सभी ग्रुपों में, सोशल मीडिया में, तथा विविध समस्याओं की चर्चा में एक वर्ग सदैव हिन्दू एकता की जरूरत बताता है। इस रूप में, मानो सारी समस्याओं का निदान, या निदान की पूर्वशर्त वही है। एकता ; परन्तु क्या करने के लिए?
- इतिहास झुठलाने, सदियों के इस्लामी जिहाद पर पर्दा डालने, मुस्लिमों के हिन्दू द्वेष का कारण अंग्रेजों को बताने, और मूल अपराधियों, जिहादी सरदारों पर चादर चढ़ाने और पद्म-पुरस्कार देने के लिए?
- नेहरू, गाँधी को प्राइवेटली गंदी गालियाँ दे-देकर पब्लिकली तमाम नेहरूवादी, गाँधीवादी नीतियाँ देश पर थोपने के लिए?
- सेक्यूलरवाद की आलोचना करके, तुष्टिकरण की निन्दा करके, अपनी जमीन फैला लेने; मगर सत्ता हाथ में लेते ही वही तुष्टीकरण दसगुना करने, और उस पर गर्व करने के लिए?
- मार्क्स, मिशनरी, मैकाले को पानी पी-पी कर दशकों कोसने; मगर शिक्षा नीति और तमाम राजकीय नीतियों में मार्क्सवादी, मिशनरी, और मैकालेवादी विचारों को जमकर फैलाने, और पोप को सलामियाँ देने के लिए?
- तमाम गैर-भाजपा दलों को हर तरह से फींचने; मगर सत्ता हाथ में लेकर उन का ही अंधानुकरण कर लगभग पूर्णत: कांग्रेसी, जातिवादी, क्षेत्रवादी हो जाने के लिए?
- अर्थात, हिन्दुओं को एकताबद्ध होकर स्वयं अंधे कुएं में ढकेले जाने के लिए?
याद रखिए, सदैव एकता की तोतारटंत केवल असली बात – अपनी गलत नीतियों, अपने गलत कामों – से हिन्दुओं का ध्यान हटाने की कपटपूर्ण दलील है। इस का अर्थ है: गैर-भाजपा राजनीतिक दलों का देश से सफाया, ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ आदि, जो असंभव है। हिन्दुओं को किसी पार्टी या संगठन का बँधुआ बनाने की चाह न उचित है, न संभव है।
यानी, न नौ मन तेल होगा, न संघ परिवार अपेक्षित असली काम करेगा! सो सारा दोष हिन्दू समाज का हुआ। QED!
तब तक संघ-भाजपा के नेतागण, कारकूनगण, सत्ता बल पर देश-विदेश मटरगश्ती करते, मनमाने काम करते, आत्मश्लाघा करते एवं मनमानी लफ्फाजियाँ झाड़ते हुए सुखपूर्वक समय बिताएंगे। हिन्दुओं का सामूहिक कत्ल, उत्पीड़न होने पर मौके का दौरा भी नहीं करेंगे, सांत्वना देकर ढाढस भी देने नहीं जाएंगे… क्यों?
क्योंकि सारा दोष तो हिन्दू जनता का है, न! उस में एकता नहीं है। बाकी, सब ठीक है।
इसीलिए, एकता एकता और एकता।
कबंध नेताओं द्वारा सदैव एकता रटंत का आशय यही है।
By Shankar Sharan ji