
फार्मा उद्योग की काली दुनिया उतरी आयुर्वेद के विरुद्ध!
जयप्रकाश सिंह। जिन्हें लगता है कि बाबारामदेव और IMA के बीच चल रहा संघर्ष केवल आयुर्वेद बनाम एलोपैथ का संघर्ष है, उन्हें प्रोफेसर पीटर सी गोत्जसे की किताब Deadly Medicine and Organized Crime एक बार जरूर पढ़नी चाहिए। 2013 में प्रोफेसर गोत्जसे की किताब ने फार्माउद्योग के ऐसे स्याह पक्षों को सामने रखा था, जिससे दुनिया हिल गई थी। प्राफेसर ने फार्मा उद्योग को सर्वाधिक कातिल उद्योगों में से एक बताया। किताब में फार्मा उद्योग की तुलना तम्बाकू_उद्योग से की गई है और कहा गया है कि ये दोनों उद्योग राजनीतिज्ञों और आम व्यक्तियों का किसी निष्कर्ष पर पहुंचने नहीं देते और शोध के नाम पर निरंतर भटकाते रहते हैं।
इससे भी आगे बढ़कर प्रो. गोत्जसे यह दावा करते हैं कि दवाओं के रिसर्च का जो मौजूदा ढांचा है, वह फार्मा कम्पनियों द्वारा प्रायोजित है। उसमें ईमानदारी और पारदर्शिता का अभाव है और वह विश्वसनीय नहीं है। इस लिजलिजी और भ्रष्ट व्यवस्था के कारण शोध के नाम पर दवाओं की ऊंची कीमत रखकर लोगो को आर्थिक रूप से लूटा जाता है बल्कि स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ किया जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार अकेले अमेरिका मे साल 2015 में डाॅक्टरों ने जिस तरह से दवाएं प्रेस्क्राइब की, उसके चलते दो लाख लोगों की मौत हो गई। भारत में क्या स्थिति होगी, वह ईश्वर ही जाने। क्योंकि ऐसी रिपोर्ट है, जो यह दावा करती है कि Clinical Trial के लिए बड़ी फार्मा कम्पनियां भारत या अफ्रीकी देशों को चुनती है। क्योंकि इन देशों में कानून बहुत लिजलिजे हैं।
इसलिए बाबा रामदेव का मामला आयुर्वेद और एलोपैथ के संघर्ष से अधिक है। यह ताकतवर भ्रष्ट लाॅबी को सीधे-सपाट में अंदाज में ललकारने का मामला है। बाबा रामदेव इसलिए भी खटकते हैं कि वह केवल सवाल नहीं उठा रहे हैं, बल्कि सस्ता और सदियों से परखा हुआ विकल्प भी लोगों को सामने रख रहे हैं। इसलिए उनका कपालभाति और आयुर्वेद जहां करोड़ो लोगों के लिए इस महामारी में रामबाण बन रहा है, वहीं ताकतवर लेकिन अमानवीय सिंडिकेट की बेचैनी के स्तर को बहुत बढ़़ा दिया है।
इसलिए आयुर्वेेद के पक्षधर लोगों को अपनी बात संयम के सतत रूप से कहते रहनी चाहिए। कोरोनिल की लाॅंचिंग के समय भी मैंने यही कहा था कि यह लम्बा संघर्ष है। जैसे योग को स्थापित करने के लिए कई वर्ष लगे, कई बाधाएं खड़ी की गई, वैसा ही आयुर्वेद के मामले में भी होगा। यह भी तय है कि जिस तरह से कभी विरोध करने वाले आज योग कर रहे हैं वैसे आज आयुर्वेद का विरोध करने वाले भी एकदिन आयुर्वेद की ही शरण में आएंगे जरुर। डटें रहें, बिना खीझ के अपनी बात कहते रहें। आयुर्वेद शरीर का ही नहीं मानसिकता का भी ईलाज करने में सक्षम है ….
साभार- जयप्रकाश सिंह (वरिष्ठ पत्रकार)
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