श्वेता पुरोहित। एक हजार वर्षों तक प्रेतयोनि में रहनेवाले मुसलमान पीर सुलेमान ने, जिसे अभी सिखों के पूज्य संत राड़े वाले श्री ईश्वर सिंह जी महाराज की कृपासे ५ अगस्त सन् १९६८ को एक सिख- परिवारमें मनुष्य योनि प्राप्त हुई है और छात्र मनमोहन सिंहके शरीरमें प्रवेश करके उसने परलोक सम्बन्धी आश्चर्यजनक स्वयंकी आँखों-देखी जिन घटनाओं का वर्णन किया है, वे जितनी रोमाञ्चकारी हैं, उतनी ही हमारे शास्त्र-पुराणों की परलोक-सम्बन्धी सभी बातोंको सर्वथा सत्य प्रमाणित करनेवाली भी हैं। पूज्य संतजी महाराज की सेवा में हर समय रहने वाले मास्टर श्री राजेन्द्र सिंह जी ने हमें बताया कि हमने छात्र मनमोहन सिंह को अपनी एकान्त कोठरीमें बैठाकर उसके शरीरमें स्थित एक हजार वर्ष के मुसलमान पीर प्रेत से परलोक सम्बन्धी जो प्रश्न किये और उसने हमें जो उत्तर दिये वे ज्यों-के-त्यों इस प्रकार हैं-
श्री राजेन्द्र सिंह जी – ‘तुम्हारा क्या नाम है?’
प्रेत- ‘मेरा नाम सुलेमान है।’
‘तुम कहाँ के रहने वाले हो?’
‘मैं ईरान का रहनेवाला मुसलमान हूँ।’
‘तुम हिंदुस्तान कैसे आये?’
‘एक मुसलमान बादशाह हिंदुस्तान को लूटने के लिये यहाँ आया था। हम उसी बादशाह की सेना के साथ यहाँ आये थे।
वह तो इस देशको लूटकर अपने मुल्कको वापस चला गया, लेकिन मैं यहीं हिंदुस्तान में रह गया। यहीं मैंने एक औरतसे शादी कर ली और मैं जिला सहारनपुरके मुगलखेड़ा नामक एक गाँवमें रहने लगा। मेरे उस औरतसे दो लड़के और दो लड़कियाँ हुईं। इस प्रकार मेरे चार बच्चे हुए। मेरे नजदीक ही उन दिनों एक हिंदू तपस्वी रहा करता था, जो इस समय मनमोहनसिंहके रूपमें आपके सामने बैठा है। वह तपस्वी गंडे-तागे, ताबीज आदिका काम करता था और पाखंड भी करता था। मेरी एक नौजवान बड़ी खूबसूरत लड़की थी, जिससे उस तपस्वी साधुने अपने नाजायज ताल्लुकात पैदा कर लिये। उन नाजायज ताल्लुकातका मुझे पता चल गया। मैंने उस समय बहुत कोशिश की कि किसी प्रकार इनके नाजायज ताल्लुकात टूट जायँ। खुद भी मैंने बहुत समझाया-बुझाया और उस वक्तकी हुकूमतके जरिये भी ताल्लुकात तुड़वानेकी बड़ी कोशिश की, लेकिन मुझे कामयाबी नहीं मिली। मेरे दिलपर इस बातका ऐसा गहरा असर हुआ कि मैंने उस वक्त अपने उस खुदाबंदतालासे यह दुआ की कि मैं इससे इसका बदला किसी प्रकार जरूर लूँ। हे परवरदिगार ! तू मेरी यह इच्छा पूरी कर। इसी ख्यालमें मैं कुछ दिनोंके बाद मर गया।’
‘सुलेमान ! तुम अपने मरनेके वक्तकी सारी हकीकत बताओ। तुम कैसे मरे और उस समय तुम्हारे साथ क्या गुजरी?’
