कल से तन्वी सेठ उर्फ शादिया अनस के पासपोर्ट व उसके कारण पासपोर्ट अधिकारी के दंडित किये जाने का मामला गरमाया हुआ है। इस पूरे प्रकरण में जो नए तथ्य सामने आये है उससे यह प्रतीत होता है कि सुषमा स्वराज, भारत मे नही थी बल्कि यह प्रशासनिक निर्णय विदेश मंत्रालय से लिया गया था। यह बात सत्य भी है तब भी इस निर्णय के उत्तरदायित्व से सुषमा स्वराज जी स्वयं को अलग कर नही सकती है।
इसी के साथ शादिया अनस उर्फ तन्वी सेठ की सहकर्मी, जो उसके साथ डेल कम्पनी में कार्यरत थी का यह कथन भी सामने आया है कि वो अपने केरियर ग्रोथ के लिये अमेरिका जाना चाहती थी लेकिन उनका पासपोर्ट आड़े आ रहा था और संभवतः उनका एच वन आव्रजन वीसा के लिए दिया गया प्रार्थनापत्र एक बार अस्वीकार किया जा चुका है। इन्ही कारणों से वे बदली हुई पहचान छुपा कर पूर्व की तन्वी सेठ का ही पासपोर्ट चाहती थी।
साथ मे एक कुलदीप का भी कथन आया है जो शादिया अनस व अनस सिद्दीकी की पासपोर्ट अधिकारी विकास मिश्रा से हुई वार्ता के दौरान उपस्थित था। उसके अनुसार पासपोर्ट के फॉर्म में दिख रही कमियों को जबरदस्ती का मुस्लिम विशेष का मामला बना दिया गया है क्योंकि उनके मुस्लिम को लेकर वहां कोई बात नही हुई थी।
अब जो शादिया अनस उर्फ़ तन्वी सेठ के पासपोर्ट और एक पक्षीय ढंग से पासपोर्ट अधिकारी विकास तिवारी को दंड स्वरूप स्थान्तरण को लेकर सुषमा स्वराज जी पर आक्रोश व्यक्त किया गया है वह तो अपनी जगह है लेकिन इसका कदापि अर्थ यह नही है कि मैं ‘नोटा’ ब्रिगेड में शामिल हो जाऊंगा। इन तमाम गलत निर्णयों के बाद भी वोट तो बीजेपी को ही दूंगा और लोगो से देने का आवाहन भी करूँगा क्योंकि न मुझ को मोदी जी की नीयत पर शक है और न ही भारत व उसके हिन्दू के अस्तित्व रक्षा के लिए कोई भी विकल्प सामने आता दिख रहा है।
अब अभिभावकों से कोई गलती होती है तो क्या उनसे मुंह फेर लिया जाता है? अपना आक्रोश प्रदर्शित करना था वह कर दिया है, तन्वी सेठ की अमेरिकी वीसा की अभिलाषा को चोट देनी थी वो अमेरिका के दूतावास को सूचित कर के कर दिया है और अब हम नई स्फूर्ति से 2019 में मोदी जी को फिर भरपूर तरीक़े से जिताने के लिये तैयार है।
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