सारे हिंदू ठीक से सुन लो , सुखमय जीवन पाना है ;
मैनेजमेंट को ठीक करो तुम, तुमको सब- कुछ पाना है।
घर – परिवार की जिम्मेदारी , दृढ़ता से उसे उठाना है ;
शौर्य का कोई विकल्प नहीं है , हर हाल में साहस पाना है ।
जीवन भी एक कला ही समझो , अभ्यास पूर्णता लाती है ;
हर अनुभव से सीख सीखना , हमको पूर्ण बनाती है ।
धन से हर सुख मिलता जाता है , ये बात सिरे से झूठी है ;
सही समझ कल्याण करेगी , ये ही बात अनूठी है ।
सही समझ विकसित करना है , धर्म सनातन अपनाना है ;
धर्म से बुद्धि शुद्ध होती है , परमानंद को पाना है ।
महाभारत में सार भरा है , धर्म – सनातन का पूरा ;
हिंदू इसको न पढ़ पाये , दुश्मन का जोर रहा पूरा ।
इसी वजह से हिंदू हारा , धर्म का पूरा ज्ञान नहीं है ;
निहित स्वार्थी कथा सुनाते , धर्म का सच्चा ज्ञान नहीं है ।
सच्चे गुरु बहुत ही दुर्लभ , शास्त्रों को ही गुरु बनाओ ;
रामायण , गीता, महाभारत , सारे हिंदू घरों में लाओ ।
श्रद्धा से तुम इनको पढ़ना , अर्थ समझकर सही से पढ़ना ;
सुखमय पूरा जीवन होगा , हर संकट से तुमको बचना ।
जिम्मी ,जेहादी, वामी ,सेक्युलर , इन सबसे बच जाओगे ;
रहस्य खुलेंगे सब जीवन के , पूर्ण – सफलता पाओगे ।
सुख-दुख कभी सदा न आयें,सुख-दुख दोनों क्रम से आयें ;
जीवन धारा बहती जाती , कुछ भी नहीं सदा टिक पाये ।
जीवन का ये भेद समझकर , मानव सदा प्रफुल्लित रहता ;
उसको सब स्वाभाविक लगता , कोई भी न संशय रहता ।
धर्म – सनातन सर्वश्रेष्ठ है , तुमको श्रेष्ठ बनाता है ;
मानव जग में रोता आता, पर ज्ञानी हंसता जाता है ।
स्वप्न – जगत को सोता मानव, जैसे एकदम सही मानता ;
पर जब मानव जग जाता है , कहीं न कोई सपना रहता ।
इसी तरह से विश्व को जानो, इसको जागृत स्वप्न ही जानो ;
अज्ञान की नींद सो रहा मानव,जागृत स्वप्न भी मिथ्या मानो
ज्ञान में जब भी आंख खुलेगी , अज्ञान की निद्रा दूर हटेगी ;
तब केवल तू ही तू होगा , परिछिन्नता सब दूर हटेगी ।
अपरिछिन्न तेरा “मैं” होगा , इससे भिन्न नहीं कुछ होगा ;
दैहिक ,दैविक ,भौतिक तापा , सारा दुख संताप हटेगा ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”