श्वेता पुरोहित- यं प्रव्रजन्तमनुपेतमपेतकृत्यं द्वैपायनो विरहकातर आजुहाव।पुत्रेति तन्मयतया तरवोऽभिनेदु- स्तं सर्वभूतहृदयं मुनिमानतोऽस्मि…
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