विपुल रेगे। कर्नाटक चुनाव में भाजपा के पास जीतने के लिए एक ही सहारा बचा है। नरेंद्र मोदी के नाम पर कर्नाटक जीतने की जुगत में भारतीय जनता पार्टी इतनी आगे निकल गई कि उसने ‘आरआरआर’ के ऑस्कर विनर गीत ‘नाटू-नाटू’ चुराकर उसे ‘मोदी-मोदी’ में परिवर्तित कर दिया है। जिस फिल्म को सरकार ने ऑस्कर में भेजने में तनिक भी रुचि नहीं दिखाई, उस फिल्म के गाने को चुराकर प्रचार किया जा रहा है।
किसी भी राज्य में चुनाव प्रचार के लिए माननीय प्रधानमंत्री की रैलियों का रेला बहना आम बात हो चुकी है। अब तो प्रधानमंत्री सीबीआई के ट्वीटर हैंडल को भी लॉन्च करने का समय निकाल लेते हैं। वे हर जगह हैं लेकिन उनके मंत्री कभी दिखाई नहीं देते। वे बांदीपुर टाइगर रिजर्व में भी चले जाते हैं और नामीबिया के चीतों को जंगल में छोड़ने का कार्य भी बखूबी कर लेते हैं। कर्नाटक के चुनाव में भी सारे उम्मीदवारों के एक उम्मीदवार मोदी ही हैं।
कर्नाटक भाजपा अपने राज्य में मोदी से उम्मीद कर रहे हैं कि वे यहाँ मतदान से पहले बीस रैलियों का रेला बहा दे, ताकि भाजपा पुनः सत्तासीन हो जाए। कर्नाटक सरकार को अपने कार्यों पर भरोसा नहीं है, इसलिए प्रधानमंत्री की रैलियों की आवश्यकता पड़ रही है। ‘आरआरआर’ के ऑस्कर विजेता गीत को रिमिक्स बनाकर ‘नाटू-नाटू’ के स्थान पर ‘मोदी-मोदी’ घुसेड़ना बड़ा ही भौंडा प्रयोग लग रहा है। इसे देखकर उन भजनों की याद आ जाती है, जिनमे फिल्मी गीतों की धुन पर भजन बना दिए जाते हैं और बड़ा ही विचित्र आउटपुट देते हैं। कर्नाटक की जनता को ये प्रयोग शायद ही पसंद आए।
दरअसल फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार जिस समस्या के शिकार हैं, वही समस्या माननीय प्रधानमंत्री की भी है। जैसे अक्षय कुमार हर चौथे विज्ञापन में दिखाई देते हैं, वैसे ही मोदी को आप अख़बार, फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टा, न्यूज़ चैनल पर लगातार देख रहे हैं। ये ‘लगातार दिखना’ विगत आठ वर्ष से चल रहा है और अब कुछ अधिक हो चला है। राजनीति में ‘ओवर एक्स्पोजिंग’ अच्छी नहीं होती। जब एक प्रधानमंत्री केंद्र के चुनाव से लेकर निगम तक के चुनाव में दिखाई दे तो स्थिति सामान्य नहीं कही जा सकती।
साथ ही साथ वह शेर-चीतों के फोटो खींचने का समय निकाल ले और विदेश मंत्री के स्थान पर स्वयं विदेश यात्राओं पर जाने लगे तो ‘ओवर एक्स्पोजिंग’ की स्थिति बन जाती है। अब मोदी जी को एक गीत में भी खींच लिया गया है। देखा गया है कि मोदी सरकार हर लोकप्रिय व्यक्ति या लोकप्रिय रचना से खुद को जोड़कर प्रचार पाना चाहती है। यदि ऑस्कर की बात कर ले तो ‘आरआरआर’ और ‘द एलिफेंट व्हिसपरर्स’ को ऑस्कर में केंद्र सरकार ने ऑफिशियल एंट्री के रुप में नहीं चुना था। उस समय ये दोनों फ़िल्में केंद्र सरकार के लिए काम की नहीं थी। जैसे ही इन फिल्मों ने ऑस्कर जीता, भाजपा गुड़ पर मख्खियों की तरह मंडराने लगी।
जब आप उस फिल्म को लायक ही नहीं समझते थे तो अब उस फिल्म के गाने को इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं। प्रधानमंत्री क्यों ‘द एलिफेंट व्हिसपरर्स’ के दो गुमनाम नायकों से मुलाक़ात कर फोटो खिंचाते हैं। महोदय ये फोटो उस समय खिंचवा सकते थे, जब फिल्म को ऑस्कर में फ्री एंट्री के तहत भेजा जा रहा था। दलगत राजनीति निर्मम, चतुर और अवसरवादी होती है। राजनीति के लिए समाज एक टूल है, जिसकी मदद से वह सत्ता साधती रहती है। फ़िल्में और उनके गीत भी राजनेताओं के लिए टूल्स हैं। इस बात से एस.एस.राजामौली बहुत दुःखी होंगे और उससे अधिक संगीतकार एम.एम.किरावनी दुखी होंगे, जिनके सुपर क्रिएशन को एक पार्टी ने निचले स्तर पर ले जाकर पेश किया है।