🔱 श्रावण मास के विहित कृत्य 🔱
श्वेता पुरोहित :-
ईश्वर बोले – हे महाभाग ! आपने उचित बात कही है। हे ब्रह्मपुत्र ! आप विनम्र, गुणी, श्रद्धालु तथा भक्तिसम्पन्न श्रोता हैं । हे अनघ ! आपने श्रावणमास के विषय में विनम्रतापूर्वक जो पूछा है, उसे तथा जो नहीं भी पूछा है—वह सब अत्यन्त हर्ष तथा प्रेमके साथ मैं आपको बताऊँगा । द्वेष न करनेवाला सबका प्रिय होता है और आप उसी प्रकारके विनम्र हैं; क्योंकि मैंने आपके अभिमानी पिता ब्रह्मा का पाँचवाँ मस्तक काट दिया था तो भी आप उस द्वेषभावका त्याग करके मेरी शरणको प्राप्त हुए हैं। अतः हे तात ! मैं आपको सब कुछ बताऊँगा; आप एकाग्रचित्त होकर सुनिये ।
हे योगिन् ! मनुष्य को चाहिये कि श्रावण मास में नियम पूर्वक नक्तव्रत करें (नक्त का अर्थ है दिन में कुछ न खाकर केवल रात्रि में ही खाना) और पूरे महीने भर प्रतिदिन रुद्राभिषेक करें। अपनी प्रत्येक प्रिय वस्तु का इस मास में त्याग कर देना चाहिये। पुष्पों, फलों, धान्यों, तुलसी की मंजरी तथा तुलसीदलों और बिल्वपत्रों से शिवजी की लक्ष पूजा करनी चाहिये, एक करोड़ शिवलिंग बनाना चाहिये और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये। महीने भर धारण-पारण नामक व्रत अथवा उपवास करना चाहिये। [इस मास में] मेरे लिये अत्यन्त प्रीतिकर पंचामृताभिषेक करना चाहिये ।
इस मास में जो-जो शुभ कर्म किया जाता है, वह अनन्त फल देनेवाला होता है। हे मुने ! इस माह में भूमि पर सोये, ब्रह्मचारी रहे और सत्य वचन बोले। इस मासको बिना व्रत के कभी व्यतीत नहीं करना चाहिये। फलाहार अथवा हविष्यान्न ग्रहण करना चाहिये। पत्ते पर भोजन करना चाहिये। व्रत करनेवालेको चाहिये कि [इस मास में] शाक का पूर्ण रूप से परित्याग कर दे। हे मुनिश्रेष्ठ ! [इस मासमें] भक्तियुक्त होकर मनुष्य को किसी न किसी व्रत को अवश्य करना चाहिये ।
सदाचारपरायण, भूमि पर शयन करनेवाला, प्रातः स्नान करनेवाला और जितेन्द्रिय होकर मनुष्यको एकाग्र किये गये मन से प्रतिदिन मेरी पूजा करनी चाहिए। इस मासमें किया गया पुरश्चरण निश्चित रूपसे मन्त्रोंकी सिद्धि करनेवाला होता है। [इस मासमें] शिवके षडक्षर मन्त्रका जप अथवा गायत्री मन्त्रका जप करना चाहिये और शिवजी की प्रदक्षिणा, नमस्कार तथा वेदपारायण करना चाहिये। पुरुषसूक्त का पाठ अधिक फल देनेवाला होता है । इस मास में किया गया ग्रहयज्ञ, कोटि होम, लक्ष होम तथा अयुत होम शीघ्र ही फलीभूत होता है और अभीष्ट फल प्रदान करता है । जो मनुष्य इस मासमें एक भी दिन व्रतहीन व्यतीत करता है, वह महाप्रलय पर्यन्त घोर नरकमें वास करता है ।
यह मास मुझ को जितना प्रिय है, उतना और कोई भी मास नहीं। यह सकाम व्यक्ति को अभीष्ट फल देने वाला तथा निष्काम व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करनेवाला है । हे सत्तम ! इस मास के जो व्रत तथा धर्म हैं, उन्हें मुझसे सुनिये। रविवार को सूर्यव्रत तथा सोमवार को मेरी पूजा और नक्त भोजन करना चाहिये। श्रावण के प्रथम सोमवार से आरम्भ करके साढ़े तीन महीने का ‘रोटक’ नामक व्रत किया जाता है; वह सभी वांछित फल प्रदान करनेवाला है । मंगलवार को मंगलगौरी का व्रत, बुध-बृहस्पति के दिन बुध और बृहस्पति का व्रत, शुक्रवार को जीवन्तिका व्रत और शनिवारको हनुमान् तथा नृसिंहका व्रत करना बताया गया है। हे मुने ! अब तिथियोंमें किये जानेवाले व्रतों का श्रवण करें। श्रावण के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को औदुम्बर नामक व्रत होता है। श्रावण के शुक्ल पक्षकी तृतीया तिथिको गौरीव्रत होता है। इसी प्रकार शुक्ल पक्षकी चतुर्थी तिथि को दूर्वागणपति नामक व्रत किया जाता है; हे मुने ! उसी चतुर्थीका दूसरा नाम विनायकी चतुर्थी भी है। शुक्ल पक्षमें पंचमी तिथि नागों के पूजन के लिये प्रशस्त होती है ।
