जनता द्वारा लगातार खारिज किए जाने को स्वीकारने के बदले ईवीएम को अपराधी बनाने के गैर भाजपाई पार्टियों के बहाने और साजिश को सुप्रीम कोर्ट ने नेस्तेनाबूत कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी हार का ठिकरा ईवीएम पर फोड़ने साजिश पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि किसी भी मशीन का मिसयूज संभव है। ऐसे में पिछले काफी समय से उठ रहे सवाल पर सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी काफी अहम साबित हो सकती है। इसी के साथ सुप्रीम अदालत ने आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में ईवीएम की जगह मतपत्रों के इस्तेमाल का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका को बृहस्पतिवार को खारिज कर दिया।
2014 के लोग सभा चुनाव में जब पहली बार केंद्र में किसी गैर कांग्रेसी दल की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी तब तक ईवीएम ठीक थी। इस चुनावी हार को अब तक सत्ता का स्वाद चख रहे राजनीतिक दलों के लिए मोदी लहर के रुप में स्वीकारना गर्दन में फंसे जहर को निगल लेने के समान था। लेकिन उसके बाद राज्यों के विधान सभा चुनाव में हर हार के लिए गैरभाजपा दलों ने ईवीएम को अपराधी बनाना शुरु कर दिया। बिहार विधान सभा चुनाव में ईवीएम ठीक था क्योंकि वहां गैरभाजपाई सरकार बनी लेकिन जब 2017 में देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में पूरे विपक्ष का सूपड़ा साफ हो गया तो ईवीएम अपराधी हो गई।
राज्य की प्रमुख पार्टी बसपा का वूजद खतरे में आ गया तो मायावती ने ईवीएम के खिलाफ हल्ला बोल दिया। सत्ता अभी अभी गवांए सपा और केंद्र से बेदखल हो चुकी कांग्रेस ने भी बसपा के सुर में सुर मिला कर ईवीएम के खिलाफ हल्ला बोल दिया। इस मामले को लेकर राजनीतिक दल सुप्रीम कोर्ट तब पहुंचे जब 2017 में ही लोक सभा और विधान सभा का उपचुनाव होना था। गैरभाजाई दलों को हार का भय सता रहा था तो उन्होने ईवीएम के खिलाफ हल्ला बोल दिया। दिलचस्प देखिए उपचुनाव में उन राजनीतिक दलों की जीत उसी ईवीएम से निकली जिसके खिलाफ बसपा,सपा और कांग्रेस ने हल्ला बोल रखा था। जीत के बात इन राजनीतिक दलों ने चुप्पी साध ली।
पिछले ही साल के आखिर में जब गुजरात और पंजाब उपचुनाव होना था तो फिर गैर भाजपाई दलों ने ईवीएम को विलेन बनाना शुरु किया। पंजाब में कांग्रेस की सरकार बन गई तो ईवीएम के खिलाफ हल्ला बोलने वाले राजनीतिक दलों ने चुप्पी साध ली। दिलचस्प तो यह कि अपने नाटकीए अंदाज के लिए चर्चित रहने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ने तो ईवीएम मशीन को चुनौती तक दे डाली, यह कह कर कि उसके इंजीनियर यह साबित कर सकते हैं कि ईवीएम से मनमाफिक पार्टी को वोट दिया जा सकता है। चुनाव आयोग ने उनकी चुनौती स्वीकार की तो अरविंद केजरीवाल के तकनीशियनो का ज्ञान घुसर गया। ये वही केजरीवाल हैं जो कुछ ही दिनो पहले एतिहासिक रिकार्ड तोड़ जीत के साथ दिल्ली में सरकार बनाए थे। जब केंद्र में भाजपा की सरकार थी।
अभी फिर पांच राज्यों में विधानसभा और लोक सभा चुनाव होना है। जनता में अपनी पकड़ खोने से हताश राजनीतिक दलों ने एक एनजीओ के सहारे सुप्रीम कोर्ट में दस्तक देकर ईवीएम के खिलाफ हल्ला बोल दिया। ये राजनीतिक दल अपनी हताशा की आड़ वैलेट बॉक्स से चुनाव कराने की मांग में ढुंढ रहे थे।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने एनजीओ ‘न्याय भूमि’ की इन दलीलों को सीरे से खारिजा कर दिया कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) का दुरुपयोग हो सकता है और स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए उनका उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। जनहित याचिका खारिज करते हुए पीठ ने कहा, ‘प्रत्येक प्रणाली और मशीन का उपयोग तथा दुरुपयोग दोनों हो सकता है आशंकाएं सभी जगह होंगी।’
