आईएसडी नेटवर्क। सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु के परंपरागत खेल जल्लीकट्टू पर रोक लगाने से मना कर दिया है। न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार के उस कानून का वैध मान लिया है, जिसमे जलीकट्टू को खेल के रूप में मान्यता दी गई है। न्यायालय ने कहा है कि यह कानून जानवरों में पीड़ा को काफी हद तक कम करता है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार ‘जल्लीकट्टू’ तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है।
तमिलनाडु सरकार ने पशुओं के प्रति रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम 2017 के तहत जल्लीकट्टू’ उत्सव मनाने की अनुमति दे दी थी। उल्लेखनीय है कि सन 2017 में इस अधिनियम के लागू होने के बाद से ही मामला न्यायालय में चला गया था। भारत के पशु कल्याण बोर्ड और कुछ पशु-अधिकार संगठनों ने तमिलनाडु कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की शरण ले ली थी। जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम, 2017 को मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम ने लागू किया था।
इसके बाद बहस और चर्चाओं के बाद विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया था, जिसे 23 जनवरी को एक संक्षिप्त बहस के बाद विधानसभा में सर्वसम्मति से अपनाया गया था। अब न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा है कि हम विधायिका के विचार को बाधित नहीं करेंगे। विधायिका ने यह विचार किया है कि यह राज्य की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है।
जल्लीकट्टू तमिलनाडु का चार सौ वर्ष से भी पुराना पारंपरिक खेल है, जो फसलों की कटाई के अवसर पर पोंगल के समय आयोजित किया जाता है| इस खेल में बैलों के सींगों में सिक्के या नोट फँसाकर रखे जाते हैं और फिर उन्हें भीड़ में छोड़ दिया जाता है, ताकि लोग सींगों से पकड़कर उन्हें काबू में कर सके। इस खेल में खूंखार किस्म के बैल को खिलाड़ी उकसाते हैं। इसी बीच खिलाड़ी बैल की पीठ पर चढ़ने की कोशिश करते हैं। जल्लीकट्टू को दक्षिण भारत के राज्यों में ही खेला जाता है, जिसमें एक समय में 25 खिलाड़ी ही हिस्सा ले सकते हैं।
सन 2006 में जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगवाने के लिए मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच में एक याचिका दायर की गई थी। इसके बाद 2009 में राज्य सरकार ने जल्लीकट्टू के नियमन के लिये एक कानून पास किया था। आयोजन की वीडियोग्राफी, डॉक्टरों और वेटरनरी डॉक्टरों की तैनाती के नियम बनाए गए। सुरक्षा के विशेष इंतज़ाम के साथ आयोजन के लिए कलेक्टर की अनुमति लेना आवश्यक कर दिया गया।
कानून के बाद दुर्घटनाओं में काफी हद तक कमी आई लेकिन पशु कल्याण कार्यकर्ताओं की मांग तब भी जारी रही कि खेल पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए। इन सभी मामलों पर आखिरी फैसला मई 2014 में आया जिसके आधार पर इस खेल पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया|