सरकारी संपत्ति हड़पने के लिए सोनिया गांधी के इशारे पर किस प्रकार यूपीए सरकार ने कानून का दुरुपयोग किया था इसका जीता जागता उदाहरण बन गया नेशनल हेराल्ड घोटाले का मामला। सोनिया गांधी नियंत्रित यूपीए-2 की सरकार ने हेराल्ड हाउस की संपत्ति को गांधी परिवार की जागीर बनाने के लिए आवंटित पट्टा में भी हेरफर कर दिया था। यह खुलासा शहरी विकास मंत्रालय द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस से हुआ है। जिस प्रकार नेशनल हेराल्ड घोटाले का मामला गहराता जा रहा है उससे साफ है कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में चलने वाली यूपीए सरकार गांधी परिवार को भ्रष्टाचार करने की पूरी छूट दे रखी थी, बल्कि यूं कहें कि भ्रष्टाचार में पूरी सरकार शामिल थी। तभी तो उसने जनवरी 2013 में हेराल्ड हाउस को आवंटित पट्टे में हेरफेर कर दिया था। ध्यान रहे कि यूपीए-2 की सरकार ने यह काम भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमनियन स्वामी द्वारा उठाए गए मामले के दो महीने बाद किया था।
मुख्य बिंदु
* 2013 की जनवरी में सोनिया गांधी नियंत्रित यूपीए सरकार ने हेराल्ड हाउस को आवंटित विवरण में किया था हेरफेर
* मंत्रालय की जांट टीम से हेराल्ड हाउस में कार्यरत कर्मचारी ने भी बोला था झूठ
* अखबार चलाने के नाम पर संपति हथियाने वाला घोटाला साबित हो रहा नेशनल हेराल्ड का मामला
नेशनल हेराल्ड के मुख्यालय हेराल्ड हाउस हड़पने के मामले में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी तथा वर्तमान अध्यक्ष राहुल गांधी के कई और भ्रष्टाचार सामने आए हैं। यह खुलासा शहरी विकास मंत्रालय द्वारा की गई जांच में हुआ है। मंत्रालय ने नेशनल हेराल्ड अख़बार के प्रकाशक एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड (एजेएल) को जो कारण बताओ नोटिस जारी किया था उससे पता चलता है कि सोनिया गांधी नियंत्रित यूपीए-2 सरकार ने साल 2013 की जनवरी में हेराल्ड हाउस के आवंटित विवरण बदल दिए थे। इस बारे में वहां के स्टाफ ने मंत्रालय की जांच टीम से झूठ बोला था।
सोनिया और राहुल ने कैसे सरकारी संपत्ति को अपने नाम कर लिया?
करीब आधा एकड़ में बने जिस हेराल्ड हाउस का निर्माण अखबार के संचालन के लिए किया गया था उस पर सोनिया और राहुल गांधी ने अपना कब्जा जमा लिया। सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने अपनी यंग इंडिया कंपनी के माध्यम से नेशनल हेराल्ड के प्रकाशक कंपनी एसोसिएट जर्नल लिमिटेड को खरीद लिया। एजेएल खरीदने के बाद ही उन्होंने साल 2011 के मध्य में हेराल्ड हाउस के शुरू के दो तल पासपोर्ट सेवा केंद्र को 80 लाख रुपये प्रति महीने के किराये पर दे दिया। इसके बाद एक नवंबर को भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमनियन स्वामी ने नेशनल हेराल्ड घोटाले का भांडा फोड़ दिया। इस मामले में उन्होंने यंग इंडिया और एजेएल के बीच हुए सौदे को लेकर कोर्ट में मामला उठाया। ध्यान रहे कि स्वामी द्वारा मामला उठाए जाने के दो महीने बाद ही यानी 7 जनवरी 2013 को सोनिया गांधी नियंत्रित यूपीए-दो सरकार ने एजेएल के अनुरोध पर हेराल्ड हाउस के आवंटित पट्टे में हेरफेर कर दिया था।
जबकि हेराल्ड हाउस का निर्माण अखबार निकालने के लिए किया गया था।
