
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों की संपत्ति बहाल करने व हर्जाना वापस करने को कहा
सभी आरोपियों के भेजे गए नोटिस वापस, यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को दी जानकारी
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार से राज्य में नागरिकता विरोधी (संशोधन) अधिनियम (सीएए) विरोधी आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों को नष्ट करने के आरोपियों से वसूली गई रकम वापस करने और जब्त की गई संपत्तियों को बहाल करने का आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश तब दिया जब राज्य सरकार की ओर से सूचित किया गया कि आरोपियों के भेजे गए सभी कारण बताओ नोटिस वापस ले लिए गए हैं। कोर्ट ने रिफंड का निर्देश देते हुए हालांकि यह स्पष्ट कर दिया कि राज्य, उत्तर प्रदेश रिकवरी ऑफ डैमेज टू पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी एक्ट, 2021 के अनुसार नए नोटिस जारी करके प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई को आगे बढ़ सकता है।
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दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार की एडिशनल एडवोकेट जनरल(एएजी) गरिमा प्रसाद ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने नुकसान की वसूली के लिए सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को भेजे गए सभी 274 कारण बताओ नोटिस को वापस ले लिया है। साथ ही इससे संबंधित तमाम कार्यवाहिनों को वापस ले लिया है। उन्होंने बताया है कि इस संबंध में सरकार ने 14 और 15 फरवरी को अधिसूचना जारी कर दी है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने राज्य के इस कदम की सराहना की। जिसके बाद पीठ ने सरकार के बयान को रिकॉर्ड पर लेते हुए सीएए प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के आरोपियों से वसूला गया पैसा वापस करने का निर्देश दिया। वसूली गई रकम करोड़ों में है। कुछ संपतियां की जब्त की गई है।
सुनवाई के दौरान प्रदर्शनकारियों की दुर्दशा को वकील नीलोफ़र खान ने उजागर किया। उन्होंने एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया कि गरीबों को उनकी आवश्यक वस्तुओं को बेचकर हर्जाना देने के लिए कहा गया है। कोर्ट ने रिफंड का निर्देश देते हुए हालांकि यह स्पष्ट कर दिया कि राज्य, नए कानून के अनुसार नए नोटिस जारी करके प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई को आगे बढ़ सकता है।
एएजी ने सुप्रीम कोर्ट से रिफंड के आदेश को वापस लेने की गुहार की। उन्होंने कहा कि इससे गलत संदेश जाएगा। संदेश जाएगा कि सार्वजनिक संपत्तियों का नुकसान करने वाले पर कार्रवाई नहीं हुई। प्रसाद ने पीठ से गुहार लगाई कि मामले में यथास्थिति बनाए रखने का आग्रह किया। हालांकि पीठ ने कहा कि जब सभी नोटिस व कार्यवाहियों को वापस ले लिया गया है तो आरोपी से की गई वसूली तो वापस होगी ही। पीठ ने कहा कि राज्य नए कानून के तहत आगे कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि वसूले जाने वाले नुकसान का दावा 2021, अधिनियम के तहत दावा न्यायाधिकरण के समक्ष कार्यवाही के परिणाम के आधार पर राज्य द्वारा नए सिरे से किया जा सकता है। 11 फरवरी को हुई पिछली सुनवाई में पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा था, ‘या तो राज्य इन नोटिसों को वापस ले ले अन्यथा हम इन्हें रद्द कर देंगे। शीर्ष अदालत के वर्ष 2009 और 2018 के फैसलों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा था कि न्यायिक अधिकारियों को दावा न्यायाधिकरणों में नियुक्त किया जाना चाहिए था लेकिन राज्य सरकार ने ऐसे उद्देश्यों के लिए अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त किए।
शीर्ष अदालत परवेज आरिफ टीटू की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें सीएए विरोधी आंदोलनों के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों को हुए नुकसान की वसूली के लिए जिला प्रशासन द्वारा कथित प्रदर्शनकारियों को भेजे गए नोटिस को रद्द करने की मांग की गई थी। सुनवाई की शुरुआत में एएजी गरिमा प्रसाद ने कहा कि राज्य ने न्यायालय की पूर्व टिप्पणियों का सम्मान किया है और नोटिस वापस लेने का फैसला किया है। आयुक्तों व जिलाधिकारियों को भी सूचित कर दिया गया है।’
नए कानून, उत्तर प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति नुकसान वसूली अधिनियम, 2020, ने राज्य सरकार को सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान के दावों का फैसला करने के लिए न्यायाधिकरण स्थापित करने का अधिकार दिया है। सुनवाई के दौरान प्रसाद ने यह भी कहा कि कुछ संपत्तियों को राज्य सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया है। इस पर पीठ ने उससे कहा, ‘यह कानून के खिलाफ है और अदालत कानून के खिलाफ नहीं जा सकती।’
प्रसाद ने तब कहा कि राज्य में आदर्श आचार संहिता लागू है। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘जब आपको सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करना है तो आदर्श आचार संहिता आपको कैसे रोक सकती है।’
साभार: अमर उजाला, राजीव सिन्हा
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