श्वेता पुरोहित :-
सूक्ष्म रुप धरि सियहिं देखावा।
बिकट रुप धरि लंक जरावा॥
अर्थ :-
आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके सीता माँ को दिखाया तथा भयंकर रुप धारण करके लंका को जलाया।
गुढार्थ :-
तुलसीदासजी लिखते हैं हनुमानजी ने सीता माता को अपना छोटा रुप दिखाया। इसका तात्पर्य यह है कि जीव कितना ही बडा क्यों न हो परन्तु माता (भगवान) के सामने वह सदैव छोटा ही रहेगा।
तथा उन्होंने आगे लिखा है ‘बिकट रुप धरि लंक जरावा‘’ अर्थात जीव भले ही सूक्ष्म हो परंतु उसमें अपार शक्ति होती है तथा उस शक्ति का उपयोग कर, भगवान का साधन बनकर बड़े से बड़ा काम कर सकता है।
यहाँ तुलसीदासजी का यह संकेत है कि जीव को सुक्ष्म बनना चाहिए।
अहम को सूक्ष्म करना है, अहम कम करते जाओ, इसका अर्थ है कि सूक्ष्म बनो।
जीव भगवान का साधन बनकर काम करे तो अहम-शुण्य बन जायेगा। हनुमानजी भगवान के साधन बनकर लंका में सीता की खोज करने गए तथा अकेले ही अपनी शक्ति से समस्त लंकापुरी को जला दिया।
लंका दहन के पश्चात् वहाँ से वापस आने पर श्रीराम ने प्रशंसा करते हुए उनसे पूछा –
कहु कपि रावन पालित लंका।
के बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका॥
(मानस 5-32-2-1/2)
भगवान श्रीराम ने पुछा – हे हनुमान, बताओ तो रावण के द्वारा पालित लंका और उसके बडे बांके किले को तुमने किस तरह जलाया।
भला अपने स्वामी द्वारा की हुई प्रशंसा निराभिमान सेवक हनुमानजी को कैसे अच्छी लगती?
अपनी प्रशंसा का श्रवण ही तो अभिमान उत्पन्न करा देता है, अत: हनुमानजी ने उत्तर दिया:-
सो सब तव प्रताप रघुराई।
नाथ न कछु मोरि प्रभुताई॥
(मानस 5-32-5)
हनुमानजी नम्र होकर कहते हैं – प्रभो इसमें मेरी कुछ भी बढ़ाई नहीं है, यह सब आपका ही प्रताप है।
यदि हनुमानजी की जगह हमारे जैसा कोई स्वार्थी जीव होता तो वह स्वयं भी उसी के साथ अपनी प्रशंसा के गीत गाने लगता।
हम जब कोई अच्छा काम करते हैं और यदि हमारी कोई बढ़ाई कर दे तो तुरंत हम कहना शुरु कर देते हैं, हाँ मैंने ऐसा किया, वैसा किया आदि, किन्तु हनुमानजी जानते ही थे कि – ‘इन्द्रे्रपि लघुतां याति स्वयं प्रख्यापितैगुणै:’।
स्वयं (प्रशंसा सुनने से या) अपने ही मुख से अपनी प्रशंसा करने से स्वर्गाधिपति इन्द्र भी लघुता को प्राप्त हो जाते है।
अत: हनुमानजी बोले –
ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकूल।
तब प्रभावँ बडवानलहि जारि सकइ खलु तूल॥
(मानस ५-३३)
हे प्रभो, जिस पर आप प्रसन्न हों, उसके लिए कुछ भी कठीन नहीं है।
आपके प्रभाव से रुई (जो स्वयं जल्दी जलने वाली वस्तु है) बडवानल को निश्चय ही जला सकती है, अर्थात असम्भव भी सम्भव हो सकता है।
मनुष्य को हनुमानजी की तरह सूक्ष्म बनना चाहिये, तथा भगवान का साधन बनकर प्रभु कार्य करना चाहिए, यही बात तुलसीदासजी इस चौपाई द्वारा समझाने का प्रयास कर रहे हैं।
क्रमशः
श्रीराम जय राम, जय जय राम, जय जय जय सीता राम 🙏
कोटि कविकुल तिलक श्रीहनुमानजी की जय 🙏