केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और आरएसएस पर मोदी की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाने वाली जेएनयू की छात्र शेहला राशिद शोरा एक ऐसी ही जहरीली कम्युनिस्ट हैं जो सरकार के नाम पर देश का विरोध करती रही हैं। वह चाहे जेएनयू में देश के टुकड़े करने के नारे लगाने का मामला हो या देश की सुरक्षा के लिए चुनौती बने माओवादियों की आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता हो। खुलेआम देश विरोधी ताकतों के समर्थन में खड़ी रहती हैं। उन्होंने देश के कानून को धत्ता बताते हुए बिना आधार नंबर के अपना शोध निबंध जमा कर दिया। वो इसलिए नहीं क्योंकि उसे आधार नंबर उपलब्ध नहीं था बल्कि इसलिए क्योंकि वह सरकार के आधार योजना को अपने अनुकूल नहीं मानती है। सवाल ये भी उठता है कि आखिर जेएनयू प्रशासन ने उसकी जिद भरी यह मांग पूरी कैसे होने दी?
सरकार की किसी नीति की लोचना करना या विरोध करना अलग बात है लेकिन देश के कानून की अवहेलना करना बिल्कुल अलग बात। निर्दोष छात्रों के बचाव में आगे आना अलग बात है लेकिन देश विरोधी षडयंत्र में शामिल तथा देश को तोड़ने के नारे लगाने वालों के साथ होना बिल्कुल अलग बात, भीड़ के खिलाफ खड़ा होना अलग बात है लेकिन दुष्प्रचार को बढ़ावा देने के लिए पैसे इकट्ठा करना बिल्कुल अलग बात।
यह एक आम धारणा है कि जेएनयू में दाखिला होने के बाद दो कारणों से लोग कम्युनिस्ट बनते हैं। एक तो जेएनयू में कम्युनिस्ट बनने को फैशन बना दिया है और दूसरा सबसे महत्वपूर्ण वजह है लड़कियों का मोहपाश। जिसके लिए शेहला राशिद शोरा जैसी उन्मुक्त लड़कियां जेएनयू कैंपस में उपयुक्त रही हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए कम्युनिस्ट छात्र संगठनों में लड़कियों को काफी तरजीह भी मिलती रही है। शेहला राशिद ने इसी रास्ते से जेएनयूएसयू की पूर्व उपाध्यक्ष तक का सफर तय किया। तभी तो ये लोग जेएनयू में किसी भी प्रकार के सुधार के खिलाफ हैं। उन्हें डर है कि कहीं इससे उनका वर्चस्व खतरे में न पड़ जाए। यूनियन ग्रांट कमिशन (यूजीसी) ने मई 2016 में अधिसूचना जारी कर जेएनयू में एमफिल और पीएचडी के लिए प्रवेश प्रक्रिया में बदलाव लाना चाह रहा था। लेकिन शेहला राशिद ने इसका विरोध किया। शेहला राशिद जैसी छात्राएं भारतीय संस्कृति और सभ्यता की विविधता के समर्थक नहीं बल्कि अपनी विचारों की एकरूपता के समर्थक हैं।
वह भाजपा सरकार और देश के प्रति झूठी खबरों को प्रसारित करने में भी अग्रसर रही हैं। रोहित वेमुला के बारे में सारी रिपोर्ट सार्वजनिक हो चुकी है कि वह दलित नहीं था, लेकिन वह कानून से इतर इसके लिए संघ और भाजपा को दोषी ठहराने में जुटी हैं। शेहला राशिद भीमा कोरेगांव में आंदोलन के नाम पर मावोवादियों की भीड़ द्वारा मचाए गए उत्पात को भी गलत नहीं मानती, बल्कि उसका समर्थन करती है।
रशीद ने एक बार एक निजी चैनल से बात करते हुए कहा कि जेएनयू में आपके शोध निबंध जमा होने के लिए आपके पास आधार नंबर होना जरूरी होता है। शोध पत्र जमा करने से पहले एक फार्म भरने के लिए दिया गया, जिसमें एक अलग से आधार नंबर के लिए कॉलम बना था। उन्होंने कहा कि चूंकि भाजपा सरकार के अंतर्गत आधार नंबर को सभी व्यक्तिगत डेटा से लिंक कर देने की वजह से उसने आधार नंबर बनवाया ही नहीं। उसने नियम विरुद्ध जाकर अपना एमफिल जमा किया। उन्होंने अपनी इस करतूत को ही अपनी जीत समझती हैं।
जिस प्रकार उसे 2019 में मोदी के खिलाफ प्रचार करने की बात कही है ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वह रिसर्च का काम कब करेंगी? अब चुनाव प्रचार और यूनिवर्सिटी में शोध दोनों काम एक साथ कैसे कर सकती है?
URL: Shehla Rashid Shora a Poisonous Communist
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