विपुल रेगे। विज्ञापन हमें मोहित करते हैं। कार्यक्रमों के अनिवार्य अंतराल के मध्य आते विज्ञापन नए उत्पादों की जानकारियां देते हैं। विज्ञापन मनोरंजन की एक अनोखी विधा है। एक मिनट से कम समय में निर्देशक को एक कथा के माध्यम से उत्पाद के बारे में बताना होता है। विज्ञापन जीवन का उत्साह दे सकते हैं और एक गलत परंपरा की शुरुआत भी कर सकते हैं। एक ओर शक्ति कपूर क्राइम मास्टर गोगो बनकर उत्पाद बेच रहे हैं तो एक कार कंपनी उन खिलाड़ियों का साहस और शौर्य दिखा रही है, जिनके पैर बचपन में ही रोग के कारण काट दिए गए थे।
इन दिनों डिज्नी + हॉटस्टार का विज्ञापन बड़ा चर्चित हो रहा है। विज्ञापन में शक्ति कपूर क्राइम मास्टर गोगो बनकर दर्शकों को रिझा रहे हैं। वे डिज्नी के ग्राहक के पास जाते हैं और उसे नई फिल्मों की जानकारी देते हैं। जब ग्राहक कहता है कि ये ऑफर उसने पहले ही स्वीकार कर लिया है तो शक्ति कपूर कहते हैं ‘ क्राइम मास्टर गोगो हूँ, आया हूँ कुछ तो लूटकर जाऊँगा।’ इसके बाद वे ग्राहक का कुछ न कुछ सामान लूटकर चल देते हैं।
भारत में विज्ञापनों का हाल कुछ इसी तरह का है। यहाँ विज्ञापन ये सोचकर नहीं बनाया जाता कि उसे भारत के सभी आयु समूह के दर्शक देखेंगे, जिनमे बच्चे भी शामिल हैं। उन बच्चों पर ऐसे विज्ञापनों का क्या प्रभाव होता है, इसकी समीक्षा भी इस देश में कभी नहीं की जाती। कदाचित नए सूचना व प्रसारण मंत्री श्री अनुराग ठाकुर को ये मालूम नहीं होगा कि जब सुबह हमारे घरों में भजन-प्रार्थना इत्यादि की जाती है, उस समय चैनलों पर कंडोम के विज्ञापन चलते रहते हैं।
कंडोम विज्ञापन दिखाने का एक समय निर्धारित किया गया था। इतना समय बीत जाने के बाद संभवतः सरकार को ही वह नियम याद नहीं होगा। शक्ति कपूर का विज्ञापन मनोरंजन की दृष्टि से हास्यप्रद है लेकिन उनके लिए जो व्यस्क हैं, और चीजों को समझते हैं। उधर कई पश्चिमी देशों को उपभोक्तावाद के मार्ग पर दशकों तक चलते रहने के बाद ये भान हुआ कि मनोरंजन उद्योगों को अत्याधिक स्वतंत्रता का बुरा प्रभाव बच्चों और युवा पीढ़ी पर पड़ रहा है।
सन 2000 के बाद से इस पर गंभीर चिंतन शुरु हो चुका था। आज अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में सेल्फ रेगुलेशन लागू हो चुका है। मनोरंजन उद्योग पर ही ये भार डाल दिया गया है कि वे अपनी फिल्मों, कार्यक्रमों और विज्ञापनों को देखकर विचार करें कि वे समाज के हित में हैं या नहीं। विशेष रुप से उनका कंटेंट बच्चों को बुरे ढंग से प्रभावित तो नहीं करता है। इस सेल्फ रेगुलेशन का अच्छा प्रभाव देखने को मिल रहा है।
ये प्रभाव उनकी फिल्मों और विज्ञापनों में स्पष्ट रुप से दिखाई देता है। 29 वर्षीय जेसिका लॉन्ग रुस में पैदा हुईं थीं। जब वे अठारह माह की थीं तो उनके पैरों के निचले भाग काट दिए गए थे। Fibular hemimelia नामक एक रोग के चलते उनके पैर काट देने पड़े। जेसिका ने विकलांगता को चुनौती मानते हुए विकलांगों के खेलों में भाग लेना शुरु कर दिया। बाद में वे अमेरिका की राष्ट्रीय टीम की सदस्य बन गईं।
उसके बाद उन्होंने चार पैरालम्पिक खेलों में गगनचुंबी प्रदर्शन करते हुए 23 पदक अपने नाम कर डाले। जेसिका का उल्लेख इस लेख में इसलिए किया जा रहा है क्योंकि हाल ही में टोयोटा कंपनी के विज्ञापन अभियान में एक विज्ञापन जेसिका पर बनाया गया है। इस एक मिनट के विज्ञापन में जेसिका के संपूर्ण जीवन का चित्र खींचा गया है। कैसे विज्ञापन के अंत में जेसिका की माँ को डॉक्टर का कॉल आता है।
डॉक्टर कहते हैं कि जेसिका का जीवन आसान नहीं होगा। जेसिका की माँ उसकी ओर देखकर मुस्कराती हुई कहती है कि आसान तो नहीं होगा, लेकिन अद्भुत अवश्य होगा। विज्ञापन में कई संकेत दिए गए हैं। कम्प्यूटर ग्राफिक्स की सहायता से जेसिका को अस्पताल के पलंगों पर लेते नवजात शिशुओं के बीच से तैरते दिखाया गया है। पानी में डूबकर कुछ पल के लिए जब जेसिका ऊपर देखती हैं तो उन्हें तालियां और दर्शकों का शोर सुनाई देता है।
अंत में रुसी सुंदरी एक ईश्वरीय मृदुहास के साथ जल में डूबी दिखाई देती हैं। जब हम पश्चिम के विज्ञापन जगत को देखते हैं तो विचार आता है कि वे कितनी सुंदरता के साथ भावी पीढ़ी का चरित्र गढ़ रहे हैं। फिर हम भारत को देखते हैं तो विचार आता है कि शक्ति कपूर के लूट के विज्ञापन और सनी लिओन के कंडोम के विज्ञापन हमारी पीढ़ी पर क्या प्रभाव छोड़ रहे हैं। भयभीत करने वाला तथ्य है कि मनोरंजन तत्वों का समाज पर समग्र प्रभाव की समीक्षा एक दशक बाद ही की जा सकती है।