‘जब मेरे मरने का वक्त आया, तब मेरी आँखोंसे आँसू निकलने लगे। मेरी जबान एकदम बंद हो गयी। मुझे उस समय चार यमराजके दूत लेने आये थे। वे आकर मेरे इर्द- गिर्द खड़े हो गये और मुझे बुरी तरहसे मारने-पीटने लगे। वे चारों दूत बड़ी भयंकर डरावनी सूरतके दिखायी दिये। मैं उन्हें देखकर बहुत डर गया। मैं इशारे करता था, लेकिन मुझसे उस समय अपनी जबानसे बोला नहीं जाता था। उन दूतोंके स्थूलशरीर नहीं थे, इसलिये वे किसी अन्यको दिखायी नहीं देते थे। बस, वे सिर्फ मुझे ही दिखलायी देते थे। मरते वक्त मुझे बहुत ज्यादा तकलीफ हुई; जैसे एक झाड़ी, जिसमें कोई पत्ता न हो, उसमें लंबे-लंबे नुकीले काँटे लगे हुए हों, उसके ऊपर बारीक मलमलका कपड़ा डाल दिया जाय और उसे बड़ी बेरहमीसे खींचा जाय तो उस कपड़ेका एक-एक धागा अलग हो जायगा, यही मिसाल उस समयके मेरे आत्माकी है। मुझे मरते वक्त इतना घोर दुःख हुआ कि मैं उसे बता नहीं सकता।’
‘यमराजके दूत जब तुम्हें धर्मराजके सामने ले गये तो उस समय रास्तेमें तुम्हारे साथ क्या गुजरी?’
‘जब यमराजके उन दूतोंने शरीरसे मेरे प्राण निकाले तो मेरी रूहको जिसका सूक्ष्म शरीर होता है और वह आम लोगोंको नजर नहीं आता, उसको वे मारते-पीटते ले गये। करीबन एक वर्षका समय लगा होगा तब मुझे धर्मराजके सामने ले जाकर पेश किया गया।’
‘अब तुम यह बताओ कि जब तुम्हें धर्मराजके सामने पेश किया गया, उस समय तुम्हारे साथ क्या गुजरी?’ ‘धर्मराजके पास पहुँचनेपर चित्रगुप्त नामके फरिश्तेने मेरी जिंदगीके जितने भी पुण्य-पाप थे, सबका सारा हिसाब-किताब धर्मराजको बताया। धर्मराजने सब देख-सुनकर मुझे यह सजा सुनायी कि तुम्हारे पाप कर्मोंके फलस्वरूप तुम्हें अब कुम्भीपाक नरकमें डाला जायगा और उस नरक-भोगके बाद तुमको एक हजार वर्षतकके लिये प्रेतयोनि मिलेगी। तुम्हारा वह प्रेतयोनिका एक हजार वर्षका समय जब पूरा हो जायगा, तब तुम्हें जिसने तुम्हारी लड़कीके साथ नाजायज ताल्लुकात पैदा किये थे और जिससे बदला लेनेके लिये तुमने खुदासे प्रार्थना की थी, वही तुम्हें फिरसे मनुष्यके रूपमें मिलेगा। तब तुम उससे अपना बदला ले सकोगे। फिर तुमको और उसको कोई महापुरुष मिलेंगे। वे तुम दोनोंका कल्याण करेंगे।’
‘कुम्भीपाक नरकमें तुमने क्या देखा?’
‘कुम्भीपाक नरक तकरीबन एक4 हजार योजन लंबा और एक हजार योजन चौड़ा है। उसका मुँह केवल ९ इंच चौड़ा है। इसी ९ इंच के सँकरे छेद से पापी जीवों को उसके भीतर डाल दिया जाता है और उस पापी जीव की जबतक उसकी सजा पूरी नहीं हो जाती, उसी नरकमें रहना पड़ता है।’ ‘उस कुम्भीपाक नरक में क्या-क्या तकलीफें हैं?’
