कहा जाता है कि भारत में दो ही भाषाएँ बोली जाती हैं। एक है रामायण और एक है महाभारत। रामायण और महाभारत भाषा कैसे हो सकती हैं? यह उस वर्ग का विशेष सवाल रहा था जिसने राम को मात्र एक पात्र माना। जबकि राम इस देश की आत्मा हैं। राम मात्र अयोध्या तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि राम तो काल एवं स्थान की सीमा को पार कर चुके हैं। आखिर राम कथा में ऐसा क्या विशेष है कि इसने समूचे विश्व में और प्रत्येक संस्कृति में अपना स्थान बना लिया। जिसने एक बार राम को पढ़ा वह राम का हो गया। राम का होने के लिए मात्र राम को पढ़ना ही आवश्यक है, फिर राम स्वयं ही अपना बना लेते हैं।

यूं तो राम एशियाई देशों में अपनी कथा के साथ विद्यमान हैं, परन्तु अंग्रेजी में वह अनूदित होकर गए हैं। अनुवाद करते समय अंग्रेज विद्वानों ने वाल्मीकि, तुलसीदास और राम की अत्यंत प्रशंसा की है। वह तो यही देखकर हैरान हैं कि कैसे एक राम ने पूरे भारत को एक सूत्र में बांध रखा है। जे. एम. मैकेफी (J.M. Macfie) जिन्होनें द रामायण ऑफ तुलसीदास (The Ramayan of Tulsidas) लिखी है वह लिखते हैं कि तुलसीदास एक कट्टर हिन्दू थे जो हिन्दू धर्म में विश्वास करते थे, परन्तु वह ऐसे हिन्दू थे जिनके विचारों ने समय से परे यात्रा की थी और विचारों की यह यात्रा उनके राम में मिलती है, जो विष्णु के अवतार हैं।
फिर इसी में कुछ पंक्तियों के बाद वह लिखते हैं कि इसने उन्हें कवि के रूप में इतना लोकप्रिय बना दिया और उनके विचारों ने ही आधुनिक हिंदुत्व को फलने फूलने में मदद की क्योंकि उन्होंने भगवान को सहज बनाया। तुलसी की नजर में भगवान कोई सुदूर बैठे हुए जगत की भावनाओं को अनदेखे करने वाले नहीं हैं, बल्कि भगवान तो वह हैं जिन्हें कोई भी दिल से याद करे और भगवान हाजिर हो जाएं। मगर मैक्फी एक बात विशेष लिखते हैं, और जिसके कारण तुलसीदास पर मिशनरी कुपित हैं और उनके खिलाफ आज तक युद्ध चल रहा है। वह लिखते हैं कि “ऐसा नहीं है कि भगवान केवल खुद को शुद्ध रखना चाहते हैं। बल्कि वह उन सभी से चित्त की शुद्धता चाहते हैं, जो उन्हें पूजते हैं। जो उन्हें अपने पास बुलाना चाहते हैं।”
मतलब उन्होंने समाज में राम के माध्यम से यह सन्देश दिया था कि यदि राम को पाना है तो राम जैसा ही शुद्ध चित्त वाला होना होगा।
परन्तु इसी पंक्ति के बाद वह तुलसी की आलोचना करने लगते हैं और कबीर की प्रशंसा, जबकि तुलसी और कबीर में कोई तुलना ही नहीं हैं। दोनों जन कवि हैं दोनों के अपने अपने राम हैं। राम तो हर किसी के हो जाते हैं।

