हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली चयन समिति द्वारा नियुक्त सीबीआई निदेशक ऋषि कुमार शुक्ला ने सोमवार को अपना पदभार ग्रहण कर लिया। लेकिन शुरू से ही इस नियुक्त को विवादित बनाने में जुटी कांग्रेस अपनी करतूत से बाज नहीं आई। शुक्ला के पदभार संभालते ही मध्य प्रदेश सरकार में सामान्य प्रशासन एवं सहकारिता मंत्री डॉ. गोविंद सिंह ने शुक्ला को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की है। मालूम हो कि नेता विपक्ष के रूप में चयन समिति के सदस्य कांग्रेस सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे ने शुक्ला की नियुक्ति को विवादित बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। वे उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी जावेद अहमद का नाम उछालकर गंदी राजनीति करने से बाज नहीं आए।
Delhi: Rishi Kumar Shukla takes charge as the Director of Central Bureau of Investigation (CBI). pic.twitter.com/9cM1gQK2kE
— ANI (@ANI) February 4, 2019
सीबीआई के प्रवक्ता का कहना है कि आईपीएस आर के शुक्ला ने सोमवार सुबह सीबीआई निदेशक का पद संभाला। मध्य प्रदेश पुलिस के पूर्व डीजीपी और खुफिया विभाग के अनुभवी अधिकारी शुक्ला के पूर्ण निदेशक के रूप में कार्यभार संभालने से एजेंसी के कामकाज में स्थिरता आएगी। भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के 1983 बैच के अधिकारी शुक्ला ऐसे समय में सीबीआई का कार्यभार संभाल रहे हैं जब एजेंसी तथा कोलकाता पुलिस के बीच विवाद राजनीतिक रूप ले चुका है।
कांग्रेस के मंत्री ने सीबीआई के नए निदेशक को कहा अपशब्द
शुक्ला की नियुक्ति को विवादित बनाने में जुटी कांग्रेस के मंत्री इतने नीचे गिर चुके हैं कि देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी के मुखिया के खिलाफ गाली-गलौच पर उतर आए। मध्य प्रदेश सरकार के सहकारिता मंत्री डॉ. गोविंद सिंह ने शुक्ला के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणई करते हुए उन्हें अयोग्य और असफल अधिकारी बताया है। गोविंद सिंह ने कहा ‘ मैं समझता था कि वह ग्वालियर-चंबल संभाग के शेर होंगे, लेकिन मैंने पाया कि भेड़िया शेर की खाल में बैठा है।’
यूपी के पूर्व डीजीपी जावेद अहमद ने खेला मुसलिम कार्ड
शुक्ला की नियुक्ति के बाद नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का खेला सांप्रदायिक कार्ड सही निशाने पर बैठा है। खड़गे ने ही जावेद अहमद का नाम उछालकर शुक्ला की नियुक्ति को विवादित बनाने का प्रयास किया था। खड़गे द्वारा नाम उछाले जाने के बाद जावेद अहमद ने अपनी नियुक्ति नहीं होने पर मुसलिम कार्ड खेला है। जावेद अहमद ने एक वॉट्सएप मैसेज ग्रुप में M लिखकर भेजा। बताया जा रहा है कि किसी ने सीबीआई निदेशक की नियुक्ति का लेटर ग्रुप पर शेयर किया था। इसी पर प्रतिक्रिया देते हुए अहमद ने लिखा अल्लाह की मर्जी, बुरा तो लगता है पर मुसलमान होना गुनाह है। यहां पर एम का मतलब मुसलमान होने से लगाया जा रहा है।
https://twitter.com/ippatel/status/1091931795665313792?s=19&fbclid=IwAR0XG_JXwfSt4TXFTYR5qg-dNs6tavrWlmTypqMi8fqdCBsj2bJkjsxGjKM
जब उत्तर प्रदेश में कई सीनियर अधिकारी होने के बावजूद जावेद अहमद को डीजीपी बनाया गया था तब किसी अधिकारी ने नहीं कहा कि हमें हिंदू होने की सजा मिली है, लेकिन जब शुक्ला को सीबीआई निदेशक बनाया गया तो जावेद को लगा है कि इस देश में मुसलमान होना गुनाह है। इससे साफ है कि जावेद अहमद जैसे पुलिस अधिकारी के अंदर आज भी मजहब ही जिंदा है उसका दायित्व नहीं।
मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस नेतृत्व की शह पर खड़ा किया विवाद
कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व की शह पर नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे शुरू से ही ऐसे मसले पर विवाद खड़ा करते रहे हैं। सीबीआई के निदेशक पद को लेकर वे नियमित रूप से विरोध करते रहे हैं।
Sh. Kharge dissents regularly. He dissented when Shri Alok Verma was appointed, dissented when Shri Alok Verma was transferred and has now dissented when Shri R. K. Shukla has been appointed.
