कल्पना और तथ्यों का मेल दुष्कर होता है, किन्तु सर्व विदित तथ्यों को आधार बनाकर जब तर्क आधारित कोई ऐसी कहानी रची जाए जो पाठकों की कल्पना शक्ति को नए आयाम प्रदान करने के साथ कई प्रश्न उनके दिमाग में छोड़े तो लेखक सही मायनों में प्रशंसा का पात्र होता है।
सौरभ जी की ‘स्तुति’ पाठकों के मन पर गहरी छाप छोड़ती है। यह कपोल कल्पनाओं पर बनाए हवाई महल नहीं, बल्कि तथ्यों के आधार पर बनाई गयी एक सुदृढ़ बहु मंजिला इमारत है जिसके हर कमरे, हर तल पर आपको एक नया रहस्य इंतज़ार करता मिलेगा। सरल शब्द में लिखी इस कहानी के हर पन्ने में एक नई कहानी का द्वार है जिसे खोलने के लिए शायद नया उपन्यास लिखना पड़े।
“खंड 1 आह्वान” के मुकाबले “खंड 2 स्तुति” थोड़ा बड़ा है। कथा की पृष्ठभूमि के अनुसार उपन्यास बड़ा होना उचित भी है, किन्तु भाषा और परिस्थितियों का अद्भुत संयोग इसे उबाऊ नहीं बनने देता है। महाभारत के जाने-पहचाने प्रसंगों के बीच उभरते अनजाने किरदार पाठकों को ऐतिहासिक घटनाओं से जोड़ते हुए उन्हें कल्पना की एक नई दुनिया में पहुँचा देते हैं। पात्रों के बीच सधा संतुलन कहानी की रीढ़ की हड्डी है जो कहानी को गति देते हुए पाठकों को विभिन्न काल्पनिक आयामों की सैर कराती है। महाभारत के जटिल राजनीतिक, सामरिक, सामाजिक समीकरणों के ताने-बानों से बुनी इस कालजयी रचना के मायाजाल में पाठक उपन्यास के अंतिम शब्द तक ऐसा फंसता है कि उसे कहानी साक्षात होकर अपने आसपास घटती लगती है।
सौरभ जी ने साबित किया है कि कल्पना बिना दिमाग के पंगु होती है। उन्होंने पौराणिक कथाओं को तर्कों की कसौटी पर परखते हुए कल्पना के पंखों के सहारे उड़ती हुई आम जनों से जुड़ने वाली जिस नवीन लेखन शैली का प्रयोग किया है वह साहित्य और लेखन को नई दिशा प्रदान करती है। ऐसी लेखन शैली की व्याख्या सिर्फ उसे महसूस करके की जा सकती है। महाभारत और वैदिक ग्रंथों के विषय में आपका ज्ञान किसी भी स्तर का हो, इस उपन्यास के जादू से मंत्रमुग्ध हुए बिना आप नहीं रहेंगे।