विपुल रेगे। सन 1992 में स्पेन का एक गांव प्रलयंकारी बाढ़ में जलमग्न हो गया था। स्पेन-पुर्तगाल सीमा पर बसा एसरेडो अब फिर पानी से बाहर आया है। एक बाँध से पानी छोड़े जाने के बाद ये गाँव पानी में समा गया था। विश्व में ऐसे घोस्ट विलेज समय-समय पर मिलते ही रहते हैं। उन गांवों के बाहर आने से पुराविदों को प्राचीन मानव जीवन के बारे में जानकारियां ज्ञात होती है। कई प्राचीन सभ्यताओं के चिन्ह अब भी समुद्र अपने भीतर छुपाए बैठा है। उन सभ्यताओं में से एक श्रीकृष्ण द्वारा बसाई द्वारिका भी है।
द्वारिका को लेकर अनवरत अनुसंधान चलते रहे हैं। न केवल भारत सरकार अपितु पश्चिम से भी खोजी द्वारिका के रहस्य से आकर्षित होकर चले आ रहे हैं। सन 2019 में विश्व के विख्यात खोजी जोशुआ गेट्स भारत के अपने अटलांटिस को खोजने भारत आए थे। पश्चिम के खोजियों के अनुसन्धान के अपने रोचक तरीके होते हैं। जोशुआ एक निर्भीक खोजी हैं और अपनी खोज के लिए दुर्गम स्थानों पर सहजता से चले जाते हैं।
जब वे भारत आए तो हमारे इस दावे पर संदेह में थे कि श्रीकृष्ण ने यहाँ एक अत्याधुनिक श्रेष्ठ नगर का निर्माण किया था। जोशुआ ने द्वारिका में कार्य कर रही भारतीय पुरातत्वविदों से भेंट की। जब जोशुआ ने भारतीय गोताखोरों द्वारा समुद्र से निकाले गए द्वारिका नगरी के अवशेष देखे तो उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं बचा था। वे यहाँ अमिश शाह से मिले। अमिश यहाँ एक खोजी के रुप में कार्यरत हैं।
जोशुआ यहाँ के मरीन आर्कियोलॉजिस्ट डॉ ए एस गौर और डॉ सुंदर्श से भी मिले। यहाँ के विशेषज्ञ गोताखोर के साथ जोशुआ ने सागर में गहरी डुबकी लगाई। लगभग पचास फ़ीट नीचे जाने पर उन्होंने द्वारिका के अवशेष देखे। केवल जोशुआ की बात ही क्यों करे। भारत के एक चैनल की रिपोर्टर श्वेता सिंह स्वयं डुबकी लगाकर ये दृश्य देखकर आईं हैं। जोशुआ ने उस विशाल दीवार के भी दर्शन किये, जो द्वारिका की सुरक्षा के लिए निर्मित की गई थी।
उन्होंने एक सील भी देखी, जो कभी द्वारिका प्रशासन द्वारा प्रयोग में लाई जाती थी। ये अब सिद्ध होता जा रहा है कि विश्वभर में प्राचीन सभ्यताओं के जो प्रमाण मिल रहे हैं, उनका गूढ़ संबंध सनातन से है। आर्कटिक की बर्फ पिघल रही है और यहाँ से प्राचीन अवशेष प्राप्त हो रहे हैं। आर्कटिक में एक प्राचीन सभ्यता होने का और उससे अपना संबंध होने का दावा कई देशों की ओर से किया जा रहा है।
दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी और लेखक लोकमान्य तिलक ने सन 1903 में एक किताब The Arctic Home in the Vedas लिखी। इस किताब में तिलक ने खगोलीय आंकलन और वेदों के द्वारा ये प्रमणित करने का प्रयास किया है कि सनातनियों का एक घर आर्कटिक प्रदेश में भी हुआ करता था। यहाँ सनातनियों द्वारा सैकड़ों या हज़ारों वर्षों तक वेदों का पालन किया गया।
अरब सागर में जलमग्न द्वारिका के बहुत से अवशेष सतह पर लाए नहीं जा सकते। उनमे वह दीवार भी है, जो उस समय के वास्तुकारों के कला-कौशल का प्रमाण है। सत्य है कि द्वारिका धीरे-धीरे नष्ट हो रही है। सागर का जल उसे धीमी गति से खाता जा रहा है। भारतीय अनुसंधान जारी है और लगातार आगे बढ़ रहा है। संभव है कि आज से लगभग दस वर्ष पश्चात् भारत विश्व को द्वारिका नगरी की पूरी कथा सुनाने में सक्षम हो जाएगा।