विपुल रेगे। शिवशास्त्री बल्बोआ एक बॉक्सिंग कोच है। शिवशास्त्री को सिल्वेस्टर स्टेलोन की फिल्म ‘रॉकी’ से जीने की फिलासफी मिली है। वह देश को कई नामी बॉक्सर दे चुका है। रिटायर होने के बाद शिवशास्त्री अपने बेटे के पास अमेरिका जाता है। यहाँ उसे एक नया बॉक्सिंग रिंग मिलता है, जहाँ पर उसका मुकाबला किसी बॉक्सर से नहीं बल्कि विपरीत परिस्थितियों से होता है। अनुपम खेर और नीना गुप्ता की ‘शिवशास्त्री बल्बोआ’ एक हृदयस्पर्शी यात्रा है। ये यात्रा शिवशास्त्री के जीवन को एक नया अर्थ देती है।
निर्देशक अजयन वेणुगोपालन की ‘शिवशास्त्री बल्बोआ’ बनाना टिकट खिड़की पर एक बड़ा जोखिम था। मैन लीड में अनुपम खेर और नीना गुप्ता जैसे वृद्ध कलाकारों को लिए जाने के बाद बॉक्स ऑफिस पर एक डिसेंट ओपनिंग की उम्मीद नहीं की जा सकती थी। ये तथ्य स्वयं फिल्म निर्माता को पता था। वेलेंटाइन वीक चल रहा है और ‘शिवशास्त्री बल्बोआ’ इस माहौल के मिज़ाज़ की फिल्म कतई नहीं कही जा सकती।
हालाँकि मनोरंजन की दृष्टि से ये एक अच्छी फिल्म है। इसकी कहानी शिवशास्त्री बल्बोआ नामक बॉक्सिंग कोच से शुरु होती है। शिवशास्त्री अमेरिका जाने के बाद एक महिला एल्सा से मिलता है। एल्सा वहां एक घर में नौकर है। एल्सा अपने घर भारत जाना चाहती हैं लेकिन उसका मालिक उसे जाने नहीं देता। शिवशास्त्री का साथ मिलने के बाद एल्सा को लगता है कि वह उसकी मदद से भारत जा सकती है। कहानी यहाँ से ट्विस्ट और टर्न लेती है।
पराये देश में शिवशास्त्री और एल्सा क़ानूनी मुश्किलों में उलझ जाते हैं। इस फिल्म को देखने के कई कारण हैं। इनमे से एक कारण है अनुपम खेर व नीना गुप्ता का सौंधा अभिनय। फिल्म अंत तक इन दोनों के कारण ही जमी रहती है। फिल्म का पहला पार्ट अधिक कैची है। दूसरे पार्ट में निर्देशक ने थ्रिल लाने का प्रयास किया है लेकिन वे कई जगह पर चूक गए हैं। फिल्म कुछ लंबी हो गई है।
लंबाई अखरती है। निर्देशक इस यात्रा में अपने किरदारों की तह तक जाते हैं। हर किरदार का अपना एक बैकग्राउंड है। नीना गुप्ता की निजी कहानी के चलते फिल्म कुछ अधिक खींच जाती है। फिल्म में बहुत से लम्हे ऐसे हैं, जो हंसाते हैं और आँख भी नम कर देते हैं। फिल्म का निचोड़ यही है कि व्यक्ति को जीवन के हर मोड़ पर एक चुनौती मिल सकती है और उसे इस चुनौती को हंसकर स्वीकारना चाहिए।
नीना गुप्ता ने डूबकर अभिनय किया है और वे शो की विजेता सिद्ध हुई हैं। अनुपम खेर इस किरदार में वैसे ही दिखाई दिए, जैसे वे और किरदारों में दिखाई देते हैं। बॉक्स ऑफिस का कड़वा सत्य है कि सेल्युलाइड का पर्दा उम्रदराज़ चेहरे पसंद नहीं करता। सिनेमा युवाओं से चलता है। जिस फिल्म को युवा समर्थन देते हैं, वही बॉक्स ऑफिस पर चल पाती है। ‘शिवशास्त्री बल्बोआ’ एक संवेदनशील फिल्म है।
ऐसी फिल्मों का भविष्य वीकेंड के तीन दिनों से तय नहीं होता। ये फिल्म धीमे-धीमे कलेक्शन करेगी और प्रशंसा भी पाएगी। कम बजट होने का लाभ निर्माता को मिलेगा। यदि भविष्य में फिल्म ओटीटी पर रिलीज होती है तो वहां इसे थियेटर्स से अधिक अच्छा रिस्पॉन्स मिल सकता है। यदि आप मसाला फिल्मों से अलग कुछ देखना चाहते हैं तो ये फिल्म आप देख सकते हैं। इसमें कोई आपत्तिजनक दृश्य नहीं है इसलिए इसे परिवार के साथ देख सकते हैं।