श्वेता पुरोहित-
पाठको! नमस्कार, आप घबराइये नहीं, हाँ, मेरा ही नाम शनि है। लोगों ने बिना वजह मुझे हमेशा नुकसान पहुँचानेवाला ग्रह बताया है। फलस्वरूप लोग मेरे नामसे डर जाते हैं। मैं आपको यह स्पष्ट कर देना अपना दायित्व समझता हूँ कि मैं किसी भी व्यक्तिको अकारण परेशान नहीं करता। हाँ, यह बात अलग है कि मैंने जब भगवान् शिवकी उपासना की थी, तब उन्होंने मुझे दण्डनायक ग्रह घोषित करके नवग्रहों में स्थान प्रदान किया था। यही कारण है कि मैं मनुष्य हो या देव, पशु हो या पक्षी, राजा हो या रंक—सबके लिये उनके कर्मानुसार उनके दण्डका निर्णय करता हूँ तथा दण्ड देने में निष्पक्ष निर्णय लेता हूँ फिर चाहे व्यक्तिका कर्म इस जन्मका हो या पूर्वजन्मका । सत्ययुगमें ही नहीं, कलियुगमें भी न्यायपालिकाद्वारा चोरी- अपराध आदिकी सजा देनेका प्रावधान है। यह व्यवस्था समाजको आपराधिक प्रवृत्तिसे बचाये रखने हेतु की गयी है, जिससे स्वच्छ समाजका निर्माण हो तथा अपराधकी पुनरावृत्ति न हो। मेरी निष्पक्षता और मेरा दण्डविधान जगजाहिर है। यदि अपराध या गलती की है तो फिर देव हो या मनुष्य, पशु हो या पक्षी, माता हो या पिता मेरे लिये सब समान हैं। मेरे पिता सूर्य जब मेरी माता छायाको प्रताडित किया तो मैंने उनका भी घोर विरोध करके उन्हें पीड़ा पहुँचायी। फलस्वरूप वे हमेशाके लिये मुझसे नाराज हो गये और आजतक शत्रुतुल्य व्यवहार ही करते हैं। यहाँ यह भी उल्लेख करना प्रासंगिक समझता हूँ कि यदि व्यक्तिने पूर्वजन्ममें अच्छे कर्म किये हैं तो मैं उसकी जन्मपत्रीमें अपनी उच्च राशि या स्व राशिपर प्रतिष्ठापित होकर उसे भरपूर लाभ भी पहुँचाता हूँ। अब आप मेरी प्रवृत्तिके बारे में भलीभाँति परिचित हो गये होंगे। आइये, आज मैं आपको अपने सम्पूर्ण परिचयसे अवगत कराता हूँ।
🪐 ज्येष्ठ कृष्ण अमावास्याको मेरा जन्म हुआ था। मेरे पिताका नाम सूर्य तथा माताका नाम छाया है। हम पाँच भाई-बहन हैं। यमराज मेरे अनुज हैं तथा तपती, भद्रा, और यमुना मेरी सगी बहनें हैं। लोग मुझे अनेक नामोंसे जानते हैं। कुछ लोग मुझे मन्द, शनैश्चर, सूर्यसूनु, सूर्यज, अर्कपुत्र, नील, भास्करी, असित, छायात्मज आदि कहकर भी सम्बोधित करते हैं । मेरा आधिपत्य मकर एवं कुम्भ राशि तथा पुष्य, अनुराधा एवं उत्तरा भाद्रपदा नक्षत्रपर है।
