
दक्षिण का सिनेमा चुराकर लाने वाली गली दिन ब दिन संकरी होती जा रही है
विपुल रेगे। दक्षिण भारतीय फिल्मों के बढ़ते जा रहे प्रभाव को बॉलीवुड नज़रअंदाज़ करने का प्रयास कर रहा है। वह भीमकाय टॉलीवुड को देख भयभीत है किन्तु अपना भय छुपा रहा है। अक्षय कुमार ने अपनी आगामी फिल्म ‘बच्चन पांडे’ के लिए की गई प्रेस वार्ता में कहा कि बॉलीवुड का कंटेंट भी चलने योग्य है। उन्होंने कहा कि यहाँ कंटेंट भी चलता है और मेसी (गंदा) भी चलता है।
अक्षय कुमार बच्चन पांडे की प्रेस वार्ता में बॉलीवुड के कंटेंट के बारे में बात कर रहे थे जबकि ये फिल्म तमिल फिल्म गड्डलकोंडा गणेश की रीमेक है। जो बॉलीवुड विगत एक दशक से दक्षिण भारतीय फिल्मों की कहानियों की कमाई पर पैसे बना रहा है, अब उन्हीं कहानियों से न डरने की बात भी कहने लगा है। गड्डलकोंडा गणेश इस फ्रेम में कैसे आई, उसकी कहानी भी बड़ी दिलचस्प है।
पहले बच्चन पांडे के निर्माता साजिद नाडियाडवाला एक अन्य फिल्म वीरम की रीमेक बनाने जा रहे थे। वीरम तमिल सुपरस्टार अजीथ कुमार की मुख्य भूमिका वाली फिल्म है। ये फिल्म सन 2014 में प्रदर्शित हुई थी। जब साजिद नाडियाडवाला को पता चला कि गोल्डमाइंस चैनल ने इस फिल्म को हिन्दी में डब कर सन 2018 में ही प्रदर्शित कर दिया है तो उन्होंने अपना निर्णय बदल लिया।
अब फ्रेम से वीरम निकल गई और उसका स्थान गड्डलकोंडा गणेश ने ले लिया। पहले इसका नाम वाल्मीकि रखा गया था लेकिन विवादों में पड़ने के बाद नाम बदल दिया गया। 2019 में प्रदर्शित ये फिल्म औसत सफलता ही प्राप्त कर पाई थी। हालाँकि अक्षय कुमार और साजिद नाडियाडवाला को अब चिंता होनी चाहिए क्योंकि गड्डलकोंडा गणेश का हिन्दी डब वर्जन दो सप्ताह पूर्व ही ढिंचैक टीवी चैनल पर प्रदर्शित कर दिया गया है।
गोल्डमाइन टेली फिल्म्स ने इसके डबिंग के अधिकार पहले ही खरीद लिए थे। टीवी पर प्रदर्शित हिन्दी वर्जन अब पाइरेसी का शिकार हो गया है और बाज़ार में सुलभता से उपलब्ध है। निश्चित ही अक्षय कुमार प्रेस वार्ता करते समय इन तथ्यों को जान रहे होंगे। अक्षय कुमार की फिल्म अब मौलिक नहीं रह गई। उसके तमिल वर्जन के हिन्दी डब वर्जन को अब तक लाखों दर्शक देख चुके हैं।
प्रेस वार्ता में अक्षय का कहना था कि वे जब चाहे घर बैठ सकते हैं लेकिन उनका क्या होगा, जिनकी रोटी फिल्मों से चलती है। अक्षय कुमार तो कभी घर बैठे ही नहीं। जब फ़िल्में नहीं चल रही थी तो वे हर चौथे विज्ञापन में दिखाई दे रहे थे। एक अभिनेता के रुप में उनका मीटर तो कोरोना काल में भी कभी नहीं रुका था। 18 मार्च को बच्चन पांडे के साथ रणबीर कपूर की शमशेरा प्रदर्शित हो रही है।
इन दोनों फिल्मों के पास बस एक सप्ताह का समय होगा। 25 मार्च को राजामौली की आर आर आर प्रदर्शित होते ही अक्षय और रणबीर की फिल्मों का क्या होगा, ये बताने की आवश्यकता नहीं है। बॉलीवुड की बड़ी फ़िल्में लगातार पिट रही है। इन असफल फिल्मों को पैंतरेबाज़ी से सफल बताने का प्रयास किया जा रहा है। 180 करोड़ की लागत से बनी गंगूबाई काठियावाड़ी अब तक बस 92 करोड़ का कलेक्शन कर सकी है।
संजय लीला भंसाली का ऐसा हश्र देख फ़िल्मी पंडित आश्चर्यचकित हैं। बॉलीवुड को समझ नहीं आ रहा है कि एकाएक उनका ठोस दर्शक वर्ग कहाँ गुम हो गया है। बॉलीवुड के लिए दक्षिण का सिनेमा चुराकर लाने वाली गली दिन ब दिन संकरी होती जा रही है। टॉलीवुड अब मन बना चुका है कि वह अपना परचम हिन्दी पट्टी में लहरा कर ही रहेगा। ऐसे में बॉलीवुड को उन निर्देशकों पर भरोसा करना होगा, जिनकी फिल्मों में कहानी स्टार होती है, अभिनेता नहीं।
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