विपुल रेगे। ब्रम्हास्त्र के कलेक्शन कथित रुप से बढ़ते चले जा रहे हैं। भारतवर्ष के लिए ये पहला अवसर है, जब वह भारतीय सिनेमा के वर्षों पुराने मापदंडों को यूँ ध्वस्त होते देख रहा है। एक भी थियेटर में हॉउसफुल का बोर्ड नहीं टंगा लेकिन फिल्म आय के कीर्तिमान बना रही है। ट्रेड पंडितों के लिए ये एक अनोखा अनुभव है। विवेक अग्निहोत्री की ‘कश्मीर फाइल्स’ को ब्रम्हास्त्र ने पीछे छोड़ दिया है। इसको हम सत्य मान लें तो ये भी मानना होगा कि भारत लोकप्रियता और अपयश का अंतर करना भूल चुका है।
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‘ब्रम्हास्त्र : पार्ट वन शिवा’ 9 सितंबर को रिलीज हुई थी। तबसे लेकर अब तक हम खाली थियेटर्स और करण जौहर द्वारा की गई आंकड़ों की बाज़ीगरी देख रहे हैं। मीडिया का ये कहना कि द कश्मीर फाइल्स को ब्रम्हास्त्र ने पीछे छोड़ दिया है, फिल्म पत्रकारिता का गंवारपन दर्शाता है। फिल्मों को तौलने के दो पैमाने होते हैं। एक तो उसकी लोकप्रियता और दूसरी उसकी प्रासंगिकता।
इन दोनों से ही फिल्म की व्यवसायिक सफलता भी जुड़ी होती है। यदि फिल्म लोकप्रिय है तो वह पैसा भी कमाएगी। ऐसा नहीं हो सकता कि बुरी समीक्षाएं, खाली थियेटर और उत्साहहीन पब्लिक रिएक्शन मिलने के बाद कोई फिल्म बॉक्स ऑफिस का युद्ध जीत ले। विवेक अग्निहोत्री ने द कश्मीर फाइल्स को पछाड़ने की बात को लेकर कहा है कि वे इस बेवकूफी की रेस में शामिल नहीं हैं।
विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ने हर दिन के साथ बॉक्स ऑफिस पर पकड़ बनाई थी। धीमे-धीमे कलेक्शन बढ़ते रहे। एक सप्ताह बाद स्थिति ये हो गई कि देश के छोटे शहरों और गांवों में टिकट न मिलने पर दर्शकों ने ज़मीन पर बैठकर ये फिल्म देखी थी। उस सच्ची लहर को ब्रम्हास्त्र कभी पछाड़ नहीं सकती। द कश्मीर फाइल्स एक कल्ट बन चुकी है और इतनी प्रासंगिक है कि अगले बीस वर्षों में भी याद की जाएगी लेकिन ब्रम्हास्त्र की स्मृति अधिक नहीं बनी रह सकती।
फिल्म उद्योग की धुरी बने करण जौहर इस ‘मोडिफाइड सक्सेस’ के जरिये ‘बॉयकॉट बॉलीवुड’ अभियान को समाप्त करने के प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने अपने मीडियाई मित्रों के साथ मिलकर ऐसा भ्रमजाल रच दिया है, जिसे भेदना अत्यंत आवश्यक है। आपको याद होगा एक वर्ष पूर्व टीआरपी में धांधली को लेकर तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने चौंकाने वाले खुलासे किये थे।
जिस ढंग से न्यूज़ चैनल टीआरपी में धांधली करते हैं, वैसे ही बॉक्स ऑफिस का खेल खेला जाता है। भारत के सूचना व प्रसारण मंत्री को इस विषय में सोचना चाहिए। गलत कलेक्शन दिखाकर दर्शकों को भ्रमित करना किसी भी दशा में एथिकल तो नहीं कहा जा सकता है। एक सप्ताह से ‘चीता गान’ गा रहा भारतीय मीडिया यदि लम्पी वायरस और बॉक्स ऑफिस की धांधली को लेकर एक सप्ताह तक ‘ट्रोलिंग वीक’ चला दे तो गायों को वायरस और हमको जौहर से मुक्ति मिल सकती है।