सुप्रीम कोर्ट ने जब से भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को रद किया है तब से मौलानाओं के चेहरे पर चमक आ गई है। जब ये धारा खत्म नहीं भी हुई थी तभी भी लखनऊ में मौलानाओं के चरित्र को परलक्षित करने वाली ‘तीसरी गली’ ना से एक कहावत प्रचलित है। अब जब देश की सुप्रीम अदालत ने ‘तीसरी गली’ को प्राथमिक गली बना दी है तो उन्हें खुश होना तो बनता ही है। तभी तो शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी अपने एक ट्वीट में कहा है कि होमोसेक्सुअल रिश्तों को सुप्रीम कोर्ट से मान्यता मिलने के बाद अगर आज सबसे ज्यादा कोई खुश होगा तो वो है मदरसे के मौलाना क्योंकि वो इन कामों में सबसे ज्यादा लिप्त है। हालांकि उनके इस बयान पर विवाद होना तय है।
होमोसेक्सुअल रिश्तों को सुप्रीम कोर्ट से मान्यता मिलने के बाद अगर आज सबसे ज्यादा कोई खुश होगा तो वो है मदरसे के मौलाना क्योंकि वो इन कामों में सबसे ज्यादा लिप्त है- वसीम रिज़वी #Section377 #LGBT #LGBTQ #BindasBol pic.twitter.com/aX9seF5K68
— Suresh Chavhanke STV (@SureshChavhanke) 6 September 2018
वसीम रिजवी ने दरअसल अपने इस ट्वीट के माध्यम से देश के मदरसों की हकीकत ही बयां किया है। शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन का कहना है कि मदरसों के मौलवी और मौलाना ही सबसे ज्यादा समलैंगिक होते हैं। इसलिए अब जब सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक को कानूनी मान्यता दे दी है तो स्वाभाविक है कि इससे सबसे ज्यादा राहत इन्हीं लोगों को मिलेगी। अब तो इन्हें न तो अपने समाज का डर होगा न ही कानून का।
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