‘उस कुम्भीपाक नरकके अंदर गंदगी, टट्टी, पेशाब, खून, मवाद, पीक, आग तथा और भी ऐसी-ऐसी बहुत-सी दुःख देनेवाली वस्तुएँ हैं कि जिनके द्वारा उस पापी जीवको बड़ी- बड़ी तकलीफें दी जाती हैं। कभी तो उसे पकड़कर नरक की आग में जलाया जाता है, कभी गंदगी अर्थात् टट्टीके कुएँमें डुबो दिया जाता है। जो परस्त्रीगामी होते हैं, उन्हें पकड़कर आगमें तपायी हुई लोहे की स्त्रीसे चिपटा दिया जाता है। इस प्रकार पापियों को वहाँ भिन्न-भिन्न प्रकार की घोर यातनाएँ दी जाती हैं। समय पूरा होनेपर फिर उस जीव को कुम्भीपाक नरकसे निकाल कर दूसरी योनियों में डाल दिया जाता है।’
कुम्भीपाक नरक से निकालने के बाद ‘तुम्हारा क्या किया गया?’
‘मुझे कुम्भीपाक की घोर यातनाएँ भोगनेके बाद निकालकर यह प्रेतयोनि दे दी गयी। प्रेतयोनि मिलनेपर मैं अपने गाँव मुगलखेड़ा में जहाँ मेरी कब्र बनी हुई है वहीं जाकर रहने लगा। मेरे मजारपर पूजा करनेवाले जो लोग आते थे, मैं उन सबको देखता था, लेकिन मुझे कोई नहीं देख पाता था। मेरे साथ वहाँ पाँच पीर और भी रहते थे। उनमेंसे एक प्रेतकी उम्र पौने तीन हजार दूसरेकी तीन हजार, तीसरे की साढ़े तीन हजार, चौथे की पाँच हजार वर्ष की तथा पाँचवें की उम्र चार युगों की है। उसे पिछले कलियुग में प्रेत-योनिकी प्राप्ति हुई थी।’
‘जिस प्रेतकी उम्र चार युगोंकी है, उसका कल्याण कैसे होगा?’
‘कोई महापुरुष उसका उद्धार करेगा। नहीं तो कलियुग के आखिर में जब कल्कि भगवान् अवतार लेंगे, तब वे उसका कल्याण करेंगे।’
‘तुम इस मनमोहनसिंह के शरीर में कैसे आये?’ प्रेतयोनि के लिये निर्धारित मेरे एक हजार वर्ष पूरे होनेमें कुछ वर्ष बाकी थे तो इस लड़के मनमोहनसिंहने जो पिछले जन्म में तपस्वी था और जिसका मेरी लड़की से नाजायज ताल्लुक हो गया था, एक दिन अचानक आकर मेरे मजार पर पेशाब कर दिया। मैंने इसे खूब गौर से देखा तो इसके आत्मा को मैंने पहचान लिया कि यह तो वही तपस्वी है, जिसने मेरी लड़की से अपने नाजायज ताल्लुकात पैदा किये थे और मैंने तुरंत यह तय कर लिया कि मैं अब इससे अपना बदला अवश्य लूँगा। मैंने झट से इसे पकड़ लिया और इसके शरीरके अंदर दाखिल हो गया। मैंने और बहुतों को पकड़-पकड़कर मार दिया था; पर इसे इसलिये नहीं मारा कि इसके द्वारा मेरा उद्धार होना था। अब सात सालसे मैं इस लड़के मनमोहनसिंहके शरीरके अंदर रहता हूँ और अब वह समय आ गया है जो धर्मराज ने मेरी और इसकी मुक्ति के लिये निर्धारित किया था। उनकी सभी बातें सत्य सिद्ध हो रही हैं। मैंने इसे खूब सताकर इससे अपना बदला भी ले लिया है और अब हमें संतजी का मिलाप भी हो गया है और अब हम दोनोंका ही कल्याण होनेवाला है।’
‘इन्सानका कल्याण कौन-से भजनसे हो सकता है?’
‘अपने-अपने गुरुका दिया हुआ भगवान्का नाम जपनेसे
इन्सानका कल्याण हो जाता है।’
‘धर्मराज कैसा था?’
