मोदी जी ने कल गौ रक्षा के बहाने आतंक फ़ैलाने वाले लोगों को चेताया है कि वह इससे बाज आएं. मोदी जी के इस वक्तव्य का कई लोगों ने गलत मतलब निकलना शुरू कर दिया है, तथा भ्रम कि स्थिति बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
आप लोग यकीन मानिये, मोदी के वक्तव्य को पहचाने की कोशिश कीजिये. वह कहना क्या चाहते हैं? भारत में पिछले दो साल में जिस तरह से घटना क्रम बदले हैं उसमें मोदी जी ने कभी भी रियेक्ट नहीं किया चाहे वो जेएनयू का मामला हो अथवा कोई और लेकिन इस मामले यदि वे बोले हैं तो कोई न कोई बात जरूर होगी. गाय को भारत में माता कहा गया है और माता का अनादर कोई भी नहीं सुन सकता लेकिन मित्रों गौरक्षक के भेष में अस्थिरता फ़ैलाने की साजिश को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
भारत में चुनावों के मौसम में संप्रदाय विशेषों पर विशेष कृपा और उनके खिलाफ होने वाले अपराधों में तथाकथित असहहिणुता बढ़ जाती है और यह बात कोई नयी नहीं है. दादरी घटना से लेकर रोहित वेमुल्ला जैसे हजारों उदाहरण हम लोग पहले देख चुके हैं. कैसे इन घटनाओं की लॉबिंग कर उनसे होने वाले फायदे को राजनैतिक दल भुनाते हैं तथा होने वाली दुर्घटनाओं को भी उससे होने वाले फायदे और वोट बैंक की संतुष्टि के तौर पर इस्तेमाल करने में हमारे राजनीतिज्ञों का कोई सानी नहीं है.
इंसान और धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले गाय के नाम पर, राजनीति के समीकरणों को साधने की कोशिश नहीं करेंगे इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है,गुजरात में दलित पिटाई मामले में सूत्र बताते हैं की इस घटना के पीछे कांग्रेस के एक नेता का हाथ है. तो सोचिये गौरक्षा के नाम पर सरकार के खिलाफ दलितों में रोष फ़ैलाने के के लिए खेले जाने वाले खेल से मैं इंकार नहीं कर सकता. जरा सोचिये भारतीय राजनीति में यदि इंसान के नाम पर राजनीति हो सकती है ,जाति के नाम पर राजनीति हो सकती है ऊँच -नीच के नाम पर राजनीति हो सकती है तो गाय के नाम पर क्यों नहीं ?