सत्यका मार्ग इतना तंग है कि उसपर आप अकेले ही जा सकते हैं। इसलिये इन्द्रिय, मन, बुद्धि आदि के साथ रहने का मोह छोड़ दें। इनके साथ रहकर आप उस तंग रास्तेपर नहीं चल सकते। अकेले होनेपर मार्ग अपने-आप दिखाई देगा।
जब आप अकेले हो जायँगे, तब भगवान्की कृपासे ही भगवान्को जान लेंगे।
प्यारे, कोई भी प्रेमी अपने प्रेमपात्रसे किसीके सामने नहीं मिलता, तो फिर जबतक आप शरीर आदि अनेक सम्बन्धियोंको साथ लिये हुए हैं, आपका प्रेमपात्र आपसे कैसे मिल सकता है ? भगवान् कैसे हैं ? यदि यह जानना चाहते हो तो अकेले हो जाओ।
किसीको बुलाओ मत; क्योंकि जो आपका है, वह आपके बिना रह नहीं सकता अर्थात् अपने प्रेम-पात्रको निरन्तर अपनेमें ही अनुभव करो। … अपने सिवाय अपने लिये अपनेसे भिन्नकी आवश्यकता नहीं है।
ईश्वर-प्राप्तिके लिये वनमें जानेकी जरूरत नहीं है। जो घरमें आरामसे रहकर भजन नहीं कर सकता, वह वनमें कष्ट सहकर कैसे कर सकता है ? वनमें रहना तो तपके लिये आवश्यक होता है।
पुज्यपाद स्वामी श्री शरणानन्द जी महाराज