(गतांक से आगे)
5- पुलिस थाने में अपराध की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराना जितना कठिन है उससे भी अधिक कठिन मामले की निष्पक्ष व सही विवेचना कराना है । विवेचक कदम- कदम पर नियम कायदों को ताक पर रखकर विवेचना को अंजाम देते हैं और मनमर्जी से अथवा अवांछनीय दबावबस सत्यान्वेषण नहीं करते हैं और इस तरह से विवेचना का उद्देश्य ही विफल कर देते हैं । गवाहों का साक्ष्य ज्यादातर सही-सही दर्ज नहीं किया जाता है और केस डायरी में अधिकतर फर्जी लिखा पढ़ी की जाती है। यहां तक कि गवाहों से लिये गये सबूतों की रिसीविंग भी उन्हें नहीं दी जाती है और अधिकांश मामलों में उन सबूतों को विवेचना में शामिल नहीं किया जाता है और मनमाने तरीके से उन सबूतों को नष्ट कर दिया जाता है और इस तरह से विवेचक स्वयं ही सबूत नष्ट करने का गंभीर अपराध करते हैं और साथ ही साथ उस मुकदमे को भी कमजोर करते हैं जिससे कोर्ट में भी सही न्याय नहीं हो पाता है ।
6- विवेचना की इन कमियों को तत्काल दूर किया जाना कानून के शासन के लिए परमावश्यक है। इसके लिये सटीक उपाय मैंने गतांक के पैरा 4 में बताया है कि प्रत्येक पुलिस उच्चाधिकारी के कार्यालय में प्रत्येक पीड़ित के शिकायती प्रार्थना पत्रों की पावती(रिसीविंग) देना सुनिश्चित किया जाये ताकि पीड़ित पक्ष द्वारा विवेचक के कदाचार की, की गई शिकायत को उच्चाधिकारी पक्षपातपूर्ण ढंग से हजम न कर सकें व उस पर कार्यवाही करने को मजबूर हों क्योंकि विगत 70 सालों में अक्षम सरकारों के कारण पूरे पुलिस विभाग का निजाम पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। अतः अब सख्त मार्ग से ही इस कैंसर का इलाज संभव है। वरना कानून का शासन लागू करके , सुशासन पाने का लक्ष्य केवल शेखचिल्ली का सपना बनकर ही रह जायेगा ।
सुलभ न्याय के सहज उपाय (भाग-1)
जय हिंद । शेष फिर
भवदीय – ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”( क्रिमिनल लॉयर)