सामाजिक न्याय और गरीबों की हित की लड़ाई के नाम पर सबसे ज्यादा राजनीति बिहार और उत्तर प्रदेश में हुई। इन्हीं दोनों राज्य के नेता जो गरीबों और पिछड़ों के नाम पर, गरीबी और पिछड़ेपन की राजनीति करते हुए अरब पति बनते चले गए। सरकारी धन का ना सिर्फ दुरुपयोग किया बल्कि आजीवन सत्ता में ना रहते हुए भी सत्ता सुख भोगने के लिए कानून बना लिए। जीवन भर सरकारी बंगले में रहने का आनंद लेने लगे। जीते जी खुद की मूर्ति वाले पार्क बना लिए। चुनाव चिन्ह और अपनी मूर्ति बनवाने के नाम पर गरीबों के अरबो रुपये फूंक दिए। दिलचस्प यह कि इसमें अलग अलग राजनीतिक विचारधारा वाले दल के नेताओं की या तो चुप्पी रही या साथ। क्योंकि इसमें सबके हित सध रहे थे। लेकिन हफ्ते भर के सुप्रीम और हाई अदालतों के आदेश ने सामाजिक न्याय के तथाकथित मसिहाओंको सामाजिक न्याय सिखा दिया है। सुप्रीम कोर्ट के और हाइकोर्ट के हफ्ते भर के आदेशों से लालू,माया,राबड़ी और तेजस्वी ही नहीं गरीबों के नाम पर जनता के धन पर अय्यासी करने की जिंदगी भर की तैयारी कर चुके नेताओं की जमीन उखड़ चुकी है। बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री लालू और राबड़ी के पुत्र तेजस्वी ने तो ठान लिया था कि वे सरकारी बंग्ला नहीं छोडेंगे। हाइकोर्ट के आदेश के बाद भी नहीं। जब सुप्रीम कोर्ट ने पचास हजार का जुर्माना कर तुरंत घर खाली करने का आदेश दिया तो होश पाख्ता हो गए। तेजस्वी क्यों सरकारी बंग्ला नहीं खाली करना चाहते थे यह मंगलवार को तब पता चला जब डेढ साल से बंग्ला में जाने का इंतजार कर रहे वर्तमान उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी पहली बार पांच देश रत्न मार्ग पहुंचे। मोदी के मुताबिक इसमें करोड़ो का खर्च किया गया। इसके सामने राजभवन झोपड़ी है। मोदी तो यहां तक कह गए कि मैं चाहुंगा कि इसे मुख्यमंत्री निवास बना दिया जाए। फिर समझ में आया कि तेजस्वी क्यों बंग्ला नहीं खाली कर रहे थे! अय्यासी का ठिकाना बना चुके उस सरकारी बंग्ले में लाखों का बिजली, पानी,समेत साज सज्जा का खर्च था अलग। लेकिन अदालत के एक ही आदेश से जुर्माना संग तेजस्वी को सरकारी घर खाली करना पड़ा। जहां वो सरकार के नुमाइंदे न हो कर भी सरकारी दामाद बने काबिज थे। लेकिन तेजस्वी को यह झटका जबरदस्त तब लगा जब घर खाली करते ही पटना हाईकोर्ट ने उनके माता पिता को भी सरकारी बंग्ला खाली करने का आदेश दे दिया। पटना हाइकोर्ट का आदेश उनकी मां राबड़ी देवी,पिता लालू यादव समेत राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री जगर्नाथ मिश्र और जीतन राम मांझी के लिए भी कहर बन कर टूटा है। जो आजीवन सरकारी बंग्ला पर काबिज थे। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस पी शाह की पीठ ने कहा पब्लिक पैसे से ये आराम तल्बी नहीं चलेगी। सरकारी खर्च पर सत्ता के बाहर रहने पर भी काबिज रहने को हाईकोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया। दरअसल जून 2016 में जब लालू नीतीश की जोड़ी बिहार में सत्ता में तब आई जब लालू को लगने लगा था कि उनकी राजनीतिक विरासत खत्म हो रही है तो एक कानून बना लिया कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को जीवन भर सरकारी मकान मिलेगा। इसमें सत्ता और विपक्ष को भी साधा गया था लिहाजा विरोध नहीं हुआ। दिलचस्प यह कि मीडिया भी शांत रहा। लेकिन अदालती आदेश ने बनावटी मसीहों की कमर तोड़ दी। समाजिक न्याय के स्वंयभू मसीहा और खुद को किंग में कर बताने वाले लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव, पिता की तरह अपना कानून बना रहे थे। उनके पिता ने 2016 में नीतीश कुमार के साथ मिलकर एक कानून बनाया ।