विपुल रेगे। राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म ‘तूफान’ के प्रमोशन के समय ऐसी अफवाहें चली थी कि ये मुंबई के एक मुक्केबाज़ की सत्यकथा पर आधारित है। इस अफवाह को फिल्म के रिलीज तक मेहरा ने खंडन नहीं किया था। अब पता चलता है कि ये एक काल्पनिक कथा है। फरहान अख्तर को मुख्य भूमिका में लेकर बनाई गई ‘तूफान’ बॉक्स ऑफिस पर कमज़ोर सिद्ध हुई है। फिल्म शुरु होने के कुछ देर बाद दर्शक प्रतीक्षा करने लगता है कि ये ख़त्म कब होगी।
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सबसे पहली कमज़ोरी इसकी कई बार दोहराई गई कथावस्तु है। एक है अज्जू। मुंबई में एक डॉन के लिए वसूली और तोड़फोड़ करता है। एक दिन वह घायल होकर अस्पताल जाता है। यहाँ उसको मिलती है डॉक्टरनी, जो बॉलीवुड के अखंड नियमों के अनुसार बहुत ही सुंदर है।
डाक्टरनी अनन्या को देखकर दर्शक अंदाज़ लगा लेता है कि चार सीक्वेंस के बाद ये अज्जू के साथ पार्क में घूमेगी और उसे वसूली छोड़ने का ज्ञान देगी। अंडरवर्ल्ड छोड़ने के बाद अज्जू प्रेमिका के कहने पर अजीज अली बन जाता है और बॉक्सिंग कोच नाना प्रभु से ट्रेनिंग लेने लगता है। इसके बाद समय-समय पर फिल्म में दर्शक को दंगल और सुल्तान की झलकियां देखने को मिलती है।
अजीज अली विवादों में फंसता है, उसके बाद उसकी वापसी होती है। निर्देशक ने एक स्पोर्ट्स फिल्म में लव जिहाद का एंगल भी डाला है, जो काम नहीं करता। दर्शक की मानसिकता यहाँ खेल फिल्म देखने की थी। इसलिए लव जिहाद का एंगल थोपा हुआ सा लगता है। मानो निर्माता-निर्देशक देश में चल रहे लव जिहाद प्रकरणों का लाभ उठाने की मानसिकता में थे।
फिल्म में मनोरंजन का भयंकर अभाव है। वैसे भी जहाँ फरहान अख्तर मुख्य भूमिका में हो, मनोरंजन की अपेक्षा रखना पाप है। राकेश ओमप्रकाश मेहरा के निर्देशन में ‘भाग मिल्खा भाग’ में उन्होंने अवश्य प्रभावित किया था। उसका कारण ये भी था कि ‘भाग मिल्खा भाग’ की पटकथा सशक्त थी। उसमे मिल्खा का चरित्र निपुणता से गढ़ा गया था। ‘तूफान’ का स्क्रीनप्ले ऐसा नहीं था कि मिल्खा की सफलता दोहराई जा सके।
कुछ दृश्यों में मेहरा प्रभावित करते हैं लेकिन वह फिल्म को चलाने के लिए पर्याप्त नहीं है। एक खेल फिल्म की सबसे बड़ी विशेषता होती है, उसकी गहराई। जब तक खेल की बारीकियां फिल्म में दिखाई नहीं देंगी, उसे देखने में रस ही नहीं आएगा। तूफान में निर्देशक खेल की बारीकियां दिखाने में चूक गए हैं। वे मुख्य विषय पर कम रहे और उसके आसपास अधिक घूमे हैं। इस कारण फिल्म मिनट दर मिनट बोझिल होती चली जाती है।
निश्चित रुप से अजीज़ अली की भूमिका के लिए फरहान के स्थान पर किसी और अभिनेता को लिया जाना चाहिए था। खेल फिल्मों का भारत में सफल होने का प्रतिशत नगण्य है। सुशांत सिंह राजपूत की ‘एम एस धोनी’ के बाद अब तक कोई खेल फिल्म दर्शकों के मन को छू नहीं सकी है। गरीबी, संघर्ष और षड्यंत्र तो धोनी में भी दिखाया गया था किन्तु उसे दिखाने का एक सही ढंग था, जो इस फिल्म में दिखाई नहीं दिया।
फरहान अख्तर की ‘तूफान’ हर विभाग में असफल रही है। वह न कथावस्तु से प्रभावित करती है, न निर्देशन से। ये एक ऐसा तूफान है, जो बॉक्स ऑफिस की खिड़की को हिला तक नहीं पाया।