मौजी एक सेठ के यहाँ दर्जी का काम करता है। एक दिन सेठ उसे धक्के मारकर नौकरी से निकाल देता है। ठीक वैसे ही जैसे अंग्रेज़ों ने हमारे फलते-फूलते हथकरघा उद्योग को लात मारकर बाहर कर दिया था। आज़ादी मिलने के बाद भी हमारे इस उद्योग को उचित स्थान और सम्मान नहीं मिल सका था। 2014 में नई सरकार आने के बाद हथकरघा उद्योग में एक नया सूर्य उदय हुआ। प्रधानमंत्री की मेक इन इंडिया योजना के तहत हथकरघा उद्योग के नव उदय के लिए भागीरथी प्रयास किये गए। 28 सितंबर को प्रदर्शित हो रही यशराज फिल्म्स की ‘सुई-धागा’ मेक इन इंडिया अभियान को समर्पित की गई है।
मौजी इसी फिल्म की कहानी का एक किरदार है। है तो वह कहानी का किरदार लेकिन देशभर के हथकरघा उद्योग के मजबूर कामगार का ‘प्रतीक’ है। हुनर ख़त्म होने की कहानी ‘ढाका की मलमल’ से शुरू हुई। ये इतनी महीन होती थी कि आप ढाका की मलमल वाली चादर को एक अंगूठी से निकाल सकते थे। इस मलमल की मांग विश्व के कोने-कोने में हुआ करती थी।
ब्रिटिश शासन ने इस उद्योग का गला ही घोंट दिया। उन्होंने सत्ता सँभालते ही हथकरघा उद्योग को बंद करने का निर्णय ले लिया। भारत की कपास ढाका की जगह ब्रिटेन भेजी जाने लगी। वहां से मशीनों का आया सस्ता कपडा स्वीकार कर लिया गया। हमने अंग्रेज़ी कपड़ा पहनना स्वीकार किया और हमारे बुनकर भाइयों को खाने के लाले पड़ने लगे। विश्व में वस्त्रों का सिरमौर भारत अब मशीन से बने कपड़े पहन रहा था। ढाका की मलमल इतिहास की कथा बनकर रह गई थी।
यशराज फिल्म्स की ‘सुई-धागा’ भले ही एक नेक मकसद को लेकर बनाई गई हो लेकिन मनोरंजन के मारे दर्शकों ने इसके लिए कोई ख़ास उत्साह नहीं दिखाया है। अनुष्का शर्मा के ग्लैमरहीन लुक को लेकर सोशल मीडिया में भद्दे मज़ाक चल पड़े हैं। यही मानसिकता हथकरघा उद्योग को बर्बाद कर गई है। देश की अधिकांश जनता ये नहीं जानती कि 2015 से ही हर साल के 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने की शुरुआत कर दी गई है।
देखिये सुई धागा का ट्रेलर
इस साल तीसरा दिवस मनाया गया। आवश्यक है कि लोग ये जाने कि इस वक्त देश में लगभग 45 लाख छोटे-बड़े कामगार इस उद्योग से जुड़े हुए हैं। मेक इन इंडिया ने इन लोगों की सुध लेते हुए कई सुधार कार्यक्रम शुरू किये हैं। हाल ही में भारतीय हथकरघा ब्रांड का शुभारंभ किया गया है। हथकरघा समूहों की स्थापना भी की जा रही है। आवश्यक ट्रेनिंग के साथ-साथ माल के बेहतर रख-रखाव, अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार तक पहुँच बनाने के लिए इन कामगारों को टेक्नोसेवी बनाने की शुरुआत हो चुकी है।
प्रधानमंत्री कहते हैं हर परिवार घर में कम से कम एक खादी और एक हथकरघा का उत्पाद जरुर रखें। ये कहने के पीछे उनकी मंशा होती है कि हथकरघा कामगारों को उठने में हमें ही सहायता करनी चाहिए। खादी को लेकर देश में नव जागरण और नवाचार देखा जा रहा है। खादी के व्यवसाय में एकाएक साठ प्रतिशत की उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। और देश के अधिकांश लोग या तो इस प्रयास के बारे में नहीं जानते या इस पर बन रही एक अच्छी फिल्म का मज़ाक बना रहे हैं।
‘सुई-धागा’ में सेठ के यहां से नौकरी से निकाले जाने के बाद मौजी से उसकी पत्नी अपना ही काम करने के लिए कहती है। मौजी एवं ममता के इस फैसले से मौजी के पिता छज्जू लाल भड़क उठते हैं और कहते हैं, तेरी जैसी औलाद भगवान किसी को न दे। हालांकि दोनों हार नहीं मानते हैं। कपड़ा बनाने के बाद मौजी को लगता है कि कपड़े को बेचने के लिए इस पर मेड इन चाइना लिखना होगा। उसके दोस्त उस पर फब्ती कसते हैं कि मेड इन चाइना नहीं लिखेगा तो क्या मेड इन गाजियाबाद लिखेगा। इस पर मौजी की पत्नी ममता कहती है, जहां के कपड़े, वहां का नाम। और फिर कपड़ों पर लिखा जाता है मेड इन इंडिया। फिर दोनों की गाड़ी निकल पड़ती है।
देश के पारम्परिक पुरातन उद्योग को बढ़ावा देने के प्रयासों को सलाम ठोंकती इस फिल्म को उपहास नहीं बल्कि प्रोत्साहन चाहिए। एक साड़ी बनाने के लिए वैसा ही श्रम लगता है, जैसे माँ अपनी बेटी को बड़ा करती है। सारा परिवार इस बेटी की विदाई की तैयारी करता है। बाजार की चमक-दमक में इस पेशे को जमींदोज कर देने में हम समान रूप से भागीदार हैं। समय आ गया है कि घर में खादी के उपयोग को बढ़ाया जाए। हथकरघा क्रान्ति में देश के नागरिकों की सहभागिता की आवश्यकता है। यही बात ‘मौजी’ आपसे 28 सितंबर को कहने वाला है।
URL: Sui dhaga movie dedicated to Modi’s ‘Make in India’ Instaive
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