संदीप देव । वानर राज वाली की पत्नी तारा जैसी शक्तिशाली और बुद्धिमान स्त्री के आगे आज की नारीवादी और वोक फेमिनिस्ट का स्थान दासी से अधिक नहीं है। तारा के व्यक्तित्व में जो ठहराव है, वह अन्य नारियों में कम ही देखने को मिलता है।
वाली का वध श्रीराम ने किया है, जिसके बाद वाली के सैनिक और सामंत तारा के आसपास इकट्ठे होकर अंगद को राजा बनाने के लिए कहते हैं, लेकिन तारा जो तर्क देती है उस अकाट्य तर्क से सब धाराशाई हो जाते हैं। पति मृत पड़ा है, परंतु तारा किष्किन्धापुरी में सत्ता के दो केंद्र की पूरी संभावना को नष्ट करते हुए परिवार और राज्य को एक रखती है।
अपनी अंतिम सांस लेने से पूर्व वाली सुग्रीव को अपना हार अर्थात् अपना अधिकार सौंपते हुए कहते हैं कि अंगद का ध्यान रखना और तारा जैसी विदूषी महिला की सलाह से राज्य चलाना।
तारा के सहयोग से राज्य चलाने का तात्पर्य था कि सत्ता का दो केंद्र होना, इसलिए वाली की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए सुग्रीव और तारा विवाह कर लेते हैं और सुग्रीव तारा की विलक्षण क्षमता का उपयोग कर राज्य का संचालन करते हैं।
तारा की विलक्षण बुद्धि का परिचय तब मिलता है जब क्रोध से भरे हुए लक्ष्मण किष्किंधापुरी में सुग्रीव को मारने पहुंच जाते हैं। सुग्रीव वाली के डर से बहुत समय तक मारे-मारे फिरते रहे हैं, इसलिए राज्य मिलते ही कामासक्त होकर वह भोग-विलास में लीन हो जाते हैं और श्रीराम को दिए वचन को भूल जाते हैं।
वचन था कि चातुर्मास के बाद शरद ऋतु का आरंभ होते ही सीताजी की खोज आरंभ होगी। हालांकि हनुमानजी की बुद्धिमता के कारण सुग्रीव दुनिया भर के वानरों को 15 दिन में किष्किन्धापुरी में उपस्थित होने का आदेश लक्ष्मणजी के आगमन से पूर्व ही दे देते हैं, परन्तु इसके बाद वह पुनः भोग-विलास में लिप्त हो जाते हैं।
रोष से भरे हुए लक्ष्मण जब किष्किंधापुरी पहुंचते हैं तो सभी डर के मारे कांपने लगते हैं, फिर सुग्रीव तारा को भेजते हैं, लक्ष्मण को समझाने के लिए। तारा वहां लक्ष्मण जी को न केवल समझाती है, वरन उनके क्रोध को भी शांत करती है। वह अपने पति का बचाव भी करती है और वानर राज के सम्मान को भी स्थापित करती है। काम के प्रभाव में सुध-बुध खो चुके सुग्रीव की स्थिति का वर्णन करते हुए वह काम के प्रबल आवेग की शिक्षा भी लक्ष्मण जी को उदाहरणों से समझाती है।
भारती और आदि शंकराचार्य के शास्त्रार्थ में जहां भारती काम पर प्रश्न पूछती है, वहीं तारा-लक्ष्मण संवाद में तारा काम के प्रभाव और परिणाम को दर्शाती है, जो अद्भुत है!
यह तारा थी, जिसके कारण सुग्रीव लक्ष्मण के आगे आने का साहस कर सके और तब लक्ष्मण ने सुग्रीव को श्रीराम के समकक्ष खड़ा कर दिया। क्या अद्भुत नारी थी तारा, जिसके कारण उसके पति और राजा की “काम से राम की यात्रा” संभव हो सकी!
कल रात्रि वाल्मीकि रामायण की श्रृंखला के 65 एपिसोड में जब मैं तारा-लक्ष्मण संवाद का वर्णन कर रहा था तो ऐसा खो गया कि 1.25 घंटे का पता ही नहीं चला! मनोविज्ञान और समाजशास्त्र के स्तर पर तारा-लक्ष्मण संवाद का स्थान भारतीय धर्म शास्त्र में अद्भुत है। आप भी कल का एपिसोड नीचे दिए लिंक में जाकर देख सकते हैं। धन्यवाद।