— Arun Jaitley (@arunjaitley) February 3, 2019
वह चाहे आलोक वर्मा की सीबीआई निदेशक पद पर नियुक्त हो या फिर उसे बलात छुट्टी पर भेजा जाना हो, या उन्हें बाद में दूसरे महकमें तबादला करने का मामला हो, हर बार उन्होंने विरोधी रूख अपनाया है। खड़गे ने आलोक वर्मा की नियुक्त का भी विरोध किया और तबादले का भी विरोध किया था। अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली चयन समिति ने ऋषि कुमार शुक्ला की नियुक्ति की है तो उसका भी विरोध कर रहे हैं। खड़गे के आचरण से साफ है कि वे अपने पार्टी नेतृत्व का अनुसरण कर रहे हैं, न कि अपने दायित्व का निर्वहन।
सीबीआई निदेशक की नियुक्ति को राजनीतिक रंग दे रहे खड़गे
लोकसभा में नेता विपक्ष के नाते वे एक कॉलिजियम का हिस्सा हैं, लेकिन वहां उनका प्रशासनिक दायित्व होता है न कि पार्टी का दायित्व। लोक सभा में विपक्ष के नेता की स्थिति की वजह से ही उन्हें उस समिति में बैठने की हैसियत मिली है।
Sh. Kharge is part of a Collegium that discharges a governance function. The position of Sh Kharge as the LOP in the Lok Sabha, entitles him to sit in the Committee but the political colour of that office has to be left outside, unfortunately, that does not seem to have happened.
— Arun Jaitley (@arunjaitley) February 3, 2019
लेकिन वहां बैठने वालों को अपना राजनीतिक नहीं प्रशासनिक दायित्व निभाना होता है। खड़गे को अपने दायित्व का भान होना चाहिए। दुर्भाग्यवश खड़गे ने उन चयन समिति को भी राजनीतिक रंग में रंगने का प्रयास किया है। उन्हें बहुमत का सम्मान करना चाहिए।
इस संदर्भ में केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अपने लिखे ब्लॉग में मल्लिकार्जुन खड़गे के निरंतर विरोध को आड़े हाथ लिया है। उन्होंने कहा है कि इस प्रकार अपने पार्टी नेतृत्व की शह पर आंख मूंद कर विरोध कर खड़गे ने विरोध के मूल्य को ही गिरा दिया है।
The only thing constant in the High Powered Committee comprising of the Prime Minister, the Chief Justice of India and the Leader of the Opposition which deals with the CBI Director’s appointment and transfer, is the Kharge dissent.
— Arun Jaitley (@arunjaitley) February 3, 2019
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने ट्वीट में कहा है कि सीबीआई निदेशक की नियुक्ति और स्थानांतरण से संबंधित उच्च स्तरीय समिति में केवल एक चीज स्थिर है वह यह कि इसके सदस्य देश के प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता होते है। सवाल उठता है कि क्या वे इसका विरोध करते हैं?
जेटली ने कहा कि खड़गे का आलोक वर्मा के तबादले का विरोध करना उस मसले को राजनीतिक रंग देना था। आलोक वर्मा के समर्थन में उन्होंने ही सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दिया था। इस मामले में जब उनके विचार सार्वजनिक हो गए तभी उन्हें खुद इस प्रतिष्ठित समिति से हट जाना चाहिए था।
उन्होंने कहा कि एक विरोधी बहुमत को चुनौती देता है। हर कोई कोई अपने विवेक के आधार पर ऐसा करता है वह अपना विरोध इसलिए जताता है ताकि आने वाली पीढ़ियों को उसके विरोध के मूल्य के बारे में पता चले। लेकिन एक विरोधी को कभी राजनीतिक औजार नहीं बन जाना चाहिए।
खड़गे ने तो इतनी बार विरोध किया है कि कई लोग आश्चर्य भी करेंगे कि क्या कालेजियम व्यावहारिक भी है या नहीं। सीबीआई के निदेशक पद की नियुक्ति को लेकर कभी यह परिकल्पना भी नहीं की थी कि इस पद पर नियुक्ति के लिए राजनीतिक लड़ाई होगी। लेकिन खड़गे ने अपने विरोध की वजह से इसे राजनीतिक अखाड़ा बना दिया। इस प्रकार खड़गे ने तो विरोध के मूल्य को नीचे गिरा दिया है।
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