जिसके तहत पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगला आजीवन रहेगा तेजस्वी उप मुख्यमंत्री थे और वह सरकारी बंगला डेढ़ साल से खाली नहीं कर रहे थे 5 देशरत्न मार्ग पर जो सरकारी बंगला उन्हें मिला था और राजभवन से बेहतर बना दिया । हाइकोर्ट के आदेश के बाद बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री तेजस्वी के माता और पिता लालू प्रसाद दोनों पूर्व मुख्यमंत्री एक साथ झटका लगा है। इसके साथ ही बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र और जीतन राम मांझी को सरकारी बंगला खाली करना पड़ेगा। सत्ता में बैठे लोग अलग अलग विचारधारा और राजनीतिक दलों सामाजिक न्याय और गरीबों की राजनीति के नाम पर सरकारी धन का दुरुपयोग करते हैं ।बिहार का बेहतरीन नमूना है । जहां अलग अलग विचारधारा के जगन्नाथ मिश्रा , लालू प्रसाद यादव सरकारी धन पर ताउम्र मौज के लिए सरकारी मकान हो ऐसा कानून बना लिया। अब उन पर अदालती हथोड़ा पड़ा है। उन्हें यह मकान खाली करना पड़ेगा। हफ्ते भर पहले, उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को सुप्रीम कोर्ट से झटका मिला। उन्होंने नोएडा और लखनऊ में अपने चुनाव चिन्ह हाथी की मूर्तियां लगाई। जिंदा होते भी मायावती ने खुद की मूर्ति लगाई। इस सब पर करोड़ो का सरकारी धन खर्च कर दिया। लगभग एक दशक बाद सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि पैसा कहां से आया ? सुप्रीम कोर्ट निर्देश दिया कि अप्रैल मे अगली सुनवाई करेंगे। तब तक आप तय कीजिए कितने खर्चे हुए हैं । यह आदेश उत्तर प्रदेश सरकार के लिए था और मायावती के लिए था। सुप्रीम कोर्ट ने मायावती के वकील से कहा पूरा खर्च आपको अपने निजी खर्च से भुगतान करने पड़ेंगे। जो आपने इसमें खर्च किए हैं। सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट का आदेश उस राजनीति पर भारी है जो राजनीति करते हुए मायावती के विरोध में लखनऊ के सत्ता पर अखिलेश काबिज हुए थे। यह कहते हुए कि मूर्तियों के निर्माण में जो खर्चे हुए हैं उसकी जांच की जाएगी लेकिन जब वह सत्ता में आए तो उन्होंने मायावती के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं किया। उसके बाद मायावती के साथ उन्होंने हमजोली बना ली । समाजिक न्याय के नाम पर राजनीतिक दलों के बीच सांठगांठ का पर्दाफाश अदालती आदेश से होता है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया कि हाथी समेत अन्य मूर्ति बनाने में बसपा की सरकार ने जो खर्च किए हैं वह मायावती को अपनी अदा करने होंगे सुप्रीम कोर्ट में दलील अल मुश्किल है जिसमें बसपा यह बचकाना दलील दे रही है कि हाथी सूंढ जो है वह ऊपर की तरह है । जबकि बसपा के चुनाव चिन्ह में हाथी का सूंढ नीचे की तरह है तरफ है । यह हमारा चुनाव चिन्ह नहीं है। कमाल है। URL.: Supreme hammer on dram on political social justice
Keywords: Supreme court,high court, lalu yadav,mayavati, rabdi devi. लालू यादव, राबड़ी देवी, मायावती,तेजस्वी यादव, जगर्नाथ मिश्र
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सामाजिक न्याय के ‘ठकेदारों’ को अदालत ने सिखाया ‘असली न्याय’!
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