सरकारी और निजी नौकरियों में प्रताड़ना का स्तर इस स्तर पर पहुँच गया है कि कर्मचारी अब आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठाने लगे हैं। हाल ही में ऐसी प्रताड़ना से तंग आकर जमशेदपुर में एक सरकारी कर्मचारी अपने ही कार्यालय के शौचालय में फांसी पर झूल गया। पता चला कि उनसे दिन के बारह घंटे काम लिया जा रहा था। कर्मचारी को सुबह 8:30 पर कार्यालय आने को बाध्य किया जा रहा था। इस बावन वर्षीय कर्मचारी का शव चालीस घंटे तक शौचालय में पड़ा सड़ता रहा। ये तो बानगी है। देश के सरकारी और निजी कार्यालयों में छोटे कर्मचारी यही अन्याय झेल रहे हैं। उनको ऐसे चाबुक मारे जाते हैं, जैसे कि वे बैल हो।
ऐसा ही एक मामला दिल्ली के वसंत विहार का है। यहाँ एक निजी कम्पनी में कार्यरत कर्मचारी ने इसलिए जहर खा लिया क्योकि कम्पनी नौकरी छोड़ने के बाद उनका बकाया भुगतान करने से मुकर गई थी। उनको अपनी बेटी का विवाह करना था और तारीख नजदीक थी। कोई और व्यवस्था न होने के कारण व्यक्ति इस कदर तनाव में आया कि उसने मौत चुन ली।
2017 में हुआ एक शोध बताता है कि देश में करीब साठ फीसदी आत्महत्याएं नौकरी में अवसाद के कारण हो रही हैं। उस शोध में ये पाया गया था कि नौकरी के कारण आत्महत्या करने वालों में पुरुषों की संख्या महिलाओं से कहीं अधिक है। ये आंकड़ा यदि आपको भयभीत नहीं करता तो मान लीजिये कि आप बेहोशी में हैं। कार्यालयों में होते अत्याचारों पर नज़र रखने के लिए दुर्भाग्य से कोई सरकारी संस्था मौजूद नहीं है। निजी कंपनियों के एचआर तो इतने घटिया हैं कि आप अपनी समस्या तक ठीक से नहीं रख सकते।
भारत में लगभग 46 फीसदी लोग नौकरीपेशा हैं। इनमे से छोटे पदों पर काम करने वाले अपने सीनियर्स से सबसे अधिक प्रताड़ित होते हैं। निजी कम्पनी में युवा ये सोचकर अत्याचार सहता है कि बॉस कॅरियर बिगाड़ देगा और सरकारी नौकर इसलिए डरता है कि उसका बॉस ‘गोपनीय रिपोर्ट’ बिगाड़ सकता है। ऐसे ही भय में व्यक्ति अपमान और बेइज्जती सहने को विवश हो जाता है।
मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार ने पुलिसकर्मियों को तनाव से छुटकारा दिलाने के लिए छुट्टियों का नया नियम शुरू किया था लेकिन हुआ उलटा ही। बैतूल के एक प्रधान आरक्षक ने विभागीय प्रताड़ना से तंग आकर सेवानिवृति लेने की गुहार लगाई है। दरअसल आप जिस भी पेशे में झांकेंगे तो आपको वरिष्ठ अधिकारियों का मनमाना व्यवहार और अत्याचार नज़र आएगा।
सिरसा में एक यूनिवर्सिटी में कार्यरत महिला कर्मचारी का अनुबंध इसलिए समाप्त कर दिया गया क्योंकि उसने खुद पर हो रही प्रताड़ना का खुलकर विरोध किया था। सोचिये लगभग हर परिवार में एक ऐसा प्रताड़ित पुरुष या महिला है, जो अपने काम के दौरान दुर्व्यवहार का सामना कर रहे हैं।
इन तनावग्रस्त लोगों का साथ देने के लिए कोई आगे नहीं आता। निजी कम्पनी का कोई कर्मचारी आत्महत्या करता है तो उस कम्पनी का नाम तक अख़बार में नहीं छपता। कारपोरेट सेक्टर की मनमानियां इस कदर बढ़ती जा रही कि वे कर्मचारी को गधे की तरह ट्रीट करने लगे हैं। यहीं हाल सरकारी नौकरियों का भी हो रहा।
देश का एक बड़ा वर्ग ख़ामोशी से ऐसा अत्याचार सहता है और न सह पाए तो अपने परिवार के नाम एक सुसाइड नोट और आर्थिक मुसीबतें छोड़ जाता है। क्या सरकारों को अहसास है कि इन आत्महत्याओं से जहाँ परिवार खत्म हो रहे हैं, वही देश का ‘मैन पॉवर’ भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। एक कर्मचारी की आत्महत्या राष्ट्र का नुकसान समझा जाना चाहिए।