नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि हमें यह अजीब लगता है कि महाराष्ट्र सरकार आर्थिक हितों से संबंधित गतिविधियों की अनुमति देने के लिए तैयार हैं, लेकिन बात धर्म की हो तो वह कोरोना का हवाला देते हुए धार्मिक स्थल को खोलने में इच्छुक नजर नहीं आती।
शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी करते हुए 22 व 23 अगस्त को जैन समुदाय के पावन पर्युषण पर्व के अवसर पर मुंबई में तीन जैन मंदिरों में भक्तों को प्रवेश की अनुमति दे दी है।
चीफ जस्टिस एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने मुंबई के दादर, बायकुला और चेंबूर स्थित तीन जैन मंदिरों में सीमित संख्या में भक्तों को प्रवेश और प्रार्थना करने की अनुमति दी है। हालांकि पीठ ने साफ किया है कि इन तीनों मंदिरों में एक बार में सिर्फ 5 भक्तों को प्रवेश की अनुमति होगी और एक दिन में अधिकतम 250 भक्तों को प्रवेश की अनुमति होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि यह स्पष्ट किया कि यह आदेश सिर्फ इन तीन मंदिरों तक सीमित है। आदेश किसी अन्य मंदिर या ट्रस्ट पर प्रभावी नहीं होगी। कोर्ट ने कहा ‘ हमारा यह आदेश सिर्फ इस मामले तक सीमित है। दूसरे पर्व या उत्सवों में यह प्रभावी नहीं होगा, खासकर वैसे मौकों के लिए जिसमें भारी संख्या में लोगों की भीड़ जुटती हो, जिसे निमंत्रित नहीं किया जा सकता, जैसा कि गणेश उत्सव पर।कोर्ट ने कहा कि राज्य आपदा प्रबंधन अथॉरिटी से गणपति महोत्सव के लिए केस दर केस अनुमति लेनी होगी।
इससे पहले सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ट्रस्ट की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि पर्युषण पर्व जैन समुदाय के लिए बहुत पावन पर्व है। उन्होंने कहा कि सीमित संख्या में भक्तों को मंदिरों में प्रवेश करने की इजाजत दी जाए। लेकिन महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोरोना महामारी के इस दौर में मंदिरों में प्रवेश की अनुमति देने की मांग का विरोध किया।
सिंघवी ने कहा मैं खुद जैन हूं लेकिन महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में कोरोना के मरीज हैं। स्थिति से निपटना मुश्किल हो रहा है। कल ही 14000 से अधिक मामले सामने आए थे। कई पर्व और महोत्सव आने वाले हैं लेकिन कोरोना महामारी के संकट को देखते हुए इनको रद्द किया जा रहा है। कई राज्यों ने भी रद्द किया है।
जस्टिस ने कहा कि जब हम जगन्नाथ रथ यात्रा की अनुमति दे सकते हैं तो दिशानिर्देशों के साथ दूसरे समारोह व महाउत्सवों की इजाजत क्यों नही दे सकते।
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