अब्बासी-हिंदू के मकड़-जाल में , पूरा-भारत फंसा हुआ है ;
सुप्रीम-कोर्ट ही बचा है केवल , वरना सब कुछ डंसा हुआ है ।
सारे-संस्थान हो गये नपुंसक , नख-शिख , दंत-विहीन हैं ;
मृत्यु – शैया पर संविधान है , लोकतंत्र श्रीहीन है ।
सेना तक कमजोर हो चुकी , अब्बासी-हिंदू की साजिश है ;
धीरे-धीरे मिट रहा है भारत , अब्राहमिक ये कोशिश है ।
अज्ञान ,लोभ ,लालच ,बेईमानी , इनके नशे में हिंदू ! चूर ;
कायर – हिंदू बने सेक्युलर , संघर्षों से हो गये हैं दूर ।
इन्हें नहीं है धर्म का गौरव , आत्मसम्मान को भूल चुके ;
झूठे-इतिहास की गंदी-शिक्षा , हिंदू-रोल मॉडल भुला चुके ।
अंधकार में डूब चुका है , भारत का स्वर्णिम – इतिहास ;
सड़ी-लाश की तरह ढो रहे , मुगलों का गंदा-इतिहास ।
मुगलों की सड़ी-लाश का कीड़ा , अब्बासी-हिंदू जो नेता ;
महामूर्ख-हिंदू ! न समझता , इसको माने अपना नेता ।
हिंदू ! की बुद्धि घास चर रही , शत्रु-मित्र का भेद न जाना ;
अपने-मित्रों को शत्रु समझते , घोर-शत्रु को अपना माना ।
आंखों में अज्ञान का माड़ा , साफ-साफ कुछ भी न दीखे ;
बार – बार ठोकर खाते हैं , फिर भी चलना न सीखे ।
गिरते-पड़ते घिसट रहे हैं , अज्ञान के फल को भुगत रहे हैं ;
ज्ञान की गंगा निकट है इनके , फिर भी प्यासे तड़प रहे हैं ।
धर्म-सनातन ज्ञान की गंगा , इसके जल का पान करो ;
तन-मन शीतल-निर्मल होगा , हिंदू ! इसका मान करो ।
अज्ञान का पर्दा दूर हटेगा , सही-मार्ग मिल जायेगा ;
हर-कदम सफलता पायेगा , अपना-गौरव फिर से पायेगा ।
धर्म-ध्वजा का दंड हाथ में , हिंदू ! निर्भय होकर निकले ;
सारे-हिंदू ! मतदान को करना,अब्बासी-हिंदू का दम निकले ।
हर हालत में इस चुनाव में , अब्बासी-हिंदू को हराना है ;
अबकी बार ये फिर जीता तो, हिंदू ! तुझको मिट जाना है ।
आसानी से पद न छोड़ेगा , सारे – हथियार चलायेगा ;
चुनाव-आयोग निष्पक्ष नहीं है , पता नहीं क्या कर पायेगा ?
सुप्रीम-कोर्ट को देखेगा होगा, और नहीं होगा कोई मार्ग ;
सुप्रीम-कोर्ट ढीले मत पड़ना, तुझसे ही रक्षित न्याय के मार्ग ।
सुप्रीम-कोर्ट जब तक भारत में , संविधान भी तब तक है ;
इसको कमजोर न पड़ने देना , ये लोकतंत्र का रक्षक है ।