छत्रपति शिवाजी महाराज ने माता जीजाबाई के हठ पर कहा कि जो कोंढाणा जाता है, कभी वापस नहीं लौट पाता। लेकिन जीजाबाई कोंढाणा दुर्ग पर लहराते हरे ध्वज को सह नहीं पाई और प्रतिज्ञा ली कि जब तक इस दुर्ग पर भगवा नहीं लहराता, वे अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगी। शिवाजी महाराज के बाल सखा तानाजी मालुसरे ने उस अविजित दुर्ग को जीत लिया। भारतीय इतिहास में ये युद्ध एक विशेष महत्व रखता है क्योंकि शिवाजी के लड़ाकों ने 4 फरवरी 1670 ईस्वी को भारतवर्ष की पहली सर्जिकल स्ट्राइक करते हुए कोंढाणा मुस्लिम आतताइयों से छीन लिया। इतिहास के इस गौरवशाली अध्याय पर अजय देवगन ने ‘स्पॉट लाइट’ डाली है। ‘तानाजी: द अनसंग वॉरियर‘ अजय देवगन के चमकदार कॅरियर की अत्यंत महत्वपूर्ण फिल्म सिद्ध होने जा रही है।
‘तानाजी’ की रिलीज़ करीब आते ही चर्चा चल पड़ी है कि उनकी वीरता और बलिदान को वैसा मान नहीं दिया गया, जिसके वे अधिकारी थे। इसमें और जोड़ते हुए कहना चाहूंगा कि हमारे अधिकांश वीर योद्धाओं का गर्व अकबर और हुमायूँ की कहानियों के तले दबा दिया गया। तानाजी की कहानियां कोंकण क्षेत्र में अधिक प्रचलित हैं लेकिन शेष भारत में एक स्कूली बच्चा उनका नाम तक नहीं जानता। जो देश इतिहास भुलाते हैं, भविष्य उन्हें ध्वस्त कर देता है। ये बात हमारे नीति-निर्धारक शायद ठीक-ठीक समझ पा रहे हैं। फिल्म उद्योग में पीरियड फिल्म बनाने की शुभ परंपरा चल पड़ी है। इस परंपरा का बड़ा लाभ ये होगा कि अपने इतिहास को जानने की ललक बढ़ेगी और गर्व भी होगा।
क्या दृश्य होगा वह, जब तानाजी के घर में मंगल ध्वनियाँ बज रही थीं और उन्होंने बेटे का विवाह रोककर कहा कि ‘पहले युद्ध की तुरही बजाओ, पहले हम कोंढाणा दुर्ग का विवाह करेंगे, बेटे रायबा का विवाह उसके बाद होगा।’ और सामने कौन खड़ा है। अपने ही कुनबे का बागी उदयभानु, जो बागी होकर मुस्लिम बन गया है। युद्ध के लाभ के दृष्टिकोण से उदयभानु फायदे में है, क्योंकि वह सैकड़ों फ़ीट की ऊंचाई पर सुरक्षित दुर्ग में बैठा है। ये चुनौती वैसी ही थी, जैसी कारगिल में भारतीय सेना के सामने खड़ी थी। ऊंचाई पर दुश्मन अधिक ताकतवर और खूंखार होता है। सामने से आक्रमण की कोई सूरत ही नहीं थी, इसलिए ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ का मार्ग चुना गया।
37 साल के युवा निर्देशक ओम राउत सन 1993 से फिल्म उद्योग में सक्रिय हैं और उन्होंने अब तक केवल एक फिल्म निर्देशित की है। हालांकि उस एक फिल्म ने ही ओम को विश्वव्यापी ख्याति दिलवा दी। सन 2015 में उन्होंने लोकमान्य तिलक का बॉयोपिक ‘लोकमान्य एक युग पुरुष’ निर्देशित किया। महज सात करोड़ में बनाई गई इस मराठी फिल्म का जादू कुछ यूँ चला कि इसने पांच सप्ताह में तेरह करोड़ कमा डाले। फिल्म ने अपनी लागत से दोगुना वसूल किया लेकिन जो ख्याति इस फिल्म को मिली, वह इसके कमाए रुपयों से बहुत ज़्यादा थी। उसी साल ‘लोकमान्य: एक युग पुरुष’ ने बेस्ट फिल्म के लिए महाराष्ट्र स्टेट अवार्ड जीता। लंदन एशियन फिल्म फेस्टिवल में इसे ऑफिशियल एंट्री मिली।
ओम राउत का जिक्र करना जरुरी है क्योंकि वे इस ‘ज़हाज के कप्तान’ हैं। फिल्म निर्माता अजय देवगन ने ओम को इसलिये साइन किया क्योंकि एक विशेष कालखंड फिल्म बनाने की जो समझ चाहिए, वह उनके भीतर है। फिल्म के प्रोमो स्पष्ट कर देते हैं कि ओम राउत दर्शकों के लिए एक ऐसी फिल्म लाने जा रहे हैं, जिसकी तुलना राजामौली की बाहुबली से अवश्य ही होगी। प्रोमो में अजय देवगन के दृश्य दोबारा देखिये। वे आपको अलग ही नज़र आएँगे। यही ओम राउत का ‘टच’ है। इसकी भव्यता और वीएफएक्स की चर्चा अभी से होने लगी है। सैफ अली खान को लेकर निर्देशक आश्वस्त हैं कि वे उदयभान के किरदार को एक नई ऊंचाई देंगे। सैफ अली खान निःसंदेह एक श्रेष्ठ अभिनेता हैं। पिछली फिल्म ‘लाल कप्तान’ में उन्होंने काफी तारीफ़ बटोरी थी।
इस बात को लेकर मैं आश्वस्त हूँ कि जिन गलतियों से ‘मणिकर्णिका’ एक ब्लॉकबस्टर बनते-बनते रह गई, वे गलतियां ओम नहीं करेंगे। फिल्म का कैनवास बहुत भव्य बनाया गया है। छत्रपति शिवाजी का किरदार शरद केलकर निभा रहे हैं और बहुत भले लग रहे हैं। काजोल इस समय अभिनय का शहद बनी हुई हैं और निश्चित ही उनके प्रशंसक एक नई काजोल से रूबरू होंगे। कुल मिलाकर दर्शकों में फिल्म को लेकर एक पॉजिटिव वेव देखी जा रही है जो इसकी ओपनिंग में काफी मददगार सिद्ध होगी। फिल्म के डायलॉग अभी से चर्चित हो गए हैं। आपको कुछ ख़ास संवादों के साथ छोड़े जा रहा हूँ।
जिस तरह उत्तर हिंदुस्तान का पाया है दिल्ली, वैसे ही दक्खन हिन्द का पाया होगा कोंढाणा
हर मराठा पागल है स्वराज का, शिवाजी राजे का, भगवे का
जब शिवाजी राजे की तलवार चलती है तो औरतों का घूंघट और ब्राम्हणों का जनेऊ सलामत रहता है।