बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह की मौत मामले में सीबीआई के संदेह घेरे में आई रिया चक्रवर्ती का पॉलीग्राफ टेस्ट हो सकता है।हालांकि सीबीआई को इसके लिए अदालत से इजाजत लेनी होगी, साथ ही रिया चक्रवर्ती से भी अनुमति लेनी होगी।
यह देखना दिलचस्प होगा कि रिया चक्रबर्ती अगर झूठ बोल रही है तो पॉलीग्राफ टेस्ट होते ही उसकी दिल की धड़कन अचानक तेज़ होगी, साथ ही ब्लड प्रेशर बढ़ेगा और पसीना आने लगेगा। जिसके बाद ऐसे ही शारीरिक बदलावों को पकड़ कर पॉलीग्राफ मशीन यह बता देगी कि वह झूठ बोल रही है। लेकिन जितना वह दिखने में सयानी लगती है उससे यह भी संभव है वह मशीन के बारे में जानकारी हासिल किए जाने के बाद अपने शरीर के हाव -भाव और पूछे गए सवाल के जवाब में भ्रमित शब्दों से इसे चकमा देने की कोशिश करें।
दरअसल पॉलीग्राफ एक ऐसी मशीन है, जिसका उपयोग झूठ पकड़ने के लिए किया जाता है। जब कोई मामला जांच एजेंसी के लिए मुश्किल भरे हो जाते हैं और निष्कर्ष निकालना बेहद पेचीदा दिखता है तब इस विधि का प्रयोग किया जाता है। पॉलीग्राफ टेस्ट मशीन को झूठ पकड़ने वाली मशीन और लाई डिटेक्टर टेस्ट के नाम से भी जाना जाता है। इसकी खोज जॉन अगस्तस लार्सन ने साल 1921 में की थी। अपने देश में इसका प्रयोग करने से पहले अदालत से अनुमति लेना आवश्यक है।
भारत में अब तक इसका कई लोगों पर सफल प्रयोग किया जा चुका है। लेकिन कुछ शातिर इसको भी गच्चा देने मे सफल रहे हैं।
पॉलिग्राफ टेस्ट के दौरान जिनका परीक्षण होता है, उनके शरीर में होने वाले बदलाव पर नजर रखकर ही यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि परीक्षण कराने वाला शख्स झूठ बोल रहा है या सच। शरीर के चिह्नों को देखकर यह रजिस्टर किया जाता है। जैसे तापमान, पल्स, ब्लड प्रेशर, सांस लेने की गति क्या है? और किस रूप में बदल रही है। इसके बाद आपसे कुछ ऐसे भी सवाल पूछे जाते हैं जिनका जांच के मुद्दे से कोई लेना देना नहीं होता।
यदि परीक्षण कराने वाला झूठ बोलता है तो इन तत्वों के अंदर बदलाव होता है। जिसके आधार पर यह तय किया जाता है कि व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ बता रहा है।
पॉलीग्राफ़िक तकनीक के तहत परीक्षण कराने वाले की बातचीत के कई ग्राफ़ एक साथ बनते हैं। इससे हर संभावित झूठ को पकड़ने की कोशिश की जाती है। परीक्षण के दौरान शुरू में नाम, उम्र और पता आदि पूछा जाता है और इसके बाद अचानक उस विशेष दिन की घटना के बारे में पूछ लिया जाता है जिसके लिए यह परीक्षण कराना जरूरी था।
विशेषज्ञ बताते हैं कि इस अचानक सवाल से उस इंसान पर मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ता है और ग्राफ़ में अचानक बदलाव दिखाई देने लगता है जबकि अगर बदलाव नहीं आता है तो इसका मतलब है कि परीक्षण कराने वाला शायद सच बोल रहा है। टेस्ट के दौरान करीब 10 से 15 सवाल पूछे जाते हैं। इनमें चार या पांच घटना से संबंधित होते हैं। जिन-जिन सवालों पर ग्राफ़ में बदलाव आता है, उसका पॉली ग्राफी विशेषज्ञ विश्लेषण करते हैं।
पॉलिग्राफ मशीन के नतीजों की सत्यता की अदालत में मान्यता है और इसके नतीजों पर 80-90 प्रतिशत तक विश्वास किया जाता है।
जटिल मामलों में सच्चाई उगलवाने का एक और तरीका है जिसे ट्रुथ सीरम या नार्को टेस्ट टेस्ट कहा जाता है। इसमें परीक्षण कराने वाले को सोडियम पेंटाथॉल नामक रसायन दी जाती है। बाद में आरोपी या अभियुक्त से बेहोशी की हालत में पूछताछ की जाती है और सच बाहर आ जाता है। अपने देश में कभी कभी इसका इस्तेमाल किया जाता है। सामान्य प्रयोग के लिए इस पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंध लगा रखा है।
सुशांत सिंह केस में रिया चक्रवर्ती का अब तक खुद को बेगुनाह बताना अधिकांश लोगों को पच नहीं रहा है। पॉलीग्राफ टेस्ट कराए जाने के बाद संभव है कि वह सीबीआई को सारा सच बता दे और अपना जुर्म कबूल कर ले। वैसे इस तरह की मशीन इंसान का इंसान पर भरोसा तोड़ रही हैं। अधिकांश लोग यह मानने लग गए हैं कि तकनीक ही यह तय करेगी कि कोई व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ?
आपको बता दूं कि सुशांत सिंह की ही तरह एक और मामला खूब चर्चित हुआ था और वह था आरुषि हत्याकांड। इस हत्याकांड में तलवार दंपति का भी पॉलिग्राफ टेस्ट हुआ था। इस टेस्ट में दोनों पास हो गये थे। आरुषि हत्याकांड आज भी एक पहेली ही बनी हुई है।