अंतिम-आशा शंकराचार्य हैं
अब्बासी-हिंदू भारत का नेता , केवल पाप किया करता है ;
दुनिया का कोई पाप नहीं है , जिसे ये नहीं करता है ।
चौबीसों-घंटे साजिश रचता , कोई भी अच्छा काम नहीं है ;
गलत-मार्ग से सत्ता पाता , देश-भक्ति का नाम नहीं है ।
पाखण्ड भरा पूरा जीवन है , कभी नहीं ये सत्य बोलता ;
जुमलेबाजी व लफ्फाजी , केवल धोखेबाजी करता ।
धर्म , देश का नहीं जो नेता , वो किसका हो सकता है ?
पत्नी-परिवार की बात ही छोड़ो ,भारत-वर्ष तोड़ सकता है ।
नहीं धर्म का नहीं देश का , सोचो ये नेता किसका है ?
मेगालोमीनिया से पीड़ित है , पूरा दिमाग ही खिसका है ।
जिस वाहन का चालक ऐसा हो , वाहन गड्ढे में जायेगा ;
मुश्किल है अब देश का बचना , सम्भवत: मिट जायेगा ।
जब नाविक ही नाव डुबोये , उसको कौन बचा सकता है ?
नहीं जानता हिंदू ! तैरना , केवल डूब ही सकता है ।
हिंदू ! पर सबसे बड़ा है संकट, म्लेच्छो की ही मौज यहाॅं ;
अग्निवीर के जरिये तोड़ी , अब ताकतवर फौज कहाॅं ?
हिंदू पर संकट देश पर संकट , इस नेता के कारण है ;
हालांकि इन सबके पीछे , अज्ञानी-हिंदू खुद कारण है ।
शत्रु-बोध बिल्कुल भी नहीं है , जीता-युद्ध हारता है ;
सद्गुण – विकृति भरी हुयी है , हारे – शत्रु छोड़ता है ।
हारा-शत्रु कभी न छोड़ो , फिर से हमला कर सकता है ;
पृथ्वीराज चौहान की तरह , हिंदू – राज मिट सकता है ।
धर्म छोड़ने के ही कारण , हिंदू ! कितने कमजोर हुये ?
शत्रु-बोध मिट चुका है पूरा , मरने को मजबूर हुये ।
अब्बासी-हिंदू जैसा पापी , जिस किसी कौम का नेता होगा ;
उसको तो निश्चित मिटना है , कोई बदलाव नहीं होगा ।
हिंदू ! का नेता बना हुआ है , ये अब्बासी-हिंदू नेता ;
भेड़ की खाल में छिपा भेड़िया, जो हिंदू की जान ही लेता ।
जब तक बुद्धि शुद्ध न होगी , हिंदू ! यूॅं ही पिटा करेगा ;
धर्म-सनातन में आना होगा , वरना यूॅं ही मिटा करेगा ।
जीना – मरना हाथ में तेरे , हिंदू ! एक को चुनना होगा ;
हिंदू ! तू यदि जीना चाहे , धर्म-मार्ग में आना होगा ।
हिंदू का अब भी सौभाग्य बचा है, शंकराचार्यों के रूप में ;
इनकी शरण में आओ हिंदू ! चारों हैं धर्म के रूप में ।
अंतिम-आशा शंकराचार्य हैं , ये ही तुझे बचा सकते हैं ;
वरना अब्बासी-हिंदू नेता , भारतवर्ष मिटा सकते हैं ।