हे मुनिश्रेष्ठ ! इस पंचमी को ‘रौरवकल्पादि’ नाम से जानिये । षष्ठी तिथि को सूपौदन व्रत और सप्तमी तिथि को शीतलाव्रत होता है । अष्टमी अथवा चतुर्दशी तिथिको देवीका पवित्रारोपण व्रत होता है। [इस माह के] शुक्ल तथा कृष्ण [पक्ष] – की दोनों नवमी तिथियों को नक्त व्रत करना बताया गया है। शुक्ल पक्षकी दशमी तिथि को ‘आशा’ नामक व्रत होता है। इस मास में दोनों पक्षों में दोनों एकादशी तिथियों को इस व्रत की कुछ और विशेषता मानी गयी है । श्रावणमास के शुक्ल पक्षकी द्वादशी तिथि को श्रीविष्णुका पवित्रारोपण व्रत बताया गया है। इस द्वादशी तिथि में भगवान् श्रीधर की पूजा करके मनुष्य परम गति प्राप्त करता है। उत्सर्जन, उपाकर्म, सभादीप, सभा में उपाकर्म, इसके बाद रक्षाबन्धन, पुनः श्रवणाकर्म, सर्पबलि और हयग्रीव का अवतार-ये सात कर्म पूर्णमासी तिथि को करने हेतु बताये गये हैं । श्रावण मास के कृष्ण पक्ष में [चतुर्थी तिथि को] ‘संकष्टचतुर्थी’ व्रत कहा गया है और श्रावणमास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि के दिन ‘मानवकल्पादि’ नामक व्रत को जानना चाहिये। हे द्विजोत्तम ! कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण का पूर्णावतार हुआ; इस दिन उनका अवतार हुआ, अतः महान् उत्सव के साथ इस दिन व्रत करना चाहिये। हे मुनिश्रेष्ठ ! इस अष्टमीको मन्वादि तिथि जानना चाहिये। भारत के पश्चिमी प्रदेशोंमें युगादि तिथि के अनुसार मास का नामकरण होता है, अतः श्रावण कृष्ण अष्टमी को भाद्रकृष्ण अष्टमी समझना चाहिये। श्रावण मास की अमावस्या तिथि को पिठोराव्रत कहा जाता है। इस तिथि में कुशों का ग्रहण और वृषभों का पूजन किया जाता है।
इस मास में शुक्ल पक्षकी प्रतिपदा तिथि से लेकर सब तिथियों के पृथक्-पृथक् देवता हैं। प्रतिपदा तिथिके देवता अग्नि, द्वितीया तिथिके ब्रह्मा, तृतीया की गौरी और चतुर्थी के देवता गणपति हैं। पंचमी के देवता नाग हैं और षष्ठीके देवता कार्तिकेय हैं। सप्तमी के देवता सूर्य और अष्टमी तिथिके देवता शिव हैं। नवमी की देवी दुर्गा, दशमी के देवता यम और एकादशी तिथिके देवता विश्वेदेव कहे गये हैं। द्वादशीके विष्णु तथा त्रयोदशीके देवता कामदेव माने गये हैं। चतुर्दशी के देवता शिव, पूर्णिमाके देवता चन्द्रमा और अमावस्या के देवता पितर हैं; ये तिथियों के देवता कहे गये हैं, जिस देवताकी जो तिथि हो उस देवताकी उसी तिथिमें पूजा करनी चाहिये।
प्रायः इसी मास में ‘अगस्त्य’ का उदय होता है। हे मुने ! मैं उस काल को बता रहा हूँ; आप एकाग्रचित्त होकर सुनिये । सूर्य के सिंहराशि में प्रवेश करने के दिन से जब बारह अंश चालीस घड़ी व्यतीत हो जाती है, तब अगस्त्य का उदय होता है। उसके सात दिन पूर्व से अगस्त्य को अर्घ्य प्रदान करना चाहिये । बारहों मासों में सूर्य पृथक् पृथक् नामों से जाने जाते हैं; उनमें से श्रावणमास में सूर्य ‘गभस्ति’ नामवाला होकर तपता है। इस मासमें मनुष्योंको भक्तिसम्पन्न होकर सूर्यकी पूजा करनी चाहिये ।
हे सत्तम ! चार मासों में जो वस्तुएँ वर्जित हैं, उन्हें सुनिये। श्रावण में शाक तथा भाद्रपदमें दहीका त्याग कर देना चाहिये; इसी प्रकार आश्विनमें दूध और कार्तिकमें दालका परित्याग कर देना चाहिये। यदि इन मासोंमें इन वस्तुओंका त्याग नहीं कर सके, तो केवल श्रावणमासमें ही उक्त वस्तुओंका त्याग करनेसे मानव उसी फलको प्राप्त कर लेता है। हे मानद ! यह बात मैंने आपसे संक्षेपमें कही है; हे मुनिश्रेष्ठ ! इस मास के व्रतों और धर्मों के विस्तार को सैकड़ों वर्षोंमें भी कोई नहीं कह सकता।
मम प्रीत्यै हरेर्वापि कुर्याद् व्रतमशेषतः ।
आवयोर्नहि भेदोऽस्ति परमार्थविचारतः ॥
कल्पयन्त्यत्र ये भेदं ते वै निरयगामिनः ।
सनत्कुमार तस्मात्त्वं श्रावणे धर्ममाचर ॥
अर्थात्:
मेरी अथवा विष्णु की प्रसन्नता के लिये सम्पूर्ण रूप से व्रत करना चाहिये। परमार्थ की दृष्टि से हम दोनों में भेद नहीं है। जो लोग भेद करते हैं, वे नरकगामी होते हैं। अतः हे सनत्कुमार ! आप श्रावणमास में धर्म का आचरण कीजिये ।
॥ इस प्रकार श्रीस्कन्दपुराण के अन्तर्गत ईश्वर सनत्कुमार संवाद का ‘ श्रावणव्रतोद्देशकथन’ नामक दूसरा अध्याय पूर्ण हुआ ॥
🪷 ॐ नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव!🙏🌷🔱✨️
क्रमशः