करीब 132 साल से अदालतों में घिसट रहे राममंदिर विवाद को सुनने के लिए सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायधीश के पास तीन मिनट का भी समय नहीं है, लेकिन राफेल डील पर उन्हें सरकार से आनन-फानन में केवल 10 दिन में जवाब चाहिए, वह भी अंतरराष्ट्रीय समझौते को तोड़ कर। सरकार की नीतियों का निर्धारण कार्यपालिका का विषय है, लेकिन जिस तरह से न्यायपालिका ने राफेल में अपना हस्तक्षेप दिखाया है, उससे लगता है कि उसे भी राहुल गांधी की तरह जल्दी है!
मुख्य बिंदु
* सुप्रीम कोर्ट के हाले के कई फैसलों ने पूरी न्यायपालिका को अविश्वसनीय बना कर रख दिया है
* न्यायपालिको का अविश्वसनीय बनाकर कही लोकोतंत्र को खत्म करने की कोई साजिश तो नहीं?
‘Ram Mandir’ just a Civil Suit, no hurry. No urgency on Sabarimala but answer on Rafale in 10 days. Interesting…
— Anand Narasimhan (@AnchorAnandN) October 31, 2018
सुप्रीम कोर्ट ने विवादित श्रीराम जन्मभूमि जैसे महत्वपूर्ण मामले को जनवरी के लिए टाल दिया है, लेकिन राफेल डील मामले में 10 दिनो में सारे तथ्य जमा करने को कह दिया है। सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर फैसला देने में कभी देरी नहीं की, लेकिन शादी में अवैध संबंध और समलैंगिकता पर जल्दी-जल्दी में फैसला सुनाया गया, लेकिन राम मंदिर के लिए अदालत ने कहा दिया कि जनवरी के बाद बताएंगे कि कब सुनेंगे? वह फरवरी हो सकता है, मार्च हो सकता है, अप्रैल हो सकता है। प्रधान न्यायधीश के इस कथन से ही तय है कि उनकी प्राथमिकता क्या है?
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार से रफ़ाल विमानों की क़ीमत के बारे में जानकारी सीलबंद लिफ़ाफ़े में देने के लिए कहा है। चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में जस्टिस यू यू ललित और जस्टिस केएम जोसेफ़ की बेंच ने बुधवार को रफ़ाल मामले से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई की।
पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा और प्रशांत भूषण की ओर से रफ़ाल मामले में एफ़आईआर दर्ज करने और जांच की मांग को लेकर याचिका दायर की गई है। इनका आरोप है कि फ़्रांस से रफ़ाल लड़ाकू विमानों की ख़रीद में केंद्र की मोदी सरकार अनियमितता बरती है। इस सुनवाई में आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह की ओर से दायर याचिका को भी शामिल किया गया। 10 अक्टूबर को अधिवक्ता एमएल शर्मा और विनीत ढांढा की ओर से दायर याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए अदालत ने सरकार से रफ़ाल सौदे के बारे में जानकारी मांगी थी।
भारत के महाधिवक्ता ने सुनवाई के दौरान अदालत से कहा कि विमानों की क़ीमत के बारे में जानकारी नहीं दी जा सकती है इस पर अदालत ने महाधिवक्ता से ये बात शपथपत्र पर कहने के लिए कहा।
ज्ञात हो कि भारत सरकार और फ्रांस सरकार के बीच गोपनीयता को लेकर संधि है। ऐसे में भारत का सुप्रीम कोर्ट यदि इस पर तत्काल जवाब मांगे तो यह साफ-साफ कार्यपालिका के मामले में हस्तक्षेप माना जाएगा। हाल-फिलहाल अदालतों के कुछ निर्णयों में यह बेचैनी साफ दिख रही है कि वह कार्यपालिका के अधिकारों का जैसे अधिग्रहण करना चाहती है?
URL: Supreme Court under suspicion on Ayodhya dispute, Sabarimala and Rafael case
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