वह सब सन 2014 में शुरू हुआ था, जब गायक अरिजीत सिंह स्टार गिल्ड अवार्ड्स के समारोह में अवार्ड लेने पहुंचे थे। स्टेज पर सलमान खान मौजूद थे। सलमान ने कहा ‘ये हमेशा ऐसे गाने क्यों गाता है, कि पब्लिक रोते-रोते सो जाती है’। इस पर अरिजीत ने जवाब दिया ‘आप लोग ने सुला दिया’। अरिजीत का इशारा सलमान की होस्टिंग स्किल को लेकर था। बस इतनी सी बात को बॉलीवुड के सुपरस्टार ने इज्ज़त का सवाल बना लिया। इसके बाद दोनों के बीच एक कोल्ड वॉर शुरू हो गया। अरिजीत से फ़िल्में छीनी जाने लगी। ये सौतेला व्यवहार सन 2016 तक जारी रहा, फिर अरिजीत ने भाई से उनका दिल दुखाने के लिए माफ़ी मांग ली। हां सलमान को सार्वजानिक रूप से उनके साथ मज़ाक करने का अधिकार था लेकिन अरिजीत को नहीं।
सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद इंडस्ट्री से कुछ बगावत के स्वर उठ रहे हैं। इनमे कंगना रनौत, अभिनव कश्यप और सोनू निगम प्रमुख हैं। सोनू निगम ने अपने हाल के वीडियो में ‘म्यूजिक इंडस्ट्री’ के एकाधिकार को लेकर कुछ बातें कही हैं। उन्होंने कहा आज सुशांत मरा है, कल आप ऐसा किसी गायक, संगीतकार या कम्पोजर के बारे में भी सुन सकते हैं। उन्होंने इशारा किया है कि म्यूजिक इंडस्ट्री में सारी ताकत केवल दो लोगों के हाथों में है।
यहाँ वे देश की दो प्रमुख कंपनियों के बारे में जिक्र कर रहे हैं। इन कंपनियों ने सारा मार्केट कैप्चर किया हुआ है। संभवतः वे यशराज म्यूजिक और ज़ी म्यूजिक की ओर इशारा कर रहे थे। गायिका नेहा कक्कड़ ने कुछ दिन पहले सोनू निगम जैसी ही बात कही थी। उन्होंने कहा था ‘दो कंपनियां पूरी इंडस्ट्री को कंट्रोल कर रही हैं। ये ही तय करती हैं कि कौन गाएगा, कौन नहीं। यही लोग तय करते हैं कि रेडियो पर क्या बजेगा।’
इस तरह की मोनोपॉली इंडस्ट्री में बेहद ख़तरनाक स्तर पर पहुँच चुकी है। न केवल फिल्मों को लेकर, बल्कि संगीत को लेकर एकाधिकार जमाने की ये चेष्टाएं और भी अधिक आत्महत्याओं की परिणीति के रूप में सामने आ सकती है। सुशांत सिंह का अपराध ये था कि वे एक बेजोड़ अभिनेता थे और सलमान खान जैसे नॉन स्टार एक्टर को उसके ही रिंग में धूल चटाने की क्षमता रखते थे।
सोनू निगम और अभिजीत का अपराध ये था कि जब तक वे नहीं हटाए जाते, पाकिस्तान से आए आतिफ असलम जैसों का सफल होना मुश्किल था। भारत में संगीत का बाज़ार अरबों रूपये का है। लेकिन अब इस बाजार में दो तीन ही बड़े खिलाड़ी रह गए हैं। बाकियों को तो गुलशन कुमार जैसा रास्ते से हटा दिया गया। एकाधिकार की ये लड़ाई अब फिल्मों, फिल्मी संगीत और कलाकारों के चयन तक पहुँच चुकी है।
एक बार अजय देवगन ने यशराज फिल्म्स को नोटिस भेज दिया। नोटिस में कहा गया कि यश राज फिल्म्स अपने नाम का दुरूपयोग कर इंडस्ट्री में मोनोपॉली कर रही है। आरोप था कि कंपनी फिल्मों की रिलीज डेट्स में दखल देती है। दूसरे प्रोडक्शन हॉउस की फिल्मों को ‘फेवरेबल डेट्स’ नहीं लेने देती। गौरतलब है कि त्योहारों के अवसर पर फ़िल्में अधिक कमाई करती हैं। इन तारीखों पर भी यश राज फिल्म्स ने अधिकार जमा रखा है।
सोचिये कि एकाधिकार किस कदर हावी है कि छोटा फिल्म निर्माता अपनी फिल्म को मुकाबले के लिए बड़ी फिल्म के सामने खड़ा नहीं कर सकता। कुछ फिल्म निर्माता इंडस्ट्री में ‘डायनासोर’ की शक्ल अख्तियार कर चुके हैं। ये लोग सब कुछ तय कर रहे हैं। यदि ये चाल कायम रही तो उद्योग को बड़ा नुकसान झेलना होगा। क्योंकि इस उद्योग की नींव ही रचनात्मकता पर टिकी है। फिल्मों की सफलता-असफलता को अपने ढंग से मैनेज नहीं किया जा सकता।
फ़िल्मकार प्रकाश झा ने इस मुद्दे पर अजय देवगन का साथ देते हुए यश चोपड़ा से आग्रह किया था कि इस तरह की मोनोपॉली बंद होनी चाहिए। बात सही भी है। किसी भी त्योहार के अवसर पर यश राज फिल्म्स सबसे अधिक थियेटर पर कब्जा कर लेते हैं। इसका नुकसान छोटे फिल्म निर्माताओं को होता है, जो त्योहार की भीड़ का लाभ ले नहीं पाते। डेट्स पर कब्जा करने की परंपरा तो पहले से चली आ रही है ।
लेकिन यशराज जैसे निर्माताओं ने इस कब्जे को इतना व्यापक रुप दिया है कि छोटे निर्माताओं की बैंड बज गई है। सोचिये इंडस्ट्री के कुछ बैनर कितनी खतरनाक सोच के साथ आगे बढ़ रहे हैं। वे कलाकारों का कॅरियर तय कर रहे हैं। वे ही तय कर रहे हैं कि उनकी फिल्मों के लिए गीत कौन गाएगा, गीत कौन लिखेगा। ये स्वतंत्रता भी संगीतकार को नहीं मिल रही है। ऐसे में रचनात्मकता कैसे जीवित रहेगी और विविधता कैसे बनी रह सकेगी, ये ज्वलंत प्रश्न है।
Kapil Sharma show is also captured by Khan gangs. And might be interfering in diciding his punch lines !!