पिछले काफी समय से विपक्षी दलों की ओर से मांग की जा रही है कि सभी चुनावों में बैलेट पेपर का इस्तेमाल किया जाए। हालांकि, चुनाव आयोग हर बार इस बात पर जोर देता रहा है कि उनकी मशीन पूरी तरह से सुरक्षित है और उसे किसी भी तरह का कोई खतरा नहीं है। लेकिन पिछले साल मध्यप्रदेश के भिंड ज़िले के अटेर में ईवीएम मशीन के डेमो के दौरान तकनीकि गड़बड़ी को विपक्ष ने गंभीर मुद्दा बना लिया। मीडिया में खबर वायरल होने के बाद चुनाव आयोग ने सफाई दी मशीनें ठीक से कैलिब्रेट नहीं हुई थीं, इसलिए ऐसा मामला सामने आया। लेकिन हार का बहाना ढूंढ रहे राजनीतिक दल अपने एजेंडा में लगे रहे। सुप्रीम कोर्ट ने अब उनके एजेंडे की हवा निकाल दी है। दिलचस्प यह है कि ईवीएम के खिलाफ हल्ला बोलने वाली मीडिया ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुप्पी लाद ली ।
जनता द्वारा लगातार खारिज हो रही कांग्रेस के प्रवक्ता दिग्विजय सिंह ने तो यहां तक कहा, “मेरा तो हमेशा से ईवीएम पर भरोसा नहीं रहा है. जब दुनिया भर के देशों में बैलेट पेपर से चुनाव होते हैं, तो हमारे यहां ईवीएम से चुनाव क्यों हों?” अब कांग्रेस को सोचना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उसे चुनाव में भाग लेना है या नहीं।
भाजपा ने 2009 में विरोध किया
2009 के चुनावी हार के बाद भाजपा ने भी ईवीएम पर सवाल उठाए थे। इसके बाद पार्टी ने भारतीय और विदेशी विशेषज्ञों, कई गैर सरकारी संगठनों और अपने थिंक टैंक की मदद से ईवीएम मशीन के साथ होने वाली छेड़छाड़ और धोखाधड़ी को लेकर पूरे देश में अभियान चलाया।
क्या है ईवीएम ! जिस पर लोकतंत्र में भरोसा खोने वाले राजनीतिक दलों ने सवाल उठाया और सुप्रीम कोर्ट ने भरोसा जताया
ईवीएम के दोंनो हिस्से एक पांच मीटर लंबे तार से जुड़े रहते हैं। बैलेट यूनिट ऐसी जगह रखी होती है, जहां कोई एक मतदाता दूसरे मतादाता को वोट डालते समय देख न सके। ईवीएम पर एक बार में अधिकतम 64 प्रत्याशी तक दर्शाए जा सकते हैं। ईवीएम चिप आधारित मशीन है, जिसे केवल एक बार प्रोग्राम किया जा सकता है। उसी प्रोग्राम से तमाम डेटा को स्टोर किया जा सकता है लेकिन इन डेटा की कहीं से किसी तरह की कनेक्टिविटी नहीं है, लिहाजा, ईवीएम में किसी तरह की हैकिंग या रीप्रोग्रामिंग मुमकिन ही नहीं है। इसलिए यह पूरी तरह सुरक्षित है। वीवीपैट एक प्रिंटर मशीन है, जो ईवीएम की बैलेट यूनिट से जुड़ी होती है। ये मशीन बैलेट यूनिट के साथ उस कक्ष में रखी जाती है, जहां मतदाता गुप्त मतदान करने जाते हैं। मतदान के वक्त वोटर विजुअली सात सेकंड तक देख सकता है कि उसने किसे वोट किया है, यानी कि उसका वोट उसके अनुसार ही पड़ा है। वीवीपैट व्यवस्था के तहत ईवीएम में मतदान के तुरंत बाद काग़ज़ की एक पर्ची बनती है। इस पर जिस उम्मीदवार को वोट दिया गया है, उनका नाम और चुनाव चिह्न छपा होता है।
यह व्यवस्था इसलिए है कि किसी तरह का विवाद होने पर ईवीएम में पड़े वोट के साथ पर्ची का मिलान किया जा सके। ईवीएम में लगे शीशे के एक स्क्रीन पर यह पर्ची सात सेकंड तक दिखती है। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड ने यह मशीन 2013 में डिज़ायन की। सबसे पहले इसका इस्तेमाल वर्ष 2013 में नागालैंड के चुनाव में हुआ। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने वीवीपैट बनाने और इसके लिए पैसे मुहैया कराने के आदेश केंद्र सरकार को दिए। चुनाव आयोग ने जून 2014 में तय किया है कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी मतदान केंद्रों पर वीवीपैट का इस्तेमाल किया जाएगा।