🪐 मैं अस्त होनेके ३८ दिनके अनन्तर उदय होता हूँ। मेरी उच्च राशि तुला तथा नीच राशि मे है। जन्मकुण्डली १२ भावोंमें मैं ८वें, १०वें एवं १२वें भावका कारक हूँ। जब मैं तुला, कुम्भ या मकर राशिपर विचरण करता हूँ, उस अवधि में किसीका जन्म हो तो मैं रंकसे राजा भी बना देनेमें देर नहीं करता। यदि जातकके जन्मके समय मैं मिथुन, कर्क, कन्या, धनु अथवा मीन राशिपर विचरण करता हूँ तो परिणाम मध्यम; मेष, सिंह तथा वृश्चिकपर स्थित होऊँ तो प्रतिकूल परिणामके लिये तैयार रहना चाहिये। हस्तरेखाशास्त्रमें मध्यमा अँगुली के नीचे मेरा स्थान है तथा अंकज्योतिषके अनुसार प्रत्येक माह ८, १७, २६ तारीखका मैं स्वामी हूँ। मैं ३० वर्षोंमें समस्त राशियोंका भ्रमण कर लेता हूँ। एक बार साढ़ेसाती आनेके पश्चात् ३० वर्षोंके बाद ही व्यक्ति मुझसे प्रभावित होता है। अपवादको छोड़ दिया जाय तो व्यक्ति अपने जीवनमें तीन बार मेरी साढ़ेसाती से साक्षात्कार करता है।
🪐 आपने यह कहावत सुनी ही होगी कि ‘जाको प्रभु दारुण दुःख देहीं, ताकी मति पहले हरि लेहीं ॥ ‘ मेरा भी यही सिद्धान्त है, जिस व्यक्तिको मुझे दण्ड देना हो, मैं पहले उसकी बुद्धिपर अपना आक्रमण करता हूँ अथवा उसे दण्ड देनेके लिये किसी अन्यकी बुद्धिका नाश करके जातकको दण्ड देनेका कारण बना देता हूँ। कोई अपराध करता है तो मेरी अदालतमें उसे पूर्व में किये हुए बुरे कर्मोंका दण्ड पहले मिलता है, बादमें मुकदमा इस आशयका चलता है कि उसके आचरण एवं चाल-चलनमें सुधार हुआ है या नहीं। यदि दण्ड मिलते-मिलते जातक स्वयंमें सुधार कर लेता है तो उसकी सजा समाप्त करते हुए उसे पूर्वकी यथास्थितिमें लाने का निर्णय लेता हूँ। साथ ही यदि उसका चाल- चलन उत्कृष्ट रहा हो तो उसे अपनी दशा अर्थात् सजाकी अवधिके पश्चात् अपार धन-दौलत तथा वैभवसे प्रतिष्ठापित कर देता हूँ।
🪐 सजायोग्य अपराध – भ्रष्टाचार, झूठी गवाही, विकलांगों को सताना, भिखारियोंको अपमानित करना, चोरी, रिश्वत, चालाकीसे धन हड़पना, जुआ खेलना, नशा – जैसे शराब-गुटका तम्बाकू खाना, व्यभिचार करना, परस्त्रीगमन, अपने माता-पिता या सेवकका अपमान करना, चींटी- कुत्ते या कौए को मारना आदि। इन अपराधोंकी कम या ज्यादा सजा मेरी अदालतमें अवश्य ही मिलती है।
🪐 वेशभूषा – न्यायक्षेत्र में काले रंगको विशेष स्थान प्राप्त है। मेरी वेशभूषा इसी कारण काली है। आज भी न्यायालयमें न्यायाधीश या वकील काला कोट तथा काला गाउन ही पहनते हैं। यहाँतक कि न्यायकी देवीकी आँखोंपर भी काली पट्टी ही बँधी हुई है।