‘धर्मराज बहुत ही खूबसूरत था। उसके सफेद लंबी दाढ़ी थी और सिरपर केश भी थे और वह बड़े रोब और जलालवाला था। उसका शरीर सूक्ष्म और बड़ा दिव्य था। तथा उसमें अपने शरीरको पलटनेकी भी ताकत है।’
‘प्रेतोंकी क्या खुराक है और वे क्या-क्या खाते-पीते हैं?’
‘प्रेत हड्डियाँ चूसते हैं। खून पीते हैं और गंदगी खाते हैं तथा लकड़ीके बुझे हुए कोयले खाते हैं। यही उनकी खुराक है।’
‘तुम प्रेतलोग कहाँ पर रहते हो?’
‘हम खंडहरों में रहते हैं या पेड़ोंके ऊपर लटके रहते हैं। खूब चीखते हैं, चिल्लाते हैं, पुकारते हैं; लेकिन हमारी आवाज कोई नहीं सुनता। हमें भूख-प्यास भी खूब लगती है और हम लोग बहुत ही दुखी रहते हैं।’
तुम्हें प्रेतयोनि क्यों मिली?’
‘मुझे प्रेतयोनि इसलिये मिली कि मेरे पाप बहुत भयानक थे। मैं गंडे-ताबीज बनाने-बेचने और झाड़-फूँकका काम करता था, भूत-प्रेतोंको निकालनेका झूठा धंधा भी करता था और झूठ-सच बोलकर लोगों से पैसे लूटता था। इसी काले इल्मकी वजह से मुझे यह प्रेतयोनि मिली। मेरी जिंदगीमें मेरे सारे कर्म बड़े गंदे थे और मैंने दूसरोंकी औरतोंसे अपने बड़े नाजायज ताल्लुकात पैदा कर रखे थे। मैंने और भी बड़े-बड़े कुकर्म और बड़े-बड़े घोर पाप किये थे, जिसके कारण मुझे कुम्भीपाक नरकमें जाना पड़ा और अपने किये हुए पापोंका फल इस प्रकारसे भोगना पड़ा। फिर मुझे यह एक हजार वर्षके लिये प्रेतयोनि मिली, जिसके कष्ट मैं अब इस समय भोग रहा हूँ।’
‘क्या तुम प्रेतोंको, भूतों को कथा-कीर्तनमें, सत्संगमें शान्ति प्राप्त होती है?’
‘प्रेत और अन्य भूतयोनियों को सत्संग में और कथा-कीर्तन में आनेका हुक्म नहीं है। अगर भूत-प्रेत कथा-कीर्तन में, सत्संग में आते हैं तो उन्हें आग लग जाती है और शरीर जलने लगता है। जहाँ कथा-कीर्तन और सत्संग होता है, वहाँसे भूत-प्रेत एकदम से भाग जाते हैं। यदि कोई प्रेत किसी मनुष्य के शरीर के अंदर प्रवेश कर जाय, फिर वह आदमी यदि किसी महापुरुष की शरण में चला जाय और उस महापुरुष की दया-दृष्टिसे उसके लिये यह आदेश हो जाय कि तुम सत्संग करो, कथा-कीर्तन सुनो, इससे तुम्हें शान्ति प्राप्त होगी तो उसे सत्संग करने तथा कथा-कीर्तन सुननेसे अवश्य शान्ति प्राप्त होती है।’
यहाँ प्रेत से किये गये मास्टर श्रीराजेन्द्रसिंहजी के प्रश्नोत्तर ज्यों-के-त्यों दिये गये हैं। यह स्मरण रहे कि छात्र मनमोहनसिंह के शरीर में रहने पर वह मुसलमान प्रेत कुरान की आयतें बोलता था, जब कि वह छात्र कुरान का एक अक्षर भी नहीं पढ़ सकता था।
परलोक और पुनर्जन्म की सत्य घटनाएँ पुस्तक का एक अंश