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India Speaks Daily > Blog > पाॅप कल्चर > मूवी रिव्यू > Movie Review : रिलीज होते ही बॉक्स ऑफिस पर ढह गई शमशेरा
मूवी रिव्यू

Movie Review : रिलीज होते ही बॉक्स ऑफिस पर ढह गई शमशेरा

Vipul Rege
Last updated: 2022/07/25 at 5:58 PM
By Vipul Rege 54 Views 5 Min Read
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5 Min Read
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विपुल रेगे। जैसे बैटमैन के आने की सूचना चमगादड़ देते हैं, वैसे ही शमशेरा के आने की ख़बर कौए देते हैं। शमशेरा का भी एक सेनापति है, जैसा बाहुबली का कट्टपा हुआ करता था। शमशेरा का लुक एक पुराने वीडियो गेम असासिंस क्रीड की याद दिलाता है। जब वह जंगल में होता है तो फिल्म का बैकग्राउंड संगीत कंग-फ़ू एक्शन वाली चीनी फिल्म सा हो जाता है। आदित्य चोपड़ा और करण मल्होत्रा का अपराध केवल ये नहीं कि उन्होंने एक बदतर फिल्म से हमारा सप्ताहांत बिगाड़ दिया है बल्कि ये भी है कि उन्होंने समरसता से जी रहे भारतीय समाज पर घृणित जातिवादी मानसिकता लादने का प्रयास किया है।

एक आदिवासी समाज अंग्रेज़ों से धोखा खाने के बाद एक बड़े से किले में कैद कर दिया गया है। इस समूह के मुखिया को भी मार दिया गया है। मुखिया शमशेरा का बेटा बल्ली बड़ा होकर अपने लोगों को एकजुट करता है और पिता की मौत का प्रतिशोध लेकर अपने समूह को स्वतंत्र करवाता है। इस वन लाइनर स्टोरी लाइन में असीम संभावनाएं छुपी बैठी थी। इस कथानक पर एक बड़ा ही प्रभावी स्क्रीनप्ले बनाया जा सकता था लेकिन निर्माता आदित्य चोपड़ा को जातिवादी  फिल्म बनानी थी।

दुर्भाग्य से आदित्य चोपड़ा और निर्देशक करण मल्होत्रा की सुईं सत्तर के दशक की फिल्मों पर ही अटकी पड़ी है, जिनमे एक अत्याचारी बनिया, क्रूर ब्राम्हण और जमीन हड़प जाने वाला जमींदार होता था। एक तय फार्मूला है, जिसे एक पीरियड फिल्म पर खतरनाक ढंग से लागू किया गया। परिणाम ये रहा कि रिलीज के दो दिन बाद से ही फिल्म के शो कैंसल होने लगे। शमशेरा में किसी को स्वतंत्रता संग्राम के दर्शन हुए हो तो बताए।

जिन अंग्रेज़ों के विरुद्ध लड़ रहे हो, वे आधे घंटे के लिए भी परदे पर ठीक से दिखाई नहीं देते। अंग्रेज़ों से भारी वह शुद्ध सिंह होता है, जो स्वयं अंग्रेज़ों का नौकर है। एक नौकर अपने मालिकों पर भारी है। ऐसे तर्क निर्देशक करण मल्होत्रा कहाँ से लेकर आए हैं, वहीं जाने। करण पश्चिमी फिल्मों से इतने प्रभावित हैं कि उन्होंने उधर से कंटेंट उठाकर इधर चेंपने में ज़रा भी दिमाग नहीं लगाया। ये कौए शमशेरा के दोस्त क्यों हैं ? वे उसकी मदद क्यों करना चाहते हैं ?

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ये सब आपको दिखाना पड़ेगा, तब दर्शक मान लेगा कि कौए शमशेरा के लिए अपनी जान देने के लिए क्यों तैयार है। फिल्मों में चमत्कार भी स्वीकार किये जाते हैं, बस आपको तर्क के साथ दिखाने की आवश्यकता है। रणवीर कपूर एक मिस्टीरियस केस बन चुके हैं। एक अद्भुत प्रतिभा का धनी अभिनेता हमेशा गलत चयन करता है। रणवीर का इतिहास बताता है कि गलत चुनाव के कारण वे प्रतिभाशाली होते हुए भी फ्लॉप हैं। संजय दत्त क्या भूल गए हैं कि अभिनय में वेरिएशन लाना चाहिए।

केजीएफ : 2 और भुज जैसा ही किरदार उन्होंने यहाँ निभा दिया है। वाणी कपूर से विशेष प्रेम आदित्य चोपड़ा की नैया डूबा सकता है। वे इस फिल्म में क्यों हैं ?  व्यक्तित्व अठारहवीं सदी की एक महिला के अनुरुप तो बिलकुल नहीं लगता है। सौरभ शुक्ला को इस फिल्म में लेकर बर्बाद ही किया गया है। उनसे बहुत बेहतर काम लिया जा सकता था। आदित्य चोपड़ा को अपनी यादों को रिकॉल करना चाहिए। उनके पिता द्वारा स्थापित यशराज फिल्म्स कभी कंपनी नहीं रही। वह एक फिल्म निर्माण संस्था थी।

यश चोपड़ा की आधार भूमि प्रेम था। प्रेम कहानियों ने उनको स्थापित किया। स्वयं आदित्य चोपड़ा ने एक प्रेम कहानी दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे बनाकर फिल्म जगत में पदार्पण किया था। वीर ज़ारा के बाद यशराज की फिल्मों का स्तर धीमे-धीमे गिरने लगा था। आज यशराज फिल्म्स भरोसे का नाम नहीं रहा। कभी एक समय था, जब यश चोपड़ा का नाम पोस्टर पर देखकर लोग फिल्म देखने चले जाते थे। उस स्वर्णिम युग को आदित्य चोपड़ा बरक़रार नहीं रख सके।

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TAGGED: Aditya Chopda, Box office, Director: Karan Malhotra, Movie Review by Vipul Rege, ranbir kapoor, Ronit roy, saurabh shukla, Shamshera, Vani kapoor, Yashraj films
Vipul Rege July 24, 2022
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Vipul Rege
Posted by Vipul Rege
पत्रकार/ लेखक/ फिल्म समीक्षक पिछले पंद्रह साल से पत्रकारिता और लेखन के क्षेत्र में सक्रिय। दैनिक भास्कर, नईदुनिया, पत्रिका, स्वदेश में बतौर पत्रकार सेवाएं दी। सामाजिक सरोकार के अभियानों को अंजाम दिया। पर्यावरण और पानी के लिए रचनात्मक कार्य किए। सन 2007 से फिल्म समीक्षक के रूप में भी सेवाएं दी है। वर्तमान में पुस्तक लेखन, फिल्म समीक्षक और सोशल मीडिया लेखक के रूप में सक्रिय हैं।
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