ओशो :-
शरीर अपने विवेक से चलता है। वह उतना ही ग्रहण करता है जितना जरूरी है। जब उसे ज्यादा की जरूरत होती है तो वैसी स्थिति बना लेता है और कम की जरूरत होती है तो वैसी ही स्थिति बना लेता है। शरीर कभी अति पर नहीं जाता है। वह सदा संतुलित रहता है। जब तुम श्वास लेते हो तब वह संतुलित नहीं है। क्योंकि तुम्हें नहीं मालूम है कि शरीर की जरूरत क्या है और यह जरूरत क्षण-क्षण बदलती रहती है।
इसलिए शरीर को मौका दो, तुम तो बस श्वास छोड़ने भर का काम करो, उसे बाहर फेंको। और तब शरीर खुद श्वास लेने का काम कर लेगा। और शरीर जब खुद श्वास अंदर लेता है तो वह धीरे-धीरे लेता है। और गहरे लेता है। और पेट तक ले जाता है। वह श्वास ठीक नाभि-केंद्र पर चोट करती है। जिससे तुम्हारा पेट ऊपर नीचे होता है। और अगर श्वास लेने का काम भी तुम करोगे तो फिर समग्रता से श्वास छोड़ न सकोगे। तब श्वास भीतर बची रहेगी। और ऊपर से ली गई श्वास गहराई में न उतर सकेगी। इसीलिए श्वास क्रिया उथली हो जाती है। तुम श्वास भीतर लेते रहते हो और भीतर जहर इकट्ठा होता जाता है।
वे कहते है कि तुम्हारे फेफड़े में कई हजार छिद्र हैं। और उनमें से सिर्फ दो हजार छिद्रों तक ही श्वास पहुंच पाती है। बाकी चार हजार छिद्र तो सदा ज़हरीली गैस से भरे रहते है। जिन्हें सदा खाली करने की जरूरत है। वह जो तुम्हारी छाती का दो तिहाई हिस्सा जहर से भरा रहता है।"वह तुम्हारे शरीर में, मन में, दुःख और चिंता और संताप लाता है।"
बच्चा सदा श्वास छोड़ता है लेता नहीं। लेने का काम सदा शरीर करता है। जब बच्चा जन्म लेता है तो वह जो पहला काम करता है वह रोना है। उसे रोने के साथ ही उसका कंठ खुलता है। रोने के साथ ही वह पहल अ: बोलता है, उस रोने के साथ ही मां के द्वारा भीतर ली गई हवा बाहर निकल जाती है। वह उसकी पहली श्वास क्रिया है। श्वास क्रिया का आरंभ!
बच्चा सदा श्वास छोड़ता है। और जब बच्चा श्वास लेने लगे, जब उसका जोर छोड़ने से हटकर लेने पर चला जाए तो सावधान हो जाना; तब बच्चा बूढ़ा होने लगा। उसका अर्थ है कि बच्चे ने वह तुमसे सीखा है, वह तनावग्रस्त हो गया है।
जब तुम तनाव ग्रस्त होते हो तो तुम गहरी श्वास नहीं ले सकते हो। क्यों? तब तुम्हारा पेट सख्त होता है। जब तुम तनाव में होते हो तो तुम्हारा पेट सख्त हो जाता है। वह सख्ती श्वास को गहरे नहीं जाने देती। तब तुम उथली श्वास ही लेने लगते हो।
तंत्र कहता है कि अपने श्वास-प्रश्वास का ढंग बदल दो और मालकियत अपने आप छूट जायेगी। तुम अपनी श्वास को देखो, अपने भावों को देखो और तुम्हें बोध हो जाएगा। जो भी गलत है वह भीतर जाने वाली श्वास को महत्व देने के कारण है और जो भी शुभ है और सत्य है , शिव है, और सुंदर है। वह बाहर जाने वाली श्वास के साथ संबंधित है। जब तुम झूठ बोलते हो, तुम अपनी श्वास को रोक रखते हो, और जब सच बोलते हो तो श्वास को कभी नहीं रोकते। झूठ बोलते समय तुम्हें डर लगता है और उस डर के कारण तुम श्वास को रोक रखते हो। तुम्हें यह डर भी होता है कि बाहर जाने वाली श्वास के साथ कहीं छिपाया गया सत्य भी प्रकट न हो जाये!
ओशो
विज्ञान भैरव तंत्र, भाग—2
प्रवचन—31