क्रिश्चनिटी के केंद्र वेटिकन सिटी का महत्व विश्व के ईसाई समुदाय के लिए वैसा है, जैसा भारत में अयोध्या का महत्व विश्वभर के हिन्दू समुदाय के लिए है। दोनों ही स्थान पवित्रतम माने जाते हैं। पश्चिम ने अपने महत्वपूर्ण स्थल को कैसा सहेजा है, विश्व जानता है और हमने अयोध्या को कैसा रख छोड़ा था, ये भी संपूर्ण विश्व का हिन्दू जानता है। यूरोप में बसी वेटिकन सिटी के अपने कायदे और कानून हैं।
मुझे ये बात पसंद आई कि आप वहां फोटोग्राफी नहीं कर सकते। आप वहां ड्रोन नहीं उड़ा सकते। दीवार पर बनी किसी प्राचीन पेंटिंग या कलाकृति को छूने भर से आपको जेल हो सकती है। ‘सिस्टिन चैपल’ में आपको मौन बनाए रखने की बाध्यता है। वहां आपको खाना और पानी भी नहीं मिलेगा। वेटिकन में आप कोई हथियार लेकर नहीं जा सकते, यहाँ तक कि आप पुलिसकर्मी हो, फिर भी ये नियम आपको मानना होगा।
आज वेटिकन सिटी की चर्चा इसलिए निकली है, क्योंकि प्रकाश झा की वेबसीरीज ‘आश्रम’ में जिस महल की शूटिंग की गई, उसकी ऐतिहासिकता अयोध्या के महान राजवंश से जुड़ी हुई है। राजा विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र को अयोध्या के राजा का सम्मान दिया जाता है। जिस ‘राजसदन’ में आश्रम की शूटिंग की गई, वह राजा साहब के अधिकार क्षेत्र में ही आता है। मेरे विचार में तो अयोध्या के एक भी कोने में शूटिंग करने की आज्ञा नहीं होनी चाहिए।
किसी बॉलीवुड फिल्म की शूटिंग की आज्ञा तो कतई नहीं देनी चाहिए। योगी आदित्यनाथ उदार व्यक्तित्व के हैं। उन्होंने प्रकाश झा का नाम और फिल्म का धार्मिक नाम ‘आश्रम’ देखकर शूटिंग की आज्ञा दे दी। यही बात राजा विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र के बारे में भी कही जा सकती है। उन्हें भी कहाँ मालूम होगा कि प्रकाश झा जैसा नामी निर्देशक अयोध्या की धरती पर एक ऐसी फिल्म बनाएगा कि वह प्रदर्शित होते ही विवादों में घिर जाएगी।
जाहिर है योगी जी और राजा साहब को अंधेरे में रखकर फिल्म को शूट किया गया था। भारत के राजनीतिज्ञों के उदार मन का गलत लाभ फिल्मकार उठाने के आदी हैं। वे ऐतिहासिक स्थलों की शूटिंग करते हैं। सरकार उन्हें सुरक्षा देती है, उनके इंतज़ाम देखती है। बाद में जब फिल्म प्रदर्शित होती है तो मालूम होता है कि फ़िल्मकार पीठ में छूरा घोंपकर चला गया। ‘आश्रम’, ‘ए सूटेबल बॉय’ के ताज़े प्रकरणों से ये बात सिद्ध हो चुकी है।
अयोध्या का महत्व तो ऐसा है कि इसे शूटिंग इत्यादि से वर्जित रखा जाना चाहिए। मैंने ऊपर उदाहरण दिया कि कैसे वेटिकन सिटी में सख्त नियम लागू किये गए हैं। भारत की तो ये दशा है कि यहाँ पुरातात्विक महत्व वाले किसी भी स्थल पर शूटिंग की आज्ञा लेना किराने की दूकान से शक़्कर खरीदने जितना आसान है। उनसे कुछ नहीं पूछा जाता। उनसे फिल्म की विषयवस्तु के बारे में नहीं पूछा जाता। फ़िल्मी सितारे देखते ही नेता और प्रशासन गुलाटियां भरने लगते हैं। सोचिये यहाँ सख्ती कैसे होगी?
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को ‘रामसेतु’ की शूटिंग की आज्ञा देने से पूर्व अपने विशेषज्ञों से स्क्रीनप्ले की जाँच करवानी चाहिए। बाद में कथा कुछ और निकली तो पछताने के सिवा कुछ हाथ नहीं लगेगा। राजा विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र जी को इस प्रकरण में दोषी नहीं माना जा सकता। निश्चय ही उन्हें ये पता नहीं होगा कि प्रकाश झा फिल्म में कैसी गंदगी परोसने वाले हैं।
हालांकि नैतिकता के नाते उन्हें एक बयान इस बारे में अवश्य देना चाहिए। उनका मौन दिखाएगा कि वे इस फिल्म से सहमत हैं। केंद्र सरकार को अब इस विषय में गंभीरता से सोचना चाहिए। किसी योग्य और प्रखर व्यक्तित्व को श्री प्रकाश जावड़ेकर के स्थान पर बैठाकर काम लेना चाहिए। मनोरंजन उद्योग को अत्याधिक उदारता देने का परिणाम अब सामने आने लगा है।