🪐 मेरा मन्दिर – मेरी पूजा कहीं भी किसी भी प्रकारसे श्रद्धापूर्वक की जा सकती है। कण-कणमें भगवान् हैं। यह सभीको ध्यान रखना चाहिये। अनेक स्थानोंपर मेरी पूजा होती है, फिर भी मैं अपने प्रसिद्ध मन्दिरके बारेमें थोड़ी जानकारी अवश्य दूँगा। महाराष्ट्र के नासिक जिलेमें शिरडीसे कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर मेरा मन्दिर है । वहाँ मेरी प्रतिमा विद्यमान है। इस प्रतिमाका कोई आकार नहीं है; क्योंकि यह पाषाणखण्डके आकारमें मेरे ही ग्रहसे उल्कापिण्डके रूपमें प्रकट हुई है। यहाँ मेरी निश्चित परिधिमें कोई भी व्यक्ति चोरी या अन्य अपराध नहीं कर सकता। यदि भूलवश कर ले तो उसे इतना भारी और कठोर दण्ड मिलता है कि उसकी सात पीढ़ियाँ भी भूल नहीं सकतीं। यही कारण है कि इस स्थानपर कोई व्यक्ति अपने मकान या दूकानमें ताला नहीं लगाता । ताला लगाना तो दूर, यहाँ मकानोंमें किवाड़तक नहीं हैं। यहाँ रहने और आनेवालोंको मुझपर पूर्ण विश्वास है। मैं उनकी हरसम्भव रक्षा करता हूँ । मेरी दशामें किस तरह लोग कष्ट उठाते हैं, यह इन पौराणिक सन्दर्भोंसे ज्ञात हो जायगा-पाण्डवोंको वनवास – जब पाण्डवोंकी जन्म- पत्री मेरी दशा आयी तो मैंने ही द्रौपदीकी बुद्धि भ्रमित करके कड़वे वचन कहलाये, परिणामस्वरूप पाण्डवोंको वनवास मिला।
🪐 रावणकी दुर्गति – छ: शास्त्र और अठारह पुराणोंके प्रकाण्ड पण्डित रावणका पराक्रम तीनों लोकोंमें फैला हुआ था। मेरी दशामें रावण घबरा गया। अपने बचाव के लिये वह मुझपर आक्रमण करनेपर उतारू हो गया। उसने शिवसे प्राप्त त्रिशूलसे मुझे घायल करके अपने बन्दीगृहमें उलटा लटका दिया। लंकाको जलाते समय हनुमान्जीने देखा कि मुझे उलटा लटका रखा है। हनुमान्जीने मुझे छुटकारा दिलाया। मैंने हनुमानजी से मेरेयोग्य सेवा बतानेका अनुरोध किया तो हनुमान्जीने कहा कि तुम मेरे भक्तोंको कष्ट मत देना। मैंने तुरंत अपनी सहमति दे दी। अन्तमें राम-रावण-युद्धमें मैंने रावणको परिवारसहित नष्ट करनेमें अपनी कुदृष्टिका भरपूर प्रयोग किया। परिणामस्वरूप श्रीरामकी विजय हुई।
🪐 वेशभूषा – विक्रमादित्यपर मेरी दशा आयी तो मयूरका चित्र ही हारको निगल गया । विक्रमादित्य को तेलीके घरपर कोल्हू चलाना पड़ा।
🪐 राजा हरिश्चन्द्रको परेशानी – राजा हरिश्चन्द्रको मेरी दशामें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं। उनका परिवार बिछुड़ गया। स्वयंको श्मशानमें नौकरी करनी पड़ी।
🌾🪐 यदि आप चाहते हैं कि मैं हमेशा आपसे प्रसन्न रहूँ तो आप निम्न उपाय करें तो मैं विश्वास दिलाता हूँ कि मैं हमेशा आपकी रक्षा करूँगा- हनुमदुपासना, सूर्य उपासना, शनिचालीसाका पाठ, पीपल के वृक्षकी पूजा, ज्योतिषीसे परामर्शकर नीलम या जमुनियाका धारण, काले घोड़ेकी नालसे बनी अँगूठीका धारण शनि-अष्टकका पाठ करें। अन्तमें आप सभीको आशीर्वाद एवं शुभकामनाएँ देते हुए मैं अपनी बात समाप्त करता हूँ।
आप सबको शनि जयंती की शुभकामनाएं