श्वेता पुरोहित :-
सनकादिक ब्रम्हादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥
अर्थ –
श्रीसनक, श्रीसनातन, श्रीसनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि, ब्रम्हा आदि देवता, नारदजी, सरस्वतीजी, शेषनागजी आदि आपके यश को पूरी तरह वर्णन नहीं कर सकते।
गुढार्थ –
तुलसीदासजी कहते हैं कि श्री हनुमानजी की प्रशंसा केवल भगवान राम ने ही नहीं की अपितु सृष्टि के रचियता ब्रम्हाजी द्वारा उत्पन्न मानसपुत्र सनकादिक मुनि (श्रीसनक, श्रीसनातन, श्रीसनन्दन, एवं श्री सनत्कुमार), भगवान के मानस पुत्र श्री नारदजी तथा आदिशक्ति माता सरस्वतीजी इत्यादि सभी हनुमानजी के गुणों का गुणगान करते हैं।
वह कहते हैं कि हम भी श्री हनुमानजी के गुणों का तथा यश का वर्णन पूरी तरह से नहीं कर सकते, भक्ति की ऐसी परमोच्च स्थिति हनुमानजी ने अपने कतृर्त्व से प्राप्त की।
हनुमानजी सतत योगी थे। उनके तो रोम-रोम में श्रीराम बसे हुए थे इसीलिए ब्रम्हादिक मुनीयों ने भी उनकी प्रशंसा की है।
हमें भी हनुमानजी का आदर्श सामने रखते हुए जीवन को ज्ञान-भक्ति और कर्ममय बनाना चाहिए तब ही हम सच्चे अर्थ में हनुमानजी के भक्त कहलाने के अधिकारी होंगे।
यम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते॥
अर्थ –
यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि, विद्वान, पंडित, या कोई भी आपके यश को पूरी तरह वर्णन नहीं कर सकते।
गूढार्थ –
धर्मराज यम भगवान सूर्य के पूत्र हैं, इनकी माता का नाम संज्ञा है, यमी (यमुना) इनकी बहन हैं।
भगवान सूर्य का एक नाम विवस्वान भी है, अत: विवस्वान (सुर्य) के पुत्र होने के कारण ये वैवस्वत भी कहलाते हैं।
ये धर्मरुप होने के कारण और धर्म का ठीक-ठीक निर्णय करने के कारण धर्म या धर्मराज भी कहलाते हैं।
यम देवता जगत् के सभी प्राणीयों के शुभ और अशुभ सभी कार्यों को जानते हैं, इनसे कुछ भी छिपा नहीं है।
ये प्राणियों के भूत-भविष्य, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष में किए गये सभी शुभाशुभ कर्मों के प्रत्यक्ष साक्षी हैं, ये परिपूर्ण ज्ञानी हैं, नियामक होने के कारण इनका नाम यम है।
महाराज यम दक्षिण दिशा के स्वामी हैं, दस दिक्पालो में इनकी गणना है।
तुलसीदासजी लिखते है कि स्वयं धर्मात्मा यमराज, कुबेर, सभी दिक्पाल, पंडित कवि ये सभी हनुमानजी के गुणों का तथा निर्मल यश का गुणगान करते हैं।
इन सभी को हनुमत चरित्र सुंदर, आकर्षक, दिव्य एवं भव्य लगा तथा उन्होंने हनुमानजी में अनन्त गुण देखे इसीलिए वे कहते हैं कि हम भी हनुमानजी के गुणों का पूरी तरह से वर्णन नहीं कर सकते।
हनुमानजी अनन्त गुणों के स्वामी है, महिम्न स्तोत्र मे पुष्पदंत कहते है –
असितगिरिसमं स्यात्कज्जलं सिन्धुपात्रे सुरतरुवरशाखा लेखिनी पत्रमुर्वी लिखति,
यदि गृृहीत्वा शारदा सर्वकालं तदपि तव गुणानामीशं पारं न याति।
अर्थ –
समुद्र रुपी बर्तन में नीलगिरी पर्वत जितना काजल भरा हो, उसकी स्याही बनाकर, पृथ्वी जैसा कागज हो, कल्पवृृक्ष की कलम हो और इस कलम को पकड़कर यदि सरस्वती स्वयं निरंतर लिखने बैठी हो तो हे ईश्वर! आप के गुणों का अन्त नहीं होगा, इतनी आपकी महानता है।
तुलसीदासजी ने जो लिखा है ‘यम कुबेर दिगपाल जहांते, कबि कोबिद कहि सके कहां ते’ उसके पीछे अभिप्राय यह है कि स्वयं धर्मराज ने हनुमानजी में अनन्त गुणों को देखा उनकी श्रेष्ठ भक्ति को देखकर ही वे कहते हैं कि हनुमानजी की भक्ति सर्वश्रेष्ठ हैं, तथा हम भी उनके गुणों का वर्णन ठीक तरह से नहीं कर सकते।
हमको यदि हनुमानजी की उपासना करनी है तो हमको अपने जीवन में उनके अनंत गुणों में से एकाध गुण तो जीवन में लाने का प्रामाणिक प्रयत्न करना चाहिए।
हनुमानजी की तरह ज्ञान-भक्ति और कर्म का समन्वय जीवन में साधना होगा तो ही हम उनकी तरह प्रभु प्रिय बन सकेंगे तथा सच्चे अर्थ में हम हनुमानजी के उपासक हैं ऐसा कहा जाएगा।
इसीलिए तुलसीदास लिखते है कि हनुमानजी के चरित्र को देखकर यम, कुबेर, दिक्पाल, विद्वान कोई भी उनके गुणों का पूरी तरह से वर्णन नहीं कर सकता। ऐसी योग्यता हनुमानजी ने स्वयं अपने कतृर्त्व से निर्माण की है।
हमे भी यदि हनुमानजी की तरह प्रभु के प्रिय तथा श्रेष्ठ बनना हों तो जीवन में ज्ञान, भक्ति और कर्म का समन्वय लाना होगा।
सचमुच सृष्टि में आकर जो लोग सृष्टि की शोभा रुप बन गये हैं वे ही सच्चे भक्त हैं, मानव हैं, बाकी हम सब तो ऐन्द्रिय सुख के पीछे दौड़ने वाले पशु ही हैं।
हे प्रभु! हमको यह तो पता चल गया है कि हम पशु हैं, पर आप पशुपति हैं।
हम हनुमानजी से प्रार्थना करेंगे कि – हे प्रभो हमें सद्बुद्धि प्रदान करो तथा आपकी तरह भक्ति की लालसा हममें निर्माण हो, तथा हमें पशु से मानव बनाएं।
हमको भी भगवान को प्रिय लगे ऐसा जीवन जीना है उसके लिए शक्ति प्रदान किजिए!!
क्रमशः
श्रीराम जय राम, जय जय राम, जय जय जय सीता राम