नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि राज्य हिंदुओं या अन्य को अल्पसंख्यक घोषित कर सकते हैं अगर वहां हिंदू या अन्य समुदाय कम संख्या में हैं ताकि वे अपने संस्थानों की स्थापना और प्रशासन कर सकें। केंद्र सरकार ने कहा है कि राज्य अपने क्षेत्र के भीतर एक धार्मिक या भाषाई समूह को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में घोषित कर सकते हैं।
जैसा कि महाराष्ट्र ने 2016 में यहूदियों के मामले में किया था और कर्नाटक ने उर्दू, तेलुगु, तमिल, मलयालम, मराठी, तुलु, लमानी, हिंदी, कोंकणी और गुजराती को अल्पसंख्यक भाषाओं के रूप में अधिसूचित किया था।
केंद्र सरकार ने कहा है कि राज्य नियमों के अनुसार संस्थानों को अल्पसंख्यक संस्थानों के रूप में प्रमाणित कर सकते हैं।
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में कहा गया है कि याचिकाकर्ता वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय का दावा कि यहूदी, बहावाद और हिंदू धर्म के अनुयायी, जो लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में अल्पसंख्यक हैं, अपने संस्थाओं का प्रशासन नहीं कर सकते, यह सही नहीं है।
केंद्र सरकार ने कहा है,’ ‘वे उक्त राज्य में अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन कर सकते हैं और राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशानिर्देश निर्धारित करने पर संबंधित राज्य सरकारों द्वारा विचार किया जा सकता है।’
केंद्र सरकार ने साथ ही यह भी कहा कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की स्थापना सकारात्मक कार्रवाई और समावेशी विकास के माध्यम से अल्पसंख्यकों की सामाजिक आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए की गई थी ताकि प्रत्येक नागरिक को एक जीवंत राष्ट्र के निर्माण में सक्रिय रूप से भाग लेने का समान अवसर मिले। विभिन्न योजनाएं केवल आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों या वंचित बच्चों और अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों के लिए हैं। यह अल्पसंख्यक समुदाय से सभी लोगों के लिए नहीं हैं।
हालांकि केंद्र ने साथ ही यह भी कहा है कि अकेले राज्यों को अल्पसंख्यकों के विषय पर कानून बनाने की शक्ति नहीं दी जा सकती क्योंकि यह संवैधानिक योजना के विपरीत होगा और शीर्ष अदालत के कई फैसलों के खिलाफ होगा। केंद्र ने कहा हैं कि संसद संविधान के अनुच्छेद- 246 और अनुसूची सात की समवर्ती सूची में प्रविष्टि-20 के तहत राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 को अधिनियमित किया था।
अगर केवल राज्य के पास अल्पसंख्यक के विषय पर कानून बनाने की शक्ति को स्वीकार किया जाता है तो संसद को उसकी शक्ति से वंचित कर दिया जाएगा, जो संवैधानिक योजना के विपरीत होगा।
केंद्र ने टीएमए पई और बाल पाटिल मामलों में शीर्ष अदालत के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि वे अल्पसंख्यक के रूप में एक समुदाय को अधिसूचित करने के लिए संसद और केंद्र सरकार की विधायी और कार्यकारी शक्तियों पर कानूनी प्रतिबंध नहीं लगाते हैं।
उपाध्याय ने अपनी याचिका में केंद्र को राज्य स्तर पर अल्पसंख्यक की पहचान के लिए दिशा-निर्देश देने की मांग करते हुए कहा गया था कि 10 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं और वहां वे अल्पसंख्यकों के लिए बनाई गई योजनाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।