अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर काफी दिनों से सुप्रीम कोर्ट की ओर निहार रहे राम भक्तों और श्रद्धालुओं को एक बार फिर निराशा हाथ लगी है। अयोध्या रामजन्म भूमि विवाद मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का एक बार फिर टालू रवैया ही सामने आया है। जिस प्रकार इस मामले पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजय किशन कॉल की बेंच ने जिस प्रकार महज 60 सेकेंड में फैसला सुनाते हुए इसकी अगली तारीख 10 जनवरी को तय कर दी है, इससे साफ जाहिर होता है कि कोर्ट ने एक बार फिर मामले को टाल दिया है। सुप्रीम कोर्ट के इस प्रकार के टालू रवैये को देखते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने तो करो और मरो जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है। क्योंकि ज्यों-ज्यों लोकसभा चुनाव की तारीख नजदीक आती जा रही है मोदी सरकार के सामने विकल्प कम होते जा रहे हैं। एक तरफ सुप्रीम कोर्ट कांग्रेस के इशारे पर इस मामले को लटकाने पर तुला है वहीं दूसरी ओर देश की जनता और राम भक्त किसी भी हाल में इसी साल मंदिर निर्माण को आतुर हैं। ऐसे में अगर पीएम मोदी इस बार चुक गए तो चुके रह जाएंगे।
Ayodhya case: The hearing which continued for 60 seconds, did not see any arguments from either side https://t.co/r1zkutnjuQ
— ANI (@ANI) January 4, 2019
मालूम हो कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद का मामला मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच के सामने सूचीबद्ध था। इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की बेंच में महज 60 सेकेंड चली। किसी भी तरफ से कोई तर्क नहीं दिए जाने की वजह से बेंच ने यह सुनवाई 10 जनवरी तक के लिए टाल दी। जब 10 जनवरी को इस बेंच के पास यह मामला आएगा तो उसे एक बार फिर तीन जंजों की बेंच के पास हस्तांतरण कर दिया जाएगा। गौर हो कि अभी तक न तो तीन जजों की बेंच का गठन हुआ है न ही उस बेंच में कौन-कौन से जज होंगे उसका भी निर्धारण नहीं हुआ है। सबसे खास बात है कि उसी दिन यह भी तय किया जाएगा कि आखिर इस मामले में नियमित सुनवाई की जरूरत है या नहीं। इस बीच साल 2018 के नवंबर में इस मामले की तुरंत और नियमित सुनवाई के लिए वकील हरीनाथ राम द्वारा दायर जनहित याचिका भी खारिज कर दी गई।
मालूम हो कि पिछले साल 29 अक्टूबर को इस मामले की सुनवाई करते हुए इस मामले को उचित पीठ के सामने सूचीबद्ध करने की बात कही गई थी। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली पीठ ने तारीख कुछ पहले तय करने के अनुरोध को खारिज करते हुए कहा था कि अब वही पीठ ही सुनवाई का कार्यक्रम भी तय करेगी। उससे दो दिन पहले ही यानि 27 अक्टूबर को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय पीठ ने बहुमत से इस बात को मानने से इंकार कर दिय़ा था। पीठ से 1994 के एक फैसले में की गई टिप्पणी को पांच न्यायाधीश वाली पीठ के पास विचार के लिए भेजने का अनुरोध किया गया था। मालूम हो कि उस फैसले के तहत बताया गया था कि मसजिद इसलाम का अभिन्न अंग नहीं है।
जिस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में रामजन्म भूमि विवाद मामले को लटका रहा है वह न तो केंद्र सरकार के लिए न ही देश की जनता के लिए सही है। क्योंकि देश के हिंदुओं की धैर्य की भी कोई सीमा होती है। इस मामले में पहले ही जिस प्रकार कई नेता बयान दे चुके हैं उसके आलोक में मामला गंभीर बनने का खतरा बढ़ गया है। सुप्रीम कोर्ट के इस रवैये के कारण मोदी सरकार पर जनता का दबाव बढ़ता जा रहा है।
URL : supreme court hearing on january 10th on the constitution of a bench!
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