गौरतलब है कि कांग्रेस सरकार ने नेशनल हेराल्ड अखबार निकालने के लिए 1962 में आईटीओ स्थित प्रेस इन्क्लेव जैसे महत्वपूर्ण लोकेशन में करीब आधा एकड़ जमीन महज 50 हजार रुपये में लीज पर आवंटित की थी। 1967 में अखबार निकालने तथा प्रकाशन संबंधी कार्य के सुचारूप से संचालन तथा हेराल्ड हाउस के भूतल और पहली मंजिल के रखरखाव के लिए अखबार को अन्य मंजिल को किराए पर देने की भी मंजूरी दी थी। हालांकि सरकार ने इस बिल्डिंग में होटल, रेस्टोरेंट तथा सिनेमा हॉल नहीं खोलने की शर्त लगा दी थी। लेकिन बाद में इस संपत्ति पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने कब्जा जमा लिया।
बाद में सुब्रमनियन स्वामी ने मार्च 2018 में मोदी सरकार से एजेएल से हेराल्ड हाउस वापस लेने का अनुरोध किया था। उन्होंने सरकार को बताया कि एजेएल को जिन शर्तों के साथ जमीन का आवंटन किया गया था उसका सरासर उल्लंघन किया जा रहा है। स्वामी के अनुरोध पर ही शहरी विकास मंत्रालय ने आवास एंव शहरी मामला मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा इनकी जांच के लिए तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई थी। कमेटी ने 9 अप्रैल 2018 को हेराल्ड हाउस की जांच की तो पाया कि वहां पर अखबार का कोई काम हो ही नहीं रहा था। पूरे हेराल्ड हाउस में कहीं भी प्रकाशित अखबार का स्टॉक नहीं दिखा। जबकि एजेएल ने अपने बयान में कहा है कि अखबार और प्रेस से संबंधित कार्यालय चौथी मंजिल पर है।
एजेएल ने बताया था कि उसका एक साप्ताहिक इंडियन एक्सप्रेस प्रेस से प्रकाशित होता है जो नोएडा सेक्टर चार में है। जांच कमेटी को जो अखबार उपलब्ध कराया गया वह 24 सितंबर 2017 का था। कमेटी ने जब पूछा कि उससे पहले का अखबार कहां है तो बताया गया कि आर्थिक तंगी के कारण अखबार को बंद कर दिया गया था और उसके कर्मचारियों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दे दी गई थी। जांच कमेटी का कहना है कि पूरे हेराल्ड हाउस में कहीं भी प्रकाशन का काम नहीं चल रहा था। इससे साफ है कि जिस उद्देश्य के लिए यह जमीन आवंटित की गई थी उसका सरेआम उल्लंघन किया जा रहा था। जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि हेराल्ड हाउस में प्रेस चलाने तथा लीज समझौते के नियमों और शर्तों का पालन नहीं किया जा रहा है।
जो नेशनल हेराल्ड अखबार अप्रैल 2008 तक दैनिक के रूप में प्रकाशित हो रहा था उसका अचानक बंद हो जाना और फिर अचनानक 2017 में साप्ताहिक अखबार के रूप में प्रकट हो जाना यह दिखाता है कि यह भ्रष्टाचार का कितना बड़ा मामला है? इससे यह भी साफ हो जाता है कि किस प्रकार सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने अपनी नई कंपनी यंग इंडिया के माध्यम से हेराल्ड हाउस पर अपना कब्जा जमााय है? मालूम हो कि सरकार ने नेशनल अखबार के सुचारू रूप से प्रकाशन के लिए ही हेराल्ड हाउस के अन्य तलों को रेंट पर देने की अनुमति दी थी, ताकि अखबार के प्रकाशन और संचालन में कभी कोई बाधा न आए।
सबसे खास बात यह है कि जब नेशनल हेराल्ड का नाम बचाने के लिए नया साप्ताहिक शुरू किया गया तो कई स्वधन्यमान पत्रकार उस साप्ताहिक में काम करने के लिए शामिल हो गए। वे सोनिया गांधी और राहुल गांधी के उस भ्रष्टाचार को भूल गए जो उन्होंने नेशनल हेराल्ड की संपत्ति और हजारों करोड़ रुपये मूल्य की जमीन हड़पने के लिए की है। ये वही पत्रकार हैं जो गांधी परिवार की वंदना में चौबीसों घंटे लगे रहते हैं।
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URL: Sonia and Rahul’s many other corruption exposed in National Herald case
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