न तो बड़े नोटों को पूर्ण रूप से बंद किया गया है और न ही उनका अवमूल्यन किया गया है बल्कि प्रचलित बड़े नोटों के स्थान पर सरकार ने नयी मुद्रा जारी की है जिसे विमुद्रीकरण कहा जाता है। किसी भी देश की आर्थिक संरचना और ढाँचे में यह कोई आपदा या अनहोनी नहीं है। बहुत से देशों में अलग अलग कारणों से यह प्रक्रिया अपनाई जाती रही है।
देश की अर्थव्यवस्था में तेजी लाने, नकली नोटों और काले धन के खात्मे के लिए प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने पिछले महीने इस विमुद्रीकरण की नीति को अपनाया। इस विषय की महत्ता और संवेदनशीलता को समझते हुए स्वयं प्रधानमंत्री ने आगे आकर मोर्चा सम्भाला, देश के नागरिकों के हितों के सुरक्षित होने का आश्वासन दिया।
बावजूद इसके देश में तमाम विपक्षी दल, मीडिया और लगभग सुप्त अवस्था में रहने वाले अर्थशास्त्रियों ने जो मातम मनाया वो हैरान करने वाला है। जिन लोगों ने सत्ता में रहकर गरीब, किसान और मजदूर के जीवन को कभी बेहतर नहीं होने दिया वे दल और उनके नेता आज इस तबके के लिए घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं।
देश की तरक्की के लिए कुछ सख्त कदम उठाये जाने की जरूरत काफी लम्बे समय से अनुभव की जा रही थी। पूर्ववर्ती कांग्रेस की सरकारें अर्थव्यवस्था को जिस हाल में छोड़ गईं थी उस दायरे में रहकर वर्तमान सरकार से लोगों की आकांक्षाओं और उम्मीदों को पूरा नहीं किया जा सकता था। इसलिए ये कदम उठाया गया।
जनता तमाम शुरुआती आशंकाओं के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी के मंतव्य को समझने में अब कामयाब हो गई है। जिन किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नोटबंदी के फैसले से सर्वाधिक नुकसान होने की बात की जा रही थी उन्हीं किसानों ने इस वर्ष रबी की फसल की बुआई पिछले वर्ष के 382.84 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 415.53 लाख हेक्टेयर में की है जो कि 9 प्रतिशत अधिक है।
जो सो रहा हो उसे तो जगाया जा सकता है लेकिन जो जागते हुए सोने का ढोंग कर रहा हो उसे जगाना बहुत मुश्किल है। विपक्ष की इस चिरनिद्रा को तोड़ने का असल काम अब जनता ही करेगी।
विमुद्रीकरण के विरोध में देश की जनता की आवाज कहलाने का हक़ रखने वाला विपक्ष अगर इस मुद्दे पर वाकई गंभीर है तो उसे संसद में चर्चा करना चाहिए जिसके लिए वह तैयार नहीं है क्योंकि वे जानते हैं जब तथ्यों, आंकड़ों और सरकार की मंशा की बात होगी तो उन्हें मुंह छुपाने को भी जगह नहीं मिलेगी । इसलिए कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों की यह रणनीति है कि संसद के इस सत्र को हंगामे की भेंट चढ़ा दिया जाए ताकि जनता केवल भ्रम से रूबरू हो सके सच्चाई से नहीं ।
लेकिन जैसे जैसे समय गुजर रहा है सरकार के फैसले को लेकर जो भ्रांति निर्मित किया गया था वह स्वत: ही छंट रहा है और देश की सुधि जनता इसके लिए बधाई की पात्र है ।