वाल्मीकि रामायण का अंग्रेजी में अनुवाद करने वाले ग्रिफिथ कहते हैं कि जितने लोग इंग्लैण्ड में कुल मिलाकर बाइबिल को पढ़ते हैं, उससे कहीं अधिक लोग भारत में रामायण पढ़ते हैं। मैक्फी कहते हैं कि ग्रिफिथ का यह कहना ही पर्याप्त है कि इस किताब की लोकप्रियता ने पश्चिमी अवलोकनकर्ताओं को कितना प्रभावित किया है।
मैक्फी इस बात की भी तारीफ़ करते हैं कि तुलसीदास बहुत चतुर थे जो उन्होंने इस किताब को जनभाषा में लिखा।
इसी के साथ जब ईसाई धर्म को फैलाने की जिम्मेदारी लेने वाली मिशनरी आईं तो उन्हें केवल और केवल तुलसी के राम से टकराना पड़ा। द रेनेसां इन इंडिया, इट्स मिशनरी आस्पेक्ट्स में एंड्रयूज ने लिखा है कि “तुलसीदास की रामायण शायद एकमात्र हिन्दू पुस्तक है जिसका इतना ज्यादा सर्कुलेशन है। जितना लोग इसे पढ़ते हैं, उससे कहीं ज्यादा लोग इसे गाते हैं और गुनगुनाते हैं। इसे कई पेशेवर गायक गाते हैं और राम की कहानी सुनाना बचपन से ही शुरू हो जाता है और यह कुछ उन पुस्तकों में से है जिसे हिन्दू स्त्रियाँ भी पढ़ती हैं।”
यही कारण है कि जब अंग्रेजी माध्यम से अंग्रेजी शिक्षा दी गयी और जब एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना के साथ भारतीय धर्म ग्रंथों के अंग्रेजी में अनुवाद आरम्भ हुए तो उन्हें शिक्षा से इतर हल्का करके अनूदित किया जाने लगा।

राम की महत्ता अंग्रेजों ने समझ ली थी और उन्हें यह भी ज्ञात था कि मात्र राम के चरित्र पर आक्रमण करके ही वह ईसाई धर्म को फैला सकते हैं। इसी वजह से भारतीय स्त्रियों को वह अंग्रेजी शिक्षा देने के हिमायती थे। इसी पुस्तक में आगे एंड्रयूज हिन्दू स्त्रियों की मेधा से बहुत प्रभावित दिखते हैं और चाहते हैं कि उन्हें अंग्रेजी शिक्षा मिले। परन्तु इसके साथ ही वह यह भी लिखते हैं कि जैसे ही उन्हें (हिन्दू स्त्रियों) को अंग्रेजी शिक्षा दी गयी उन्होंने अपने भारतीय गौरव को आधुनिक दृष्टि से लिखना शुरू कर दिया, जो मध्य काल में कहीं खो गया था। जैसे तोरू दत्त। हालांकि तोरू दत्त (Toru Dutt (1856-1877)) के पिता ने ईसाई धर्म अपना लिया था, परन्तु तोरू दत्त ने अपनी 21 वर्ष की अल्पायु में ही भारतीय चरित्रों पर गौरवपूर्ण कविताएँ लिखी थीं। उन्होंने अपनी कविता लक्ष्मण में लक्ष्मण और सीता के मध्य संवाद को बहुत ख़ूबसूरती से दिखाया है। जब लक्ष्मण सीता को कुटिया में छोड़कर राम के पास जा रहे हैं, और एक अनिष्ट की आशंका से भरे हुए हैं। इसे तोरू दत्त ने अंग्रेजी में लिखा है
He said, and straight his weapons took
His bow and arrows pointed keen,
Kind, — nay, indulgent, — was his look,
No trace of anger, there was seen,
Only a sorrow dark, that seemed
To deepen his resolve to dare
All dangers। Hoarse the vulture screamed,
As out he strode with dauntless air।
राम से इसी कारण अंग्रेज मिशनरी या कहें देश तोड़ने वाली ताकतों को डर होता है, क्योंकि राम चित्त की शुद्धता की बात करते हैं, राम हर गलत कृत्य से दूर रहने के लिए कहते हैं। भारत में तोरू दत्त को बहुत कम लोग जानते हैं, वह उसी प्रकार उपेक्षित है जैसे आज तुलसीदास को एक कोने में करने का कुप्रयास किया जा रहा है। परन्तु तुलसीदास को नीचा दिखाने का प्रयास कभी सफल नहीं होगा क्योंकि तुलसी स्वयं को प्रभु का दास बताते हैं, वह तो खुद कहते हैं
कवि न होऊँ नहीं चतुर कहावऊँ, मति अनुरूप राम गुन गावऊँ
कहें रघुपति के चरित अपारा, कहँ मति मोरि निरत संसाराजिस प्रकार राम को समझने के लिए शुद्ध चित्त की आवश्यकता है, उसी प्रकार राम का चरित्र लिखने वाले तुलसी को भी समझने के लिए दुराग्रह त्यागने ही होंगे।