनऊ का नाम जब ज़बान पर आता है तो ज़ेहन में नज़ाकत, नफासत, अदबो अदब और कला को बहुत ही तवज्जो देने वाली संस्कृति का चित्र ज़ेहन में उभर आता है. आम लोगों के लिये, अगर वो कभी लखनऊ न भी गये हो, इसका सीधा संबंध चिकनकारी से जुड़्ता है. महिलाओं के परिधानों के फैशन से खुद्द को जोड़्कर चिकनकारी की कसीदाकारी ने पूरे विश्व में नाम कमाया है. इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के संस्कृति महोत्सव ने लखनऊ की उन तमाम हस्त कलाओं को जीवंत कर दिया, जिनमे से कई के बारे में आपको ज़्यादा जानकारी भी नहीं होगी.
अबध से चांद वर्क कला प्रदर्शनी ने किया आव्ध की संस्कृति को दिल्ली में जीवंत
अवध से चांद वर्क नाम की इस कला प्रदर्शनी में पुरानी तस्वीरों, किताबों, चिट्ठियों, शिल्पकृतियों और अभिलेखीय वस्त्रों के ज़रिये अवध के समय के लखनऊ को फिर से जीवंत करने का प्रयास किया गया. एक पुराने तबले से लेकर हार्मोनियम से लेकर इत्र और हस्तकला से बने पुराने शतरंज के बोर्ड भी इस प्रदर्शनी का हिस्सा थे. लखनऊ की विविध शिल्प-कलाओं में जहां इस शहर की मिली जुली गंगा जमुनी तहज़ीब या हिंदु मुस्लिम संस्कृति का इतिहास छपा है, वहीं इस शहर के इतिहास का एक ऐसा आयाम भी रहा है जिसके बारे में ज़्यादा लिखा नहीं गया. यहां बंगाली, पंजाबी, मराठी, सिंधी , गुजराती, कुमाउनी, गढ़्वाली, उड़िया, एंग्लो इंडियन आदि विभिन्न समुदायों के लोग भारत के कोने कोने से आकर बसे. यहां तक कि दूसरे देशों के लोग जैसे कि चीनी लोग भी लखनऊ में आकर बसे. लखनऊ की इस बहुरंगी, मल्टीकल्चरल विरासत को भी प्रदर्शनी ने बखूबी चित्रित किया.
इसके अलावा संस्कृति महोत्सव में अवध् या लखनऊ के कारीगरों के स्टांल भी लगे थे जहां कारीगर खुद मौजूद थे और बहुत सी हस्तशिल्प कलाओं का लाइव डेमोंस्ट्रेशन भी दे रहे थे. चिकनकारी के रंग बिरंगे कुरतों से सजे स्टांल, हवा में इत्र के घुलने सी भीनी भीनी खुशबू, कानों मे पारंपरिक संगीत के मधुर स्वरों की झंकार और अपनी अपनी कलाओं का नमूना दिखाते विभिन्न कलाकार, ये सभी चीज़ें मिल जुलकर वातावरण को मोहक बना रही थी.
हस्तशिल्प कारीगरों की आजीविका सुधारने के लिये सरकार भी कर रही है भरसक प्रयास
भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने हस्तशिल्प कारीगरों की आजीविका सुधारने के लिये बहुत से ठोस कदम उठाये हैं. सरकार की योजना के तहत देश भर, मसलन कि देश के हर राज्य में बहुत सी हुनर हाटों का आयोजन है जिससे गांवों, कस्बों से आये हस्तशिल्प कारीगर सम्मिलित होते हैं और अपनी बनाई हुई वस्तुओं के लिये एक बेहतरीन मार्केट पाते हैं. राजधानी दिल्ली में ही कितनी ही महिला हाटों का भी आयोजन होता है जिसके अंतर्गत महिला किसानों से लेकर महिला कारीगर और दस्तकार भी सम्मिलित हो अपने प्रोड्कट्स को बेचने के लिये एक उपयुक्त बाज़ार पाते हैं.
पाठ्यक्रम में शामिल किया जाये भारत की बेजोड़ हस्तशिल्प कलाओं को भी
भारत के पास हस्तशिल्प कलाओं की जो बेजोड़ विरासत है, उसे अगर लोगों की आजीविका से सुनियोजित तरीके से जोड़ा जाये तो बेरोज़गारी की समस्या भी काफी हद तक हल हो सकती है. और सरकार इस क्षेत्र में बहुत से प्रयास कर भी रही है. भारत के पास पारंपरिक कलाओं का अनमोल खज़ाना है, ऐसी कलायें जो कि पीढ़ी दर पीढ़ी से चली आ रही हैं. और इन कलाओं के प्रति आज की युवा पीढ़ी में जितनी रुचि पैदा होगी, उतनी ही ये कलायें आगे बढेंगी. बात सिर्फ इन हस्त्शिल्प कलाकारों की आजीविका तक सीमित नहीं है. इन कलाओं की ऐसी ब्रांडिंग होनी चाहिये कि जिस प्रकार आर्ट के कांलेजों में वेस्टर्न आर्ट और पेंटिंग पढ़ाये जाते हैं, उस प्रकार भारतीय हस्तकलाओं पर भी पढ़ाई हो, इन्हे भी पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाये. आजादी के इतने वर्ष बाद भी क्यों भला हम आज भी अपनी पढ़ाई का अधिकतर पाठ्यक्रम पश्चिम से आयात करते हैं, जब हमारे खुद के पास कलाओं का इतना अद्धितीय खज़ाना है तो. ऐसा करने की सबसे पहली सीढ़ी यही है कि इस प्रकार के कार्यक्रम अधिक से अधिक आयोजित हों जिनके माध्यम से देश की युवा पीढ़ी में कला और कलाकारों के प्रति रूचि और लगाव पैदा हो.