अनुज अग्रवाल, संपादक, डायलॉग इंडिया। ‘आवाज ऐ पंजाब’ का आगाज नवजोत सिंह सिद्धू ने जिस अंदाज़ में किया और केजरीवाल को आइना दिखाया, यह कुछ उसी शैली में है, जैसे प्रशांत भूषण के पिछवाड़े पर केजरीवाल ने लात मारी थी और कुछ इसी अंदाज़ में आआपा के पंजाब के पूर्व संयोजक सुच्चा सिंह ‘आम आदमी पार्टी(पंजाब)’ का गठन करने जा रहे हें। पूरी संभावना है कि ये दोनों मिलकर एक मोर्चा बना लें। अपने साथ हुए बर्ताब का ऐसा बदला लेने में कोई बुराई भी नहीं।
खेल पंजाब की 117 विधानसभा सीटों का है। जेटली साहब की मेहरबानी से पंजाब में जड़ जमा चुकी आम आदमी पार्टी खासी बढत ले चुकी थी और मोदी अपने खासमखास जेटली के इस खेल को समझ चुके थे। जेटली इस तर्क पर बच तो गए कि आआपा को बढ़ावा देने का उनका खेल मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के सपने को मूर्त रूप देने की रणनीति का एक हिस्सा था, किंतू भाजपा और सहयोगी दलों की कीमत पर इस खेल को मोदी गले नहीं उतार पा रहे थे। अपने अस्तित्व को ही खतरे में जान जेटली ने नया खेल रचा और इसके पहले चरण में सिद्धू और केजरीवाल के बीच पींगे बढ़वाई गयीं। जब तक केजरीवाल कुछ नतीजे पर पहुचते तब तक सिद्दू ने भाजपा की बुराई करते हुए राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया और पंजाब में शहीद के रूप में स्थापित हो गए।
आआपा नेता भगवंत मान ने मुख्यमंत्री की अपनी दावेदारी खतरे में जान संसद की वीडियोग्राफी का नाटक कर केजरीवाल को बैकफुट पर ला दिया और सिद्धू की पहल ने उन्हें कहीँ का नहीं छोड़ा। चक्रव्यूह में फंसे केजरीवाल को नशेड़ी भगवंत मान को ही पंजाब में पार्टी का चेहरा घोषित करना पड़ा और सिद्दू अधर में लटके दिखने लगे। इधर केजरीवाल और उनके अनाड़ी खिलाड़ियों ने विदेशो में बसे खालिस्तान के समर्थको से तो फंडिंग ली ही, पार्टी के टिकिट बेचना शुरू कर दिए और खुद को हाशिये पर खड़ा देख दुखी आआपा के प्रभावशाली नेता सुच्चा सिंह विद्रोह कर बेठे। अंदरखाने भाजपा ने इस खेल को पूरी तरह भुना लिया और साफ़ सुथरे एवं लोकप्रिय चेहरों को सिद्दू के साथ जोड़ नयी पार्टी का ऐलान करवा दिया और उधर सुच्चा सिंह दो तिहाई पार्टी कार्यकर्ताओ के साथ अलग हो गए हें। ऐसे में आआपा की पंजाब इकाई में बड़ी भगदड़ मचनी तय है और पार्टी के वोटों का बंटवारा भी।
अब अकाली व भाजपा गठबंधन को अवाम ऐ पंजाब एवं आआपा(पंजाब) के रूप में बड़ा सहारा मिल गया। उनका सीधा सा गणित है, ऊपर से नूरा कुश्ती और अंदर से एक दूसरे को उनकी मजबूत सीटो पर मदद। कुल लक्ष्य 70 सीटो का है। अकाली 25 से 30, भाजपा 15 और सिद्धू और सुच्चा सिंह 25 से 30 और अंत में गठबंधन सरकार बाहर से समर्थन या विलय। बाकि जो चुनावों में जितनी बाजी मार ले। सिद्दू और सुच्चा अपनी छवि के साथ साथ बड़ा समर्थक वर्ग रखते हें और उन्हें पिछले दरवाजे से अकाली – भाजपा की आर्थिक मदद और केडर मिलना तय है। मुश्किल समय कांग्रेस का है जो अप्रासंगिक होती जा रही है या फिर आआपा और केजरीवाल का जिनकी चिंता बंटे हुए वोट बैंक को एक करने उसे चुनावों तक बनाये रखने में है। किंतू दिल्ली में बिखरते हालात के बीच यह हो पाना अरविन्द केजरीवाल के लिए नामुमकिन सा होता जा रहा है।
कुछ समय पहले आआपा की 70 से 80 सीटें तक आने का अनुमान था जो अब 35 से 40 तक सिमट गया है। नया खेल जो भाजपा की मदद से सिद्धू और सुच्चा ने खेला है उससे इन तीनों की 45 से 50 तक सीटें आ सकती हें। कांग्रेस 10-15 सीटो से ज्यादा नहीं ला पायेगी , ऐसे में अकालियों के अप्रत्यक्ष सहयोग से सिद्धू और सुच्चा सिंह का खेल खड़ा होना बड